scriptMotivation Story : नौ साल की उम्र से गरीब बच्चों को पढ़ा रहे बाबर अली | Motivation Story : Babar Ali is teaching poor kids from age 9 | Patrika News

Motivation Story : नौ साल की उम्र से गरीब बच्चों को पढ़ा रहे बाबर अली

locationजयपुरPublished: Oct 01, 2018 10:30:20 am

पश्चिम बंगाल के एक छोटे से शहर में स्कूल जाते समय अपनी ही उम्र के बच्चों को कूड़ा-करकट बीनते देख नौ वर्षीय बाबर अली के मन में उनके लिए कुछ करने का विचार आया।

Babar Ali

Babar Ali

पश्चिम बंगाल के एक छोटे से शहर में स्कूल जाते समय अपनी ही उम्र के बच्चों को कूड़ा-करकट बीनते देख नौ वर्षीय बाबर अली के मन में उनके लिए कुछ करने का विचार आया। बाबर इस बात से दुखी था कि उनके ये मित्र गरीबी के कारण स्कूल नहीं जाते थे और पढ़ाई से महरूम थे। इसलिए उसने अपनी पढ़ाई का कुछ हिस्सा उनके साथ साझा करने का फैसला लिया। मतलब, बाबर अली ने खुद उन गरीब बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया।

कोलकाता से 200 किलोमीटर दूर मुर्शिदाबाद जिले के बेलडांगा शहर के एक सरकारी स्कूल में पांचवीं कक्षा का छात्र बाबर अली ने अपने घर के पीछे के आंगन में गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उस समय उनके बाल मन की एक ख्वाहिश थी कि भारत के हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। गरीबों के लिए शिक्षा का अलख जगाने वाले इस खामोश समाज-सुधारक ने पिछले डेढ़ दशक में सैकड़ों गरीब बच्चों को अपने प्रयासों से शिक्षित किया है। बाबर अब 25 साल के हो चुके हैं।

दुनिया का सबसे कम उम्र का प्रधानाध्यापक
बाबर ने दिए साक्षात्कार में कहा, मैं इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाया कि मेरे मित्र कूड़ा-करकट चुनें और मैं स्कूल जाऊं। इसलिए मैंने उनको अपने घर के आंगन में खुले आसमान में अपने साथ बैठने को कहा, ताकि मैं उनको पढऩा-लिखना सिखा सकूं। बाहर के घर का वह आंगन अब स्कूल बन चुका है। उस जगह पर अब आनंद शिक्षा निकेतन चल रहा है। यह संस्थान 2002 में ही अस्तित्व में आया और बाबर इस स्कूल का प्रधानाध्यपक है। वह दुनिया का सबसे कम उम्र का प्रधानाध्यापक है।

बाबर ने बताया, मैंने आठ विद्यार्थियों को लेकर इस स्कूल की शुरुआत की, जिसमें पांच साल की मेरी छोटी बहन अमीना खातून भी शामिल थी। हम सब अमरूद के एक पेड़ के नीचे रोज दोपहर में पढऩे बैठते थे, ताकि बच्चे सुबह में रैग पिकर या बीड़ी बनाने का काम भी कर सकें। करीब 80 लाख आबादी वाले मुर्शिदाबाद जिले में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले वयस्कोंऔर बच्चों की आबादी काफी ज्यादा है, जो खेतों में काम करते हैं या बीड़ी बनाते हैं। मुर्शिदाबाद देश में बीड़ी का सबसे बड़ा उत्पादक है।

टीचर देने लगे चॉक का डिब्बा
बालक बाबर स्कूल से उपयोग के बाद बचे चॉक के टुकड़े वहां से लाता था और अपने पड़ोस के बच्चों को पढऩा-लिखना सिखाता था। वह उन्हें बांग्ला भाषा, विज्ञान, भूगोल के अलावा गणित की बुनियादी बातें भी सिखाता था। वह मुफ्त में इन बच्चों को पढ़ाता था और खुद भी स्कूल में पढ़ता था। बाबर ने कहा, मेरे स्कूल के शिक्षकों ने सोचा कि मैं दीवार पर लिखने के लिए चॉक चुराकर ले जा रहा हूं। लेकिन उनको जब यह मालूम हुआ कि मैं अपने घर में अन्य बच्चों को पढ़ाता हूं तो वे मुझे हर सप्ताह चॉक का एक डिब्बा देने लगे।

बाबर ने बताया, मुझे इस काम में मेरी मां बानुआरा बीबी और पिता मोहम्मद नसीरूद्दीन से काफी मदद मिली। मेरी मां आंगनवाड़ी कर्मचारी हैं और पिता जूट के कारोबारी। दोनों ने स्कूल में ही पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन उन्होंने अपने पड़ोस को शिक्षित बनाने के लिए उनका साथ दिया। उन्होंने बताया, मैं जिन बच्चों को पढ़ाता हूं उनको अपने परिवार से बहुत कम मदद मिलती है। अपने परिवार और शिक्षकों की मदद से मैं स्कूल चलाता रहा हूं और बच्चों को पोशाक, किताबें और पढऩे लिखने की अन्य सामग्री मुहैया करवाता रहा हूं।

बाबर के शिक्षकों के अलावा जिले के अधिकारियों, इलाके के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों व अन्य लोगों से दान में मिलने वाली रकम से बाबर का संस्थान चलता रहा है। अब यह संस्थान उनके घर के ही पास एक नए भवन में चला गया है और इसे पश्चिम बंगाल विद्यालय शिक्षा विभाग से निजी स्कूल के तौर पर मान्यता भी मिली है। बाबर ने कहा, आनंद शिक्षा निकेतन में सर्वांगीण शिक्षा पर जोर दिया जाता है क्योंकि मैं चाहता हूं कि विद्यार्थी भविष्य में चाहे जो भी पेशा अपनाएं मगर उनसे समाज में सकारात्मक प्रभाव पडऩा चाहिए।

पहली से आठवीं कक्षा तक की होती है पढ़ाई
विगत 16 साल में (वर्ष 2002 से लेकर अब तक) बाबर ने 5,000 से ज्यादा बच्चों को कक्षा एक से लेकर आठ तक पढ़ाया है, उनमें से कुछ बतौर शिक्षक वहां काम करने लगे हैं। उनके स्कूल में वर्तमान में 500 छात्र-छात्राएं हैं और दस अध्यापक व अध्यापिकाएं हैं। इसके अलावा स्कूल में एक गैर-शैक्षणिक कर्मचारी हैं। सह-शिक्षा में संचालित इस स्कूल में पहली से लेकर आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है।

बाबर ने कल्याणी विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की डिग्री हासिल की है और वह इतिहास में एम.ए. कर रहे हैं। वह जिले में महिला साक्षरता दर में बदलाव लाना चाहते हैं जोकि जिला प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, इस समय 55 फीसदी है। बाबर ने कहा, अकेली सरकार व्यवस्था में परिवर्तन नहीं ला सकती है। देश में बच्चों क लिए गुणात्मक शिक्षा लाने के लिए हम सबको आगे आना होगा।

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