मैटल के जोड़ –
मैटल से बने जोड़ों में कोबाल्ट, क्रोमियम, निकल, हाइडेंटिस्टी प्लास्टिक, टाइटेनियम और सिरेमिक प्रमुख हैं।
हिप रिप्लेसमेंट –
ये 15 से 25 साल तक चल जाता है।
हिप रिप्लेसमेंट सबसे ज्यादा 60 या इससे ज्यादा उम्र में होता है। कम उम्र के लोगों को सिरेमिक का जॉइंट लगाया जाता है जो 20-25 साल और बुजुर्गों को मैटल का लगाया जाता है जो 15 साल तक चल जाता है। सिरेमिक का जॉइंट मैटल से महंगा होता है।
घुटना –
ये रिप्लेसमेंट 10से 15 साल तक चल जाता है।
यह सबसे ज्यादा लगाया जाने वाला कृत्रिम जोड़ है जो 10 से 15 तक चल सकता है। इसकी सक्सेस रेट भी सबसे ज्यादा है। इस सर्जरी में कई नई तकनीकें आ चुकी हैं जो इस सर्जरी को पूरी तरह सफल बना रही हैं। किसी भी तरह के जॉइंट रिप्लेसमेंट में मरीज को दूसरे दिन ही चलने फिरने के लिए कहा दिया जाता है। पूरी तरह रिकवरी में छह हफ्ते लग जाते हैं। फिलहाल भारत में सबसे ज्यादा हिप और नी(घुटने) रिप्लेसमेंट हो रहे हैं।
कंधे –
ये रिप्लेसमेंट 15 साल तक चल जाता है।
कंधे के जोड़ खराब होने पर प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है। कंधे के जोड़ में सॉकेट और बॉल होती है। यदि सॉकेट सही है तो सिर्फ नष्ट हुई बॉल ही बदली जाती है। इससे 15 साल तक मरीज को दिक्कत नहीं होती है।
कोहनी –
8 से 10 साल तक चल जाते हैं।
यह रिप्लेसमेंट ज्यादातर गठिया के मरीजों में होता है। चोट से एल्बो क्षतिग्रस्त होने पर भी रिप्ले समेंट सर्जरी होती है। जटिलताओं से यह सर्जरी भी कम की जाती है। कोहनी का रिप्लेसमेंट 8-10 साल तक चल सकता है।
कलाई –
ये रिप्लेसमेंट 5 से 10 साल तक चल जाता है।
जॉइंट अधिक पेचीदा होने से कलाई रिप्लेसमेंट सर्जरी कम ही होती है। हड्डी पर प्लेट लगाकर भी ज्वॉइंट ठीक करते हैं जिसे ऑर्थोडिसिस कहते हैं। इससे मरीज को दर्द में राहत मिल जाती है लेकिन भारी काम नहीं किया जा सकता।
एड़ी व टखना –
ये रिप्लेसमेंट 5 साल तक चल जाता है।
कुछ साल पहले तक कृत्रिम टखने समय से पहले ही काम करना बंद कर देते थे। लेकिन नई डिवाइस ने अब इसे सफल बनाया है। इसके बावजूद एंकल जॉइंट रिप्लेसमेंट कम हो रहे हैं। इसकी वजह एंकल के नीचे 3-4 और जॉइंट होना है जिसकी वजह से मरीज चल फिर लेता है। फिलहाल इसकी सक्सेस रेट 5 साल है।