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काले हिरणों पर शिकारियों की नजर, संरक्षण के अभाव में लगातार घट रही संख्या

समुचित पेयजल व भोजन की भी नहीं है व्यवस्थाडिंडौरी. जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर समनापुर सामान्य वन मंडल मे आने वाले कारोपानी की पहचान यहां पाए जाने वाले काले हिरणों से है। विभाग की अनदेखी के चलते यहां पाए जाने वाले काले हिरण धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। इनके संरक्षण व इन्हे […]

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समुचित पेयजल व भोजन की भी नहीं है व्यवस्था
डिंडौरी. जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर समनापुर सामान्य वन मंडल मे आने वाले कारोपानी की पहचान यहां पाए जाने वाले काले हिरणों से है। विभाग की अनदेखी के चलते यहां पाए जाने वाले काले हिरण धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। इनके संरक्षण व इन्हे समुचित सुविधाएं मुहैया कराने वन विभाग ने अब तक कोई ठोस पहल नहीं की है। ऐसे में यह वन्यजीव असुरक्षित है। बताया जा रहा है कि इस क्षेत्र में इनके लिए न तो समुचित पेयजल की व्यवस्था है और न ही भोजन की। बताया जा रहा है कि इस पूरे क्षेत्र में सिर्फ एक तालाब बना है वह भी गर्मी के दिनो में सूख जाता है, जिससे पीने के पानी की समस्या बनी रहती है। कारोपानी मे विभाग के द्वारा हिरणों की सुरक्षा के भी कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं। इस वजह से इनका आए दिन शिकार हो रहा है।
प्राकृतिक पार्क है कारोपानी
जानकारी के अनुसार कारोपानी प्राकृतिक हिरण पार्क है यह मनुष्यों और वन्यजीव के सह अस्तित्व का प्रतीक है। यहां मनुष्य और हिरण एक साथ रहते हैं। यही वजह है कि इसकी पहचान आस-पास के क्षेत्रों में बनी हुई है।
निजी भूमि होने से वन विभाग का दखल नहीं
जानकारी के अनुसार कारोपानी मे हिरणों की सुरक्षा के लिए बाउंड्रीवॉल और फेंसिंग न होने की बड़ी वजह विभाग की भूमि न होने को बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि यह क्षेत्र वन विभाग का न होकर निजी भूमि है। इस वजह से विभाग के द्वारा हिरणों की सुरक्षा के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं। यहां रहने वाले रहवासियों के द्वारा ही हिरणों के लिए चारा पानी की व्यवस्था की जा रही है। बताया जा रहा है कि यहां 150 से अधिक काले हिरणों की संख्या दर्ज की गई है। इनके संरक्षण को लेकर प्रयास हो तो इनकी संख्या में और इजाफा होगा।
इनका कहना है
मेरी उम्र लगभग 80 वर्ष हो चुकी है जब मैं छोटा था तभी से यहां हिरण है। इन हिरणों के रहने, खाने का कोई इंतजाम विभाग द्वारा नहीं कराया गया। यहां के ग्रामीणों द्वारा ही व्यवस्था की जाती है।

कालूराम धुर्वे, ग्रामीण

पहले यहां इनकी संख्या ज्यादा थी। धीरे-धीरे यह घटते जा रहे हैं। गर्मी के दिनो में इन्हे सबसे ज्यादा परेशानी होती है। जलस्त्रोत के अभाव में इन्हे पीने के पानी का संकट आन खड़ा होता है।
राम सिंह, ग्रामीण