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नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने देश की मंदी पर जताई चिंता, कहा- 70 सालों की सबसे खराब स्थिति में पहुंचा फाइनेंशियल सेक्टर

locationनई दिल्लीPublished: Aug 23, 2019 02:41:46 pm

Submitted by:

Shivani Sharma

देश में बढ़ती मंदी पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने चिंता जताई
उन्होंने कहा कि बीते 70 सालों में फाइनेंशियल सेक्टर के इतने बुरे हालात नहीं आए

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नई दिल्ली। देश में बढ़ती आर्थिक मंदी से सभी लोग परेशान हैं। इस बार देश की आर्थिक मंदी को खुद नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने माना है। उन्होंने सरकार को जल्द से जल्द सख्त कदम उठाने की सलाह दी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बीते 70 सालों में फाइनेंशियल सेक्टर कभी भी इतने अविश्वास के दौर से नहीं गुजरा है, जितना अभी देखने को मिल रहा है। इस दौर को रोकने के लिए सरकार को जल्द ही कुछ प्रयास करने होंगे।


नोटबंदी और जीएसटी है कारण

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह दौर लंबा नहीं चलना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस समय देश के हालात ऐसे हो गए हैं कि कोई किसी पर भरोसा करने को तैयार नहीं है। उन्होंने इसके लिए यूपीए सरकार में बिना सोचे समझे दिए गए कर्ज को बड़ी वजह बताया। इसके साथ ही उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी को भी इससे जोड़ा है।


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राजीव कुमार ने की बातचीत

उन्होंने एक कार्यक्रम में बातचीत करते हुए कहा कि कोई भी किसी पर भी भरोसा नहीं कर रहा है… निजी क्षेत्र के भीतर कोई भी कर्ज देने को तैयार नहीं है, हर कोई नकदी लेकर बैठा है… आपको लीक से हटकर कुछ कदम उठाने की जरूरत है।’ साथ ही कुमार ने कहा कि हमारे देश ने पिछले 70 सालों में इस तरह की स्थिति का सामना नहीं किया है। इस समय देश की पूरी वित्तीय प्रणाली भारी जोखिम की समस्या झेल रही है।


लिक्विडिटी की हालत भी हुए खराब

राजीव कुमार ने कहा कि बाजार में लिक्विडिटी की हालत बहुत खराब चल रही है। इसको सुधारने के लिए रिजर्व बैंक ने पहले कई कदम उठाए हैं, जिससे सिस्टम में कैश पोजिशन पहले से स्टेबल हुई है। राजीव कुमार ने कहा कि नोटबंदी, जीएसटी और बैंकररप्सी एंड इन्सॉल्वंसी कोड की वजह से ये हालात हुए हैं। इन सभी कारणों से देश में नकदी एक बड़ी समस्या बनी हुई है।

सरकार और उसके विभागों द्वारा विभिन्न सेवाओं के लिए भुगतान में देरी के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यह भी सुस्ती की एक वजह हो सकती है। प्रशासन प्रक्रिया को तेज करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है।

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