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हाईकोर्ट का फैसला: भृत्य से ऑपरेटर का काम, अब देंगे 15 साल का वेतन-भत्ता

Bilaspur High Court : हाईकोर्ट ने कर्मी को वर्ष 2008 से पम्पं अटेंडेंट का वेतनमान व शासन द्वारा देय महंगाई भत्ता की राशि दो माह के भीतर भुगतान का आदेश दिया है।

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हाईकोर्ट का फैसला: भृत्य से ऑपरेटर का काम, अब देंगे 15 साल का वेतन-भत्ता

हाईकोर्ट का फैसला: भृत्य से ऑपरेटर का काम, अब देंगे 15 साल का वेतन-भत्ता

Bilaspur High Court : भृत्य से पम्पं ऑपरेटर का काम कराना नगर निगम को भारी पड़ गया। भृत्य की याचिका पर हाईकोर्ट ने काम के अनुरूप नगर निगम को पम्पं ऑपरेटर के नियमित पद का वेतनमान भुगतान करने का आदेश जारी किया है।

हाईकोर्ट ने कर्मी को वर्ष 2008 से पम्पं अटेंडेंट का वेतनमान व शासन द्वारा देय महंगाई भत्ता की राशि दो माह के भीतर भुगतान का आदेश दिया है। मामले के मुताबिक कर्मचारी राजूलाल चंद्राकर नगर निगम में दैनिक वेतनभोगी कर्मी के रूप में भृत्य के पद पर काम कर रहा था। इस बीच शासन द्वारा वर्ष 1997 तक के दैनिक वेतनभोगी कर्मियों के नियमितिकरण का आदेश जारी किया गया। (Bilaspur High Court) इस पर शासन के नियमानुसार 7 अगस्त 2008 को राजूलाल का नियमितिकरण करना था। इसके लिए उन्होंने पम्पं अटेंडेंट पद का आवेदन भी किया था, लेकिन निगम के अधिकारियों ने हायर सेकेंडरी उत्तीर्ण नहीं होने का हवाला देकर उन्हें भृत्य पद पर ही नियमित कर दिया।

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छानबीन समिति की अनुशंसा भी दरकिनार

कर्मी राजूलाल चंद्राकर ने बताया कि आवेदन के विपरीत शैक्षणिक योग्यता का गैर जरूरी पैमाना लगाकर भृत्य के पद पर नियमितिकरण और पंम्प अटेंडेंट का काम कराने के विरूद्ध उन्होंने छानबीन समिति में भी अपील की थी। (Bilaspur High Court) इस पर समिति ने उनके पक्ष में फैसला किया था लेकिन निगम के अफसरों ने इसे भी दरकिनार कर दिया। जिसके चलते उन्हें हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ा और कोर्ट ने नियमितिकरण की तिथि से कर्मी को पंप अटेंडेंट के पद का वेतनमान देने का आदेश पारित किया है।

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जनसूचना अधिकारी का भी दायित्व

भृत्य के पद में नियमितिकरण के बाद कर्मी राजूलाल ने न सिर्फ पम्पं अटेंडेंट का काम लिया जाता रहा, बल्कि उन्हें कई महीनों तक जनसूचना अधिकारी की भी जिम्मेदारी दे दी गई थी। (Bilaspur High Court) इस पर कर्मी ने जनसूचना अधिकारी के रूप में गंभीर प्रवृत्ति के काम और अपनी योग्यता का हवाला देकर किसी और को जिम्मेदारी देने की मांग भी की थी, लेकिन अफसरों ने ध्यान नहीं दिया।