
सुशील कुमार
Rajasthan Assembly Election 2023 : सियासत चाहे संसद में पहुंचने की हो या फिर विधानसभा तक सीट पाने की... नारों का बड़ा योगदान रहा है। चुनाव में नारों ने ऐसी हवा बनाई कि नेताओं को सत्ता तक पहुंचाया और सरकारों को गिराया भी। इंदिरा हों या फिर राजीव गांधी या अटल बिहारी, सही मायने में नारों ने जनता का मूड बदला और इन्हें देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी मिली। अबकी बार मोदी सरकार, अच्छे दिन आने वाले हैं, आदि ने मोदी के समर्थन में मतदाताओं का मन बनाया। राजस्थान में इन दिनों विधानसभा चुनाव जोरों पर है, लेकिन नारों की जगह बगावती सुर ज्यादा तेज सुनाई दे रहे हैं। ऐसे में पार्टियां नारे गढ़े या फिर अंदरूनी कलह शांत करें। अभी भी भाजपा और कांग्रेस में बगावत जारी है। ऐसे में चुनाव में नारों का जोर अब शायद ही सुनाई दे। राजस्थान में दोनों दलों में इतने बड़े पैमाने पर बगावत के सुर पहली बार सुनाई दिए हैं।
यूपी-बिहार में नारों ने बनाया मुख्यमंत्री
राजद का नारा था- जब तक रहेगा समोसे में आलू... तब तक रहेगा बिहार में लालू। इस नारे ने लालू को सीएम बनाए रखा। मुलायम ङ्क्षसह- यूपी में है दम, जुर्म यहां है कम नारे से आगे बढ़े। इसी तरह बसपा सुप्रीमो मायावती भी नारों के बूते सीएम की कुर्सी तक पहुंचीं। उनका नारा था पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा, चढ़ गुंडों की छाती पर, मोहर लगा दो हाथी पर आदि नारे खूब चर्चित रहे।
अबकी बारी... और बन गए पीएम
अबकी बारी अटल बिहारी नारे से भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में सफल रहे। 'ये देखो इंदिरा का खेल, खा गई शक्कर पी गई तेल, हम सौगंध राम की खाते हैं... मंदिर वहीं बनाएंगे, कल्याण ङ्क्षसह कल्याण करो मंदिर का निर्माण करो, राम लला हम आएंगे... मंदिर वहीं बनाएंगे, ये तो केवल झांकी है... काशी मथुरा बाकी है आदि नारों ने लोगों का मानस बदला।
नारों ने किया सत्ता से बेदखल
1977 में जनता पार्टी के नारे- इंदिरा हटाओ, देश बचाओ की आंधी में आयरन लेडी टिक न सकीं। हालत यह हो गई कि खुद रायबरेली में ही हार गईं। इसी प्रकार 1996 में अटल बिहारी की भ्रष्टाचार मुक्त छवि को लेकर बनाए गए नारों को लेकर सत्ता में आई भाजपा 2004 में इंडिया शाइङ्क्षनग के अपने ही नारे में चमक खो बैठी और सत्ता से दूर हो गई।
Published on:
02 Nov 2023 10:15 am
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