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West Bengal Assembly Elections 2021: यह चुनाव तय करेगा शुभेंदु अधिकारी का राजनीतिक अस्तित्व!

नंदीग्राम में करीब 14 साल पहले कृषि भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर हुए हिंसक विरोध-प्रदर्शन के दौरान दीदी यानी ममता बनर्जी और दादा यानी शुभेंदु अधिकारी एकजुट हुए थे। वर्ष 2011 में तृणमूल सत्ता में आई। मगर इस बार 'दीदी' और 'दादा' की राहें अलग-अलग हैं और दोनों एकदूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं।  

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Ashutosh Pathak

Mar 31, 2021

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नई दिल्ली।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Elections 2021) के दूसरे चरण की वोटिंग के लिए प्रचार अभियान कल शाम समाप्त हो गया। वोटिंग 1 अप्रैल को होगी। वहीं, इस चरण में सबसे हाईप्रोफाइल सीट पूर्वी मिदनापुर जिले की नंदीग्राम है। यहां से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तृणमूल प्रत्याशी हैं, जबकि भाजपा ने चार महीने पहले तृणमूल से आए शुभेंदु अधिकारी को मैदान में उतारा है।

भूमि अधिग्रहण को लेकर हिंसक संघर्ष
विश्लेषकों की मानें तो यह चुनाव शुभेंदु अधिकारी के लिए काफी अहम है। यह उनके राजनीतिक अस्तित्व को तय करेगा। दरअसल, शुभेंदु ममता बनर्जी के काफी करीबी माने जाते थे। लगभग 14 साल पहले जबरन कृषि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हिंसक संघर्ष में उन्होंने भरपूर सहयोग दिया था। नंदीग्राम यानी पूर्वी मिदनापुर जिले का कृषि प्रधान क्षेत्र, जहां साढ़े तीन दशक तक वाम मोर्चा सत्ता पर काबिज रहा। भूमि अधिग्रहण को लेकर हुए विरोध-प्रदर्शन के बाद ममता बनर्जी वर्ष 2011 में सत्ता में आई थी। यहां के लोग ममता को दीदी और शुभेंदु अधिकारी को दादा पुकारते हैं। मगर चार महीने पहले यह क्षेत्र दीदी और दादा में बंट गया है।

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किसे मिलेगी नंदीग्राम आंदोलन की विरासत
विश्लेषक इस बार नंदीग्राम के चुनाव को सिर्फ राजनीतिक लड़ाई के ही तौर पर नहीं देख रहे बल्कि, नंदीग्राम आंदोलन की विरासत के दावेदारों के बीच का मुकाबला मान रहे हैं। करीब चार महीने तृणमूल छोडक़र भाजपा में आए 50 वर्षीय शुभेंदु अधिकारी के मुताबिक, मैंने अपने जीवन में कई बार मुश्किल चुनौतियों का सामना किया है और उसमें सफलता पाई है। इस बार भी जीत मुझे ही मिलेगी। मैं न तो सच बोलने से डरता हूं और न ही किसी के आगे झुकता हूं। मैं नंदीग्राम और बंगाल दोनों के लिए लड़ रहा हूं।

चुनाव हारे तो यह तगड़ा झटका होगा
दरअसल, शुभेंदु अधिकारी के लिए नंदीग्राम का चुनाव उनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए चुनौती बन गया है। इस चुनाव में अगर वह हारते हैं, तो यह उनके लिए तगड़ा झटका होगा। यही नहीं, भाजपा में भी उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर सवालिया निशान लग जाएगा। वहीं, शुभेंदु अगर चुनाव जीतते हैं, तो बंगाल में वह भाजपा के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरेंगे और मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी और अधिक मजबूत हो जाएगी।

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अभिषेक के लिए चुनौती बन गए थे शुभेंदु
शुभेंदु अधिकारी के पिता शिशिर अधिकारी भी तृणमूल कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो चुके हैं। शिशिर के अनुसार, ममता ने शुभेंदु का राजनीतिक करियर खत्म करने के लिए उनके खिलाफ चुनाव लडऩे का फैसला किया। शिशिर का दावा है कि शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक के लिए चुनौती बन गए थे, इसलिए ममता शुभेंदु को गिराने पर तुल गई थीं। नंदीग्राम की जनता इस चुनाव में उन्हें सबक सिखाएगी। यह सिर्फ शुभेंदु नहीं बल्कि, पूरे अधिकारी परिवार के लिए राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई है।