
Uttar Pradesh Assembly Elections
डॉ अजय कृष्ण चतुर्वदी/ पत्रिका न्यूज नेटवर्क
वाराणसी. Uttar Pradesh Assembly Elections 2022 का बिगुल बजते ही जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी में भगदड़ मची है उसने एक बारगी उसके थिंक टैंक को बैकफुट पर ला दिया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि कल तक जो भाजपा अखिलेश को ट्विटर का नेता बताते नहीं थक रही थी, उस अखिलेश ने भाजपा के रणनीतिकारों को गहरी चिंता में डाल दिया है। वो चाहे जितना डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश करें पर जो तस्वीर सामने आ रही है उसके तहत 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की डगर आसान नहीं होगी।
भाजपा के चक्रव्यू में उसी को घेरने में कामयाब होते दिख रहे अखिलेश
अखिलेश यादव को यूपी की राजनीति का 'बबुआ' मानने वाले अब गहरी चिंता में हैं। वजह साफ है अखिलेश ने ठीक वही रास्ता अख्तियार किया है जो 2017 में भाजपा ने किया था। उस वक्त भाजपा ने भी जाति आधारित छोटे-छोटे क्षत्रपों को अपने साथ मिलाया था। किसी को पार्टी में शामिल करा लिया तो किसी के साथ गठबंधन कर लिया। उसी में ओपी राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, अनुप्रिया पटेल प्रमुख रहे। नतीजा साफ है इन सभी ने भाजपा को सत्ता के सिंहासन तक प्रचंड बहुमत के साथ पहुंचाया।
वाई-एम फैक्टर के स्टीकर को धुंधला करते दिख रहे अखिलेश
अखिलेश यादव हो या समूची समाजवादी पार्टी, उनके विरोधी उन पर यादव-मुस्लिम गठजोड़ (वाई-एम फैक्टर) का आरोप लगाते रहे। इसी का प्रचार कर यादव,जाटव और मुस्लिम से इतर अति पिछड़ों औ दलितों को अपने पाले में किया। इसमें राजभर, कुर्मी, कोइरी, नोनिया सहित वो तमाम अति पिछड़ी जातियां शामिल हैं जिनके नेता के तौर पर ओपी राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान आदि को देखा जाता है। इस तरह इस चुनाव में अखिलेश पर सिर्फ वाईएम फैक्टर का ठप्पा नहीं लगाया जा सकता।
अति पिछड़ों के पाला बदल से पूर्वांचल ही नहीं यूपी में दिया मैसेज
स्वामी प्रसाद मौर्या, दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं के पाला बदल के साथ ही न सिर्फ पूर्वांचल बल्कि समूची यूपी में एक मैसेज तो दे ही दिया है। ये बताने की भरपूर कोशिश की है कि योगी सरकार अति पिछड़ा विरोधी साबित हुई है। इनके पाला बदल ने 85 बनाम 15 फीसदी के राजनीतिक खेल को उजागर किया है।
डेढ-दो साल से राजभर इसी फिराक में जुटे रहे
दरअसल भाजपा के साथ गठजोड़ कर सत्ता तक पहुंचाने में प्रमुख योगदान करने वाले ओपी राजभर पिछले डेढ़-दो साल में घूम-घूम कर यह प्रचारित करने की कोशिश की कि भाजपा अति पिछड़ा हितैषी नहीं है। एक साथ इतनी तेज हुए पाला बदल से ऐसा प्रतीत होता है कि ओपी राजभर अपनी इस मुहिम में वो अब सफल होते दिख रहे हैं।
धर्म के एजेंडे पर जाति भारी
ये बड़े नेताओं का पाला बदल भाजपा के धर्म के एजेंडे पर जाति की राजनीति को भारी साबित करता है। इसमें राजभर, कुर्मी, कोइरी, नोनिया जैसी जातियां हैं प्रमुख हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन नेताओं के सपा से जुड़ने से अगर दो से तीन फीसद पर असर डाला तो भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।
पूर्वांचल में अनुप्रिया बनाम कृष्णा व पल्लवी पटेल
पूर्वांचल की बात करें तो अभी अनुप्रिया पटेल जरूर भाजपा के साथ हैं। लेकिन सिर्फ अनुप्रिया ही 90 फीसदी कुर्मी जाति की नेता हैं यह कहना सही नहीं होगा। इस चुनाव में अपना दल के जनक डॉ सोनेलाल की पत्नी कृष्णा पटेल और उनकी छोटी बेटी पल्लवी पटेल की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी। कृष्णा और पल्लवी मिल कर अगर कुर्मी वोटो के ध्रुवीकरण में 70-30 का अनुपात भी हासिल करने में सफल होती हैं तो ये भी भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी करेगा।
कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा तो हालात और तेजी से बदलेंगे
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अति पिछड़ों के दिग्गजों के पाला बदल में जो नया समीकरण बनाने की कोशिश की है उसमें कांग्रेस का वोट शेयर बड़ा फासला तय कर सकता है। अगर कांग्रेस को इस चुनाव में दो फीसद का भी फायदा होता है तो दो दर्जन से ज्यादा सीटें प्रभावित होंगी। वैसे भी प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस की स्थिति 2017 से काफी बेहतर हुई है।
मोदी फैक्टर पर रहेगी निगाह
बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन उसके बाद से जिस तरह से दिल्ली, पंजाब, बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आए, उस पर गौर करें तो इस बार मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व का भी लिटमस टेस्ट हो सकता है।
अप्रत्याशित नतीजों का अंदेशा
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पूर्वांचल की 33 जातियां अप्रत्याशित परिणाम दें तो चौकने वाला नहीं होगा। वो बताते हैं कि वर्तमान परिवेश में ऐसा दिख रहा है कि कई सीटों पर पांच से 10 हजार मतों से भाजपा की मुश्किल बढ़ा सकता है।
Published on:
16 Jan 2022 03:22 pm
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