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Kalyan Singh का निधन बीजेपी के लिए बड़ा झटका, 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले खड़ी हुईं ये चुनौतियां

Kalyan Singh को इतना ज्यादा महत्व देने के पीछे राजनीतिक निहितार्थ क्या हैं?

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लखनऊ

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Hariom Dwivedi

Aug 22, 2021

 Kalyan Singh Importance in UP Assemble Elections 2022

File Pic

लखनऊ. Kalyan Singh Importance in UP- उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (89) का शनिवार को लखनऊ में निधन हो गया। रविवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा लखनऊ पहुंचे और कल्याण सिंह के पार्थिव के दर्शन कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत सहित संघ के कई पदाधिकारी व दर्जनों केंद्रीय मंत्री पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन करेंगे। कल्याण सिंह के निधन के बाद से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मोर्चा संभाल रखा है। परिजनों को ढांढस बंधाने के साथ ही वह अंतिम संस्कार की तैयारियां भी देख रहे हैं। दूसरे राज्यों के बड़े बीजेपी नेताओं का भी आना जारी है। बीजेपी के सभी कार्यक्रम रद्द कर दिये गये हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी की ओर से कल्याण सिंह को इतना ज्यादा महत्व देने के राजनीतिक निहितार्थ क्या हैं?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के दिग्गज नेता कल्याण सिंह का यूं जाना बीजेपी के लिए बड़ा झटका है। कल्याण सिंह लोधी बिरादरी से आते हैं, यूपी में जिसका वोट बैंक करीब 3 फीसदी है। बुंदेलखंड, पूर्वांचल और पश्चिमी यूपी के कई जिलों में यह हराने-जिताने का माद्दा रखते हैं। खासकर रामपुर, ज्योतिबा फुले नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामाया नगर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा जिलों में लोध मतदाता 5 से 10 फीसदी तक हैं। जो अब तक कल्याण सिंह के जरिए बीजेपी के साथ जुड़े हैं।

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कल्याण सिंह ने बीजेपी पर से सवर्णों की पार्टी का ठप्पा हटाया
वह कल्याण सिंह ही थे जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर से सवर्णों की पार्टी होने का ठप्पा हटाया था और पिछड़ी जातियों के बीच बीजेपी को पॉपुलर किया था। 'लोधी' ओबीसी समुदाय की पहली जाति थी जिसे कल्याण सिंह बीजेपी के करीब लाये। अब तक पार्टी के साथ लोधी के अलावा कुर्मी, कुशवाहा और जाटों जैसी कई गैर-यादव जातियां जुड़ी हैं। बीजेपी नहीं चाहती है कि 2022 में पिछड़ों के वोटबैंक में बंटवारा हो सके। इसीलिए बड़ी संख्या में यूपी के पिछड़े नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी। साथ ही नया कानून भी पास करा लिया। खासकर तब जब किसान आंदोलन के कारण जाट नाराजगी जाहिर कर रहे हैं, बीजेपी लोधों को छिटकने नहीं देना चाहती।

बीजेपी में अब लोधी चेहरा कौन?
बीजेपी की दिक्कत है कि उसके पास कल्याण सिंह के बाद उसके पास उन जैसा कोई बड़ा लोध चेहरा नहीं है। एक बड़ा नाम उमा भारती है, लेकिन वह उतनी प्रभावी नहीं हैं। इनके अलावा कई और नेता हैं, जो सिर्फ क्षेत्र विशेष तक ही सीमित हैं। ऐसे में बीजेपी की कोशिश है कि लोधी बिरादरी को अहसास कराया जाये कि कल्याण सिंह के बाद भी बीजेपी में ही उनके हित सुरक्षित है। यही कारण है कि चाहे पीएम मोदी हों या फिर सीएम योगी, सभी कह रहे हैं कि कल्याण सिंह के सपनों को पूरा करने में कोई कमी नहीं रखेंगे।

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