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जमानत भी न बचा पाए नेता जी! जानिए चुनाव में ‘जमानत जब्त’ होना किसे कहते हैं, इसके लिए कितने वोट हैं जरूरी

Forfeiture of Security Deposit in Election: चुनाव में हर उम्मीदवार को नामांकन करते समय एक तय राशि चुनाव आयोग के पास जमा करनी होती है, जिसे 'जमानत राशि' कहा जाता है। जब उम्मीदवार अपने निर्वाचन क्षेत्र के अनुसार तय मत प्राप्त करने में विफल होता है तो इस दशा में उसकी जमानत जब्त हो जाती है।

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What is Forfeiture of Security Deposit in Election

राजनीति में 'जमानत जब्त' होना साख़ में बट्टा लगने जैसा होता है। चुनावी नीतीजों के सामने आने के बाद ऐसा आम-तौर पर लोगों की बात-चीत में भी सुनने को मिलता है कि, 'वो तो अपनी जमानत' भी नहीं बचा पाए...।' लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि, आख़िर जमान जब्त होनो किसे कहते हैं और असल मायनों में इसका क्या अर्थ होता है। आज देश की सबसे सघन आबादी वाले सूबे उत्तर-प्रदेश सहित कुल 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ रहे हैं ऐसे में एक बार फिर से ये शब्द 'जमानत जब्त' सुनने और पढ़ने को मिलेगा। तो आइये आपको जमानत जब्त होने के बारीकियों के बारे में बताते हैं-

क्या होता जमानत जब्त होना:

सबसे पहले ये समझ लें कि, आखिर 'जमानत जब्त' होना क्या होता है? दरअसल, चुनाव लड़ने के लिए हर उम्मीदवार को एक तयशुदा रकम बतौर सिक्योरिटी डिपॉजिट चुनाव आयोग में जमा करनी होती है और जमा की गई इस रकम को ही जमानत राशि कहा जाता है। यदि चुनाव के नतीजे आने के बाद उक्त उम्मीदवार आयोग द्वारा तय किए गए वोटों की संख्या हासिल नहीं कर पाता है तो उसके द्वारा जमा की गई राशि कर ली जाती है। इस स्थिति में उक्त उम्मीदवार की 'जमानत जब्त' हो जाती है।

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नियम के अनुसार यदि किसी प्रत्याशी को किसी निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए कुल विधिमान्य मतों की संख्या के छठे भाग या 1/6 से कम वोट मिलते हैं तो उसकी जमानत जब्त (Forfeiture of Security Deposit) मान ली जाती है। सीधे शब्दों में समझें तो, जब कोई प्रत्याशी चुनाव में कुल मतों का छठवां हिस्सा प्राप्त करने में विफल हो जाता है तो आयोग यह राशि जब्त कर लेता है अन्यथा उसे वापस कर दी जाती है।


राजनीति के परिदृश्य में इसे अपनी साख़ भी न बचा पाना भी कहा जाता है। यहां ये जानना जरूरी है कि देश में होने वाले हर तरह के चुनाव में जमानत राशि भिन्न होती है और पंचायत चुनाव से लेकर राष्ट्रपति तक के चुनाव में इसका इस्तेमाल होता है। तो आइये जानते हैं किस चुनाव में कितनी होती है जमानत राशि-

लोकसभा चुनाव की जमानत राशि:

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 34 1 (a) के अनुसार ‘संसदीय निर्वाचन क्षेत्र’ के लिए चुनाव लड़ने के लिए 25 हजार रुपये की जमानत राशि जमा करना होता है। वहीं धारा 34 1(b) के अनुसार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशी को सिर्फ आधी राशि यानी कि 12,500 रुपये जमा करनी होता है।

विधानसभा चुनाव के लिए जमानत राशि:

विधानसभा चुनाव जिसकी चर्चा आज प्रमुख है उसके लिए जमानत राशि कम होती है। इस नियम के अनुसार सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को नामांकन भरते समय बतौर जमानत राशि 10 हजार रुपये की रकम आयोग में जमा करना होता है। वहीं अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को आधी रकम यानी कि 5,000 रुपये बतौर सिक्योरिटी डिपॉजिट जमा करना होगा।

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव :

राष्ट्रपति को भारत के संसद के दोनो सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) तथा साथ ही राज्य विधायिकाओं (विधान सभाओं) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा 5 वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है। ये देश का सबसे शिर्ष पद माना जाता है। प्रेसिडेंट एंड वाइस प्रेसिडेंट इलेक्शन एक्ट, 1952 के अनुसार इन दोनों पदों के चुनाव के लिए उम्मीदवार को 15 हजार रुपये की रकम बतौर जमानत राशि जमा करनी होती है।


कब वापस होती है जमानत रााशि:

जैसा कि हमने पूर्व में आपको बताया कि, जमानत राशि हर चुनाव के अनुसार भिन्न होती है तो इसे जब्त करने या वापस करने के भी कई अलग परिस्थितियां होती हैं। यदि उम्मीदवार अपने निर्वाचन क्षेत्र में पड़े हुए कुल मतों का 1/6 वोट हासिल करने में विफल होता है तो उसकी राशि को आयोग द्वारा जब्त कर लिया जाता है। लेकिन यदि वो 1/6 या उससे ज्यादा वोट प्राप्त कर लेता है, भले ही वो हार जाए उस स्थिति में उसकी राशि को लौटा दिया जाता है। वहीं यदि विजेता उम्मीदवार को हर हाल में जमानत राशि वापस कर दी जाती है, भले ही वो कुल मतों का 1/6 हिस्सा प्राप्त करने में असफल हो।

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इसके अलावा यदि चुनाव से पूर्व यानी वोटिंग से पहले किसी उम्मीदवार की मौत हो जाती है तो इस दशा में आयोग उक्त उम्मीदवार के परिजनों को जमानत राशि वापस कर देता है। उम्मीदवार का नामांकन रद्द होने या फिर नामांकन वापस लेने की स्थिति में जमानत राशि वापस कर दी जाती है। हालांकि जमानत राशि वापस होने की कई अन्य स्थितियां भी हैं जो अलग-अलग होती हैं।