
बोफोर्स के मुद्दे पर 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केंद्र से बाहर हो गई। बगावत करने वाले वीपी सिंह के नेतृत्व में गैर-कांग्रेसी जनता दल की सरकार बनी। इसी परिप्रेक्ष्य में 1990 में प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस का मुकाबला संयुक्त विपक्ष के गठबंधन से हुआ।
जनता दल व भाजपा का चुनावी गठबंधन था, जिसके चलते भाजपा 269 सीटों पर चुनाव लड़ी और जनता दल 117 सीटों पर। कुछ सीटों पर दोनों दलों के प्रत्याशी थे। राज्य में भी कांग्रेस के खिलाफ माहौल था, जो चुनाव परिणाम में परिलक्षित हुआ। भाजपा व जनता दल को कुल 248 सीटें मिलीं। कांग्रेस 56 पर सिमट गई। कांग्रेस के लिए चुनाव परिणाम आपातकाल के बाद वाले विधानसभा चुनाव से भी खराब थे, जब उसे 84 सीटें मिली थीं।
कद्दावर नेता जीते
भाजपा को 320 में से 220 सीटें मिलीं। ऐसी बड़ी सफलता भाजपा को दोबारा नहीं मिली। भाजपा के लिए यह जीत इसलिए भी ऐतिहासिक थी कि उसने 269 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसके 82 प्रतिशत प्रत्याशी सफल रहे। चुनाव का दूसरा चौंकाने वाला तथ्य था बहुजन समाज को दो सीटों पर सफलता। प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बसपा को पहली बार सफलता मिली थी। इस चुनाव में अब तक की सबसे कम सीटें मिलने के बाद भी कांग्रेस के अर्जुन सिंह, श्यामाचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा (तीनों पूर्व मुख्यमंत्री), श्रीनिवास तिवारी, लक्ष्मण सिंह, कृष्णपाल सिंह, राजेंद्र शुक्ला, सुरेश सेठ, झुमुकलाल भेडिय़ा आदि चुनाव जीत गए। श्यामाचरण अपनी परंपरागत विधानसभा सीट राजिम के अलावा भाटापारा विधानसभा से भी चुनाव लड़े और दोनों सीटों पर विजयी रहे। बाद में उन्होंने भाटापारा सीट छोड़ दी। कांग्रेस से चुनाव हारने वालों में उनके प्रमुख नेता प्यारेलाल कंवर, चरणदास महंत, बिसाहूलाल सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री बृजलाल वर्मा के पुत्र देव प्रकाश वर्मा, वासुदेव चंद्राकर, विमला वर्मा, दुर्गादास सूर्यवंशी, जमुना देवी, संपत जाजू आदि शामिल थे।
भाजपा की बड़ी जीत के बाद भी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष समेत कई दिग्गज हारे
भाजपा को इतनी बड़ी जीत मिलने के बाद भी पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लखीराम अग्रवाल, नारायण सिंह केसरी, सत्यनारायण सत्तन, मथुरा प्रसाद महंत जैसे कुछ नेता चुनाव जीतने में सफल नहीं रहे। अलबत्ता पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा, रामहित गुप्ता, शीतला सहाय जैसे लगभग सभी बड़े नेता विजयी रहे। जनता दल के समाजवादी घटक के रामलखन सिंह, प्रेमलाल मिश्र, आनंद मिश्रा, मदन तिवारी, सोबरन सिंह, बच्चन नायक आदि अपना चुनाव हार गए। जबकि सूबेदार सिंह, डॉ. गोविंद सिंह, लक्ष्मीनारायण यादव, जगदंबा प्रसाद निगम, रामानंद सिंह, केडी देशमुख आदि विजयी रहे। जनता दल से जीतने वालों में कांग्रेस घटक के गोविंद सिंह, लक्ष्मण सतपथी, तरुण चटर्जी, संतोष अग्रवाल, अशोक राव शामिल थे। भाजपा के पूर्व नेता डॉ. रमेश ही जद की टिकट पर विधायक चुने गए। पूर्व राज परिवारों का प्रभाव कमजोर पड़ता दिखाई दिया। बसना से कांग्रेस के राजा महेंद्र बहादुर सिंह हार गए तो सरायपाली से उनकी बेटी पुखराज सिंह भी हार गईं।
(राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर की पुस्तक 'चुनावी राजनीति मध्यप्रदेश' से प्रमुख अंश...)
यह भी पढ़ेंः
एक किस्साः माधवराव सिंधिया जीवित होते तो देश के प्रधानमंत्री होते
Political Kisse: एक हार जिसने बदल दी शिवराज की किस्मत, बन गए सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री
एक किस्साः मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को क्यों शूट करना चाहते थे एक राज्यपाल
जब अटल बिहारी वाजपेयी ने दहेज में मांग लिया था 'पूरा पाकिस्तान'
एक किस्सा ऐसे सीएम का जो महज 24 घंटे के लिए बना था मुख्यमंत्री
Updated on:
18 Oct 2023 09:31 am
Published on:
18 Oct 2023 09:25 am
बड़ी खबरें
View Allचुनाव
ट्रेंडिंग
