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रैगिंग के आरोप में IIT कानपुर के 22 छात्र निलंबित

IIT कानपुर के डिप्टी डायरेक्टर प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि रैगिंग मामले में आरोप साबित होने के बाद छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की गई है

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Jameel Ahmed Khan

Oct 10, 2017

IIt Kanpur

IIT Kanpur

कानपुर। कानपुर आईआईटी में जूनियर छात्रों के साथ हुई रैगिंग के मामले में आईआईटी प्रशासन ने 22 छात्रों को निलंबित कर दिया है। सीनेट में चली काफी लंबी बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया। इन सभी छात्रों ने जांच कमेटी के सामने अपनी बात रखी थी, लेकिन इनका पक्ष आईआईटी प्रशासन के सामने गलत साबित हुआ।

आईआईटी कानपुर के डिप्टी डायरेक्टर प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने मंगलवार को बताया कि रैगिंग मामले में आरोप साबित होने के बाद छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की गई है, जिन 22 छात्रों को निलंबित कर किया गया है, इनमें से 16 छात्रों को तीन साल के लिए जबकि छह छात्रों को एक साल के लिए निलंबित किया गया है।

अगस्त के महीने में आईआईटी के जूनियर फ्रेशर छात्रों के साथ हाल-2 में सीनियर छात्रों ने रैगिंग की थी, जिसके बाद सीनेट की बैठक में इस बात पर काफी चर्चा हुई। जूनियर स्टूडेंट्स की शिकायत के बाद आईआईटी प्रशासन ने एक जांच दल बनाया, जहां जांच में जूनियर छात्रों का आरोप सही पाया गया और रैगिंग के मामले में 22 छात्र निलंबित कर दिए गए।

आईआईटी में रैगिंग का मामला 19 और 20 अगस्त की रात का है। पीडि़त छात्रों ने आरोप लगाया था कि इंस्टीट्यूट के हॉल-2 में सीनियर छात्रों ने जूनियरों पर गलत हरकतें करने के लिए दबाव बनाया। मना करने पर उन्हें गालियां दीं। कुछ ने पिटाई की भी शिकायत की थी।

जूनियर छात्रों की शिकायत पर डीन स्टूडेंट अफेयर्स और एंटी रैगिंग कमेटी ने जांच करने के बाद 22 छात्रों को चिह्नित किया था। इन छात्रों को बर्खास्त करने और एफआईआर करने की सिफारिश की गई थी। एस सैक की रिपोर्ट के आधार पर सभी छात्रों को सीनेट ने निलंबित कर दिया था।

आईआईटी रुड़की ने बनाई चिकनगुनिया की दवा
रुड़की। आईआईटी रुड़की की एक टीम ने चिकनगुनिया की दवा खोजने का दावा किया है। शोधकर्ताओं ने पीपराइजीन नामक ड्रग की एंटी वायरल विशेषताओं का पता लगाया है। यह खोज एंटीवायरल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुई है। बॉयो टेक्रोलॉजिकल विभाग की डॉ. शैली तोमर ने बताया कि रिसर्च के दौरान एंटी वायरल दवा पीपराइजीन लैब टेस्टिंग में चिकनगुनिया वायरस के प्रसार और विकास को रोकने में सफल रही है।

शोधकर्ता डॉ. शैली के अनुसार चिकनगुनिया जैसी घातक बीमारी के लिए नई दवा विकसित करने में एक दशक से भी अधिक का समय लग जाएगा। इसलिए हमने पहले से प्रयोग में ली जा रही दवाओं का पुनर्निर्माण कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अभी इस दवा को जानवरों पर टेस्ट किया जा रहा है और उम्मीद है जल्द इसका मरीजों पर क्लिनिकल ट्रायल भी होगा। यदि ट्रायल सफल रहा तो यह दवा चिकनगुनिया के मरीजों के लिए बेहद लाभकारी होगी।