
वाराणसी के गंगा घाट
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
वाराणसी. काशी धर्म, विद्या और संस्कृति की राजधानी है। यह एक से बढ़ कर एक दिग्गजों की जन्म और कर्मस्थली भी रही है। डॉ. संपूर्णानंद रहे हों या उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी रुस्तम सैटिन। पंडित कमलापति त्रिपाठी हों या लोकबंधु राजनारायण। इन सभी का राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी दखल रहा। लेकिन समय के साथ-साथ इनमें से कई नेताओं की विरासत अब नेपथ्य में चली गई है। यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया को हिंदी का ककहरा सिखाने वाले का अब कोई नाम लेवा नहीं रहा। यही वजह है कि अब वाराणसी, बाहरी नेतृत्व की बैसाखी पर चलने को मजबूर है।
डॉ. संपूर्णानंद: कभी नहीं किया चुनाव प्रचार
पूर्वांचल की राजनीति में सबसे बड़ा नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ संपूर्णानंद का है। जो वाराणसी शहर दक्षिणी से दो बार विधायक रहे। 1955 से 1960 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहे। 1962 में राजस्थान के राज्यपाल रहे। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति रहे। वह कभी चुनाव क्षेत्र में प्रचार करने नहीं गए।
कमलापति त्रिपाठी: राजनीति में चला बहू का सिक्का
1922 में महात्मा गांधी की सोच से प्रभावित हो कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने वाले पंडित कमलापति पहली बार चंदौली से विधायक बने, यूपी में शिक्षा मंत्री, फिर मुख्यमंत्री और उसके बाद केंद्र में रेल मंत्री बने। अखिल भारतीय कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे। चंदौली को आज धान का कटोरा कहा जाता है। यह कमलापति त्रिपाठी की ही देन है। पंडित जी के पुत्र लोकपति त्रिपाठी भी प्रदेश की राजनीति में अच्छी दखल रखते रहे। सिंचाई मंत्री रहे। उनकी लोकपति की पत्नी चंद्रा त्रिपाठी भी राजनीति में अच्छी खासी दखल रखती रहीं। चंदौली से सांसद भी चुनी गईं। एक पुत्र राजेशपति त्रिपाठी एमएलसी रहे। राजेशपति के पुत्र ललितेशपति त्रिपाठी मडि़हान से विधायक रहे।
श्यामलाल यादव-राजनारायण: इंदिरा को दी थी मात
राज्यसभा के सभापति रहे श्यामलाल यादव की पुत्रवधू शालिनी यादव मेयर और 2019 भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में थीं। इसी तरह लोकबंधु राजनारायण यहां के गंगापुर क्षेत्र के निवासी थे। जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पटकनी दी थी। उन्होंने लगभग सात सौ आंदोलनों का नेतृत्व किया और करीब 80 बार जेल गए। 1952 से 1957 और 1957 से 1962 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। 1966 से 1972 और 1974 से 1977 तक राज्यसभा सदस्य रहे। दो बार लोकसभा सदस्य रहे। 1977 में राजनारायण मोरारजी देसाई की सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बने।
सुधाकर-रत्नाकर पांडेय: सोनिया के हिंदी शिक्षक
सुधाकर पांडेय राज्यसभा के सदस्य रहे। उनके भाई डॉ रत्नाकर पांडेय भी राज्यसभा के सदस्य रहे। गांधी परिवार की नजदीकियां ही रहीं कि सोनिया गांधी के हिंदी के शिक्षक बने। लेकिन इन दोनों भाइयों के निधन के बाद आगे की पीढी में कोई उस विरासत को बढ़ाने वाला आगे नहीं आया।
Published on:
03 Jan 2022 06:06 pm
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