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इस तरह केंद्र और राज्य सरकार की इस तकरार में पश्चिम बंगाल के गरीब किसान लाचार दिख रहे हैं, जो पीमए-किसान योजना के लाभ से वंचित हैं। प्रदेश के किसानों की इस योजना में दिलचस्पी ऐसी है कि केंद्र सरकार द्वारा पीएम किसान सम्मान निधि पोर्टल पर किसानों को खुद ऑनलाइन पंजीयन करने का विकल्प देने के बाद प्रदेश के 45,000 किसानों ने इस पर अपना पंजीयन करवा लिया है। मगर, पंजीकृत किसानों को पीएम-किसान सम्मान निधि का लाभ तभी मिल पाएगा, जब प्रदेश सरकार द्वारा इनके पात्र लाभार्थी होने का सत्यापन किया जाएगा।
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केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में संयुक्त सचिव व पीएम-किसान के सीईओ विवेक अग्रवाल ने कहा, “पीएम-किसान सम्मान निधि पोर्टल पर पंजीकृत किसानों के विवरण राज्य सरकारों के पास भेजे जाते हैं, जहां से आधार व भू-राजस्व के रिकॉर्ड की जांच के बाद उनकी पात्रता की जांच की जाती है। जांच की इन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद ही पात्र किसानों के खाते में पीएम-किसान योजना की राशि का हस्तांतरण किया जाता है।”
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ऐसे में पश्चिम बंगाल के किसानों को पीएम-किसान का फायदा तभी मिल पाएगा, जब राज्य सरकार उनकी पात्रता का सत्यापन करेगी। बनर्जी के इस रुख को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अक्सर संकीर्ण राजनीतिक मानसिकता का परिचायक बताती रही है। मगर, राजनीतिक दलों के बीच इस तकरार से किसानों का हक मारा जा रहा है। भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी अग्रवाल ने बताया कि पीएम-किसान सम्मान निधि का लाभ देश के 7.20 करोड़ किसानों को मिलने लगा है, जिन्हें अब तक 33,000 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा चुका है।
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पीएम-किसान सम्मान निधि में एक किसान परिवार को सालाना 6,000 रुपए सीधे हस्तांतरित किया जाता है। तीन किस्तों में इस राशि का भुगतान किया जाता है और प्रत्येक किस्त की राशि 2,000 रुपए होती है। किसानों को इस योजना का लाभ पिछले साल दिसंबर महीने से ही दिया जा रहा है। मगर, किसान जब इस योजना से जुड़ते हैं और इसके तहत अपना पंजीकरण करवाते हैं, उसी समय से उनको योजना का लाभ मिलता है। ऐसे में पश्चिम बंगाल के किसान अब तक तीन किस्तों यानी 6,000 रुपए का लाभ पाने से वंचित रह गए हैं। यह राशि किसानों को कृषि कार्य में मदद के लिए दी जाती है, जिसका इस्तेमाल वे बीज व उर्वरक खरीदने व अन्य आवश्यकतों को पूरा करने में करते हैं।