
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने विश्वविद्यालय एवं कॉलजों के शिक्षकों को लेकर एक अहम निर्णय लिया है। कोर्ट ने कहा कि व्याख्याता के रूप में तदर्थ नियुक्ति को कॅरियर एडवांसमेंट स्कीम (सीएएस) के तहत वरिष्ठ वेतनमान के लिए पात्र नहीं माना जा सकता। राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर बनाम जफरसिंह मामले को निस्तारित करते हुए जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने यह फैसला सुनाया।
पीठ ने कहा कि सहायक प्रोफेसर के तौर पर नियमित नियुक्ति से पहले व्याख्याता के रूप में तदर्थ नियुक्ति में की गई सेवाओं को सीएएस के तहत वरिष्ठ वेतनमान के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए नहीं गिना जा सकता है। फैसले में कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादियों से कोई धन वसूली नहीं की जानी चाहिए। वे अपनी सेवानिवृत्ति/सेवा शर्तों की गणना करने और सेवानिवृत्ति के बाद के लाभों के लिए वेतन और परिलब्धियों के काल्पनिक लाभ के हकदार होंगे, लेकिन सीएएस के तहत किसी भी लाभ के अनुदान के बिना। प्रतिवादियों के अन्य लाभ नहीं रोके जाएंगे।
Published on:
09 Aug 2024 02:18 pm
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