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Uttar Pradesh Assembly Election 2022 : महोली में सपा को हराकर खिला था कमल, यहां चीनी मिल बड़ा मुद्दा

सीतापुर जिले की महोली विधानसभा सीट (Maholi Assembly seat) पर कब्जा करने के लिए राजनीतिक दलों के बीच जोर आजमाइश तेज होने लगी है। चुनाव का ऐलान होने के बाद उम्मीदवार अब टिकट के लिए दौड़भाग करने लगे हैं। ऐसे में यहां चुनावी मुकाबला काफी रोचक होने वाला है।

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लखनऊ

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Shiv Singh

Jan 08, 2022

Uttar Pradesh Assembly Election 2022 : महोली में सपा को हराकर खिला था कमल, यहां चीनी मिल बड़ा मुद्दा

Uttar Pradesh Assembly Election 2022 : महोली में सपा को हराकर खिला था कमल, यहां चीनी मिल बड़ा मुद्दा

सीतापुर. (पत्रिका न्यूज नेटवर्क). महोली विधानसभा क्षेत्र में Uttar Pradesh Assembly Election 2022 की चर्चा होते ही यहां की चीनी मिल को लेकर यहां के लोगों का दर्द जुबां पर आ ही जाता है। लंबे समय से चीनी मिल शुरु करने का वादा करके वोट पाने वाले नेता चुनाव के बाद इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं। अब फिर चुनाव आ रहा है तो क्षेत्र में यह मुद्दा चर्चा में है लेकिन इसके बावजूद यह कहना मुश्किल है कि लोगों को राहत देने वाली कोई खबर मिल पाएगी।

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पिछले विधानसभा चुनाव में महोली विधानसभा सीट ( Maholi Assembly seat) से भाजपा के शंशाक त्रिवेदी निर्वाचित हुए थे। त्रिवेदी को 80938 वोट मिले थे। त्रिवेदी ने सपा के अनूप कुमार गुप्ता को हराया था। अनूप गुप्ता को 772215 वोट मिले थे। वर्ष 2012 के चुनाव में अनूप गुप्ता 87160 वोट हासिल कर विधायक बने थे जबकि दूसरे नंबर पर रहे बहुजन समाज पार्टी के महेश चंद्र मिश्र को 64445 वोट मिले थे।
वर्ष 2022 के ये है चुनौती
Uttar Pradesh Assembly Election 2022 को लेकर न केवल भाजपा के लिए सीट पर कब्जा बरकरार रखने की चुनौती है बल्कि सपा भी पूरी ताकत से इस सीट को वापस पाने की कोशिश में है। क्षेत्र में अखिलेश यादव के नाम पर चौपालें लगाकर किसानों की समस्याएं सुनी जा रही हैं और उनकी समस्याएं दूर करने का आश्वासन भी दिया जा रहा है। भाजपा जन विश्वास यात्राओं के जरिए अधिक से अधिक चुनावी समर्थन जुटाने की फिराक में है। सपा के कार्यकर्ता जहां अखिलेश यादव सरकार की उपलब्धियां गिनाकर समर्थन जुटाने की कोशिश में हैं तो भाजपा मोदी-योगी सरकार की उपलब्धियों के सहारे जीत का दावा कर रहे हैं।

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चीनी मिल बड़ा मुद्दा
दरअसल महोली चीनी मिल के विस्तार के लिए 1985 में जमीन अधिग्रहीत की गई थी। तब लोगों से यह वादा भी किया गया था कि उन किसानों के परिवार के लोगों को नौकरी भी मिलेगी जिनकी जमीन अधिग्रहीत की गई है लेकिन वक्त बीतने के साथ ही नौकरी की आस भी धूमिल हो गई। चीनी मिल का विस्तार तो नहीं हुआ उल्टे जिन हजार कर्मचारियों को काम मिला था, 1998 में घाटे के कारण मिल बंद होने से उनकी भी नौकरी चली गई। स्थानीय लोग कहते हैं घाटे से उबरने के लिए कोई ठोस प्रयास हुए होते तो कम से कम क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिलता। हालांकि स्थानीय विधायक शशांक त्रिवेदी त्रिवेदी समय-समय पर लोगों को आश्वस्त करते रहते हैं कि इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री से बात हो चुकी है लेकिन अभी जमीनी हकीकत पहले जैसी ही है। मूंगफली की खेती करने वाले किसान भी रकबा कम करते जा रहे हैं, क्योंकि किसानों को मूंगफली का बाजार नहीं मिल रहा है। इसकी एक बड़ी वजह मूंगफली आधारित उद्योगों पर ताला लगना है।