संक्रमण : यह किसी को भी हो सकता है लेकिन किडनी व लिवर रोग से पीडि़त, कमजोर इम्युनिटी वाले, डायबिटीज, आर्थराइटिस व एचआईवी रोगियों में इसकी आशंका अधिक होती है। इसकी वजह लार गाढ़ी होने के कारण पनपे वायरस व बैक्टीरिया, मुंह की साफ-सफाई की कमी आदि हो सकती हैं। ऐसे में खाने में स्वाद न आना, मुंह से पस निकलना, बुखार व कान के पास दर्द जैसे लक्षण सामने आते हैं।
पथरी : लार का गाढ़ा होकर कठोर होना ग्रंथियों में कई बार पथरी का रूप ले लेता है। इससे लार के प्रवाह में बाधा आ जाती है। हालांकि इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। लेकिन पानी की कमी व प्रमुख रोगों में ली जाने वाली दवाओं का दुष्प्रभाव भी इसके कारणों में शामिल है। पथरी होने पर भोजन निगलने में दिक्कत, ग्रंथियों का फूलना और दर्द की परेशानी सामने उभर कर आती है।
गांठें बनना : गांठें दो तरह की होती हैं- कैंसरस व नॉन-कैंसरस। कई बार पानी की कमी से नाजुक कोशिकाएं कठोर हो जाती हैं। इलाज में देरी होने से ये ट्यूमर का रूप ले सकती हैं। ऐसे में कान या जबड़े के पास भोजन करते समय दर्द, सूजन, मुंह में टेढ़ापन व आंखें बंद न कर पाने जैसी दिक्कतें होती हैं।
जांच व इलाज : संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक दवाएं देते हैं। सीटी स्कैन, एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड से पथरी का पता लगाकर जरूरत पडऩे पर सर्जरी से पथरी निकालते हैं। गांठ बनने पर ब्लड टैस्ट, एफएनएसी (पतली सुई को गांठ में डालकर उसके अंदर का तरल निकालते हैं और उसे लैब में टैस्ट करते हैं), एमआरआई कर गांठों की संख्या व फैलाव पता लगाकर गांठ को बाहर निकालते हैं। मौसम कोई भी हो सावधानी के तौर पर विशेषज्ञ दिन में ७-८ गिलास पानी पीने की सलाह देते हैं। इसके अलावा ज्यूस या सूप भी लिया जा सकता है।