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दो चरण की Voting पूरी: प्रतापगढ़ में बढ़ी प्रत्याशियों की धड़कन

UP Assembly Elections 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में प्रतापगढ़ का अपना अलग ही जलवा रहते हैं। वहीं प्रतापगंज में विश्वासगंज विधानसभा की राजनीति इस समय सबसे अलग है।

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File Photo of Voting in Uttar Pradesh

File Photo of Voting in Uttar Pradesh

UP Election में इस बार हम समझने का प्रयास करते हैं कि प्रतापगढ़ में विधानसभा का जातीय समीकरण कितना फिट बैठता है। किसे प्रतापगढ़ की किन किन विधानसभा से जीत हासिल कराकर लखनऊ के लिए रास्ता साफ करता है। राजनीतिक माहौल में विश्वनाथगंज विधानसभा की राजनीति पारा गरम हो चला है। तो वही प्रत्याशियों को लेकर मतदाताओं में मतभेद भी साफ साफ देखने को मिल रहा है। मतदाताओं का मतभेद इतने बड़े पैमाने पर है जिसका अंदाजा लगा पाना थोड़ा मुश्किल है।


साल 2017 के विधानसभा के ग्राफ को देखा जाए तो विश्वनाथगंज विधानसभा में भाजपा सपा व बसपा की ही लड़ाई बनी थी। जिसका हस्र यह हुआ कि भाजपा अपना दल गठबंधन के प्रत्याशी डॉक्टर आरके वर्मा अपने प्रतिद्वंदी व वर्तमान में निर्दलीय प्रत्याशी संजय पांडे को काफी अंतर से पछाड़ते हुए विजय हासिल किया था। जिसमें सबसे बड़ा रोल उत्तर प्रदेश में परिवर्तन की लहर भी रही। जिसका फायदा डॉक्टर आरके वर्मा को मिला। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में हालात कुछ और हैं। इस बार भी पब्लिक महंगाई, बेरोजगारी व छुट्टा पशु आदि जैसे मुद्दा मतदाताओं के सामने बने हुए हैं। जनता इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए कुछ और करने का फैसला कर सकती है। वही विश्वनाथगंज विधानसभा को देखा जाए तो इस विधानसभा में सबसे ज्यादा वोटर बैकवर्ड समाज से है। तो दूसरी श्रवण वोटर की संख्या दूसरे पायदान पर हैं। तो वही तीसरे पायदान एससी,तो चौथे नम्बर पर अल्पसंख्यक है।


लेकिन इस बार बैकवर्ड मतदाता जैसे पटेल, बर्मा, कुर्मी विश्वनाथगंज विधानसभा में जीत लाल पटेल यानी अपना दल व भाजपा गठबंधन प्रत्याशी के साथ मत शेयर करना चाहते हैं तो दूसरी तरफ यादव, ब्राह्मण, ठाकुर, सरोज व अल्पसंख्यक समाज सपा को वोटिंग करने का मन बना रही है तो वही बसपा के लिए ब्राम्हण हरिजन सरोज व अल्पसंख्यक मतदाता मतदान करने में एतराज नहीं कर सकते हैं. रही निर्दलीय प्रत्याशी संजय पांडे की बात तो जो सपा के कार्यकर्ता उनके साथ लगे थे वे अब उनके पक्ष में मतदान करने से मुकर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि उनके द्वारा सपा के लाल टोपी अखिलेश अमर रहो व सपा पार्टी मुर्दाबाद जैसे नारे उनके समर्थकों द्वारा लगाया गया था इसी को लेकर सपा के कैडर वोटर संजय पांडे से काफी नाराज नजर आ रहे हैं। जिसका फायदा सीधे तौर पर सपा व बसपा को मिलते ही नजर आ रहा है अगर भाजपा अपनादल गठबंधन की बात की जाए तो जहां अभी तक कुर्मी समाज के लोग अपना मुखिया अनुप्रिया के रूप में देखते थे वही प्रतापगढ़ की सदर विधानसभा सीट को अनुप्रिया द्वारा अपनी मां के लिए छोड़े जाने पर मतदाताओं में चर्चा का विषय बना हुआ है जहां पटेल वर्ग रानीगंज विधानसभा में सपा प्रत्याशी आर के वर्मा के साथ जा रहा है तो दूसरी तरफ विश्वनाथगंज विधानसभा में अपना दल प्रत्याशी जीतलाल के साथ खड़ा होता नजर आ रहा है। तो वहीं प्रतापगढ़ सदर में अपना दल कमेरा की कृष्णा पटेल को मतदान करने का मन बना लिया है। अगर पट्टी विधानसभा की बात की जाए तो वहां के पटेल बिरादरी सपा के प्रत्याशी राम सिंह के साथ जाना पसंद कर रहे हैं ऐसे में आप अनुमान लगा सकते हैं कि कौन से वर्ग मतदाता किस पार्टी को मतदान कर सकता है और किस पार्टी के प्रत्याशी के लिए लखनऊ का सफर आरामदायक बना सकता है अब बात करते हैं विश्वनाथगंज विधानसभा की इस समय जो स्थित कुछ और ही बयां कर रही है इस विधानसभा में सपा और बसपा की सीधे लड़ाई होने जा रही है और तीसरे स्थान के लिए भाजपा अपना दल संघर्ष करते नजर आ रही है आपको बता दें कि राजनीतिक समीकरण दिन प्रतिदिन बदलते चले जा रहा हैं यह कह पाना मुश्किल है कि किस पार्टी के प्रत्याशी को भारी मतों से 10 मार्च को विजय मिलेगी। लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है। कि विश्वनाथगंज विधानसभा में स्वर्गीय राजाराम पांडे के बाद सपा का खाता सौरव सिंह एक बार फिर खोलने जा रहे हैं लेकिन इसमें सबसे बड़ा रोड़ा बसपा पार्टी बन सकती है। यही नहीं सपा के बिखराव को किस प्रकार से सपा प्रत्याशी सौरभ सिंह संभालेंगे यह भी एक चैलेंज होगा। क्योंकि समाजवादी पार्टी का जो कैडर वोट है वह विश्वनाथ गंज विधानसभा में 40हजार के आसपास माने जाते है। अगर सौरभ सिंह 40 हजार यादव मतदाता मेसे 25000 यादव मतदान करते हैं तो जीत का रास्ता आसान हो सकता है क्योंकि सपा पार्टी में क्षत्रिय ब्राह्मण व मुस्लिम समाज का एक अलग ही इस पार्टी से जुड़ा है। अगर यह चारों वर्ग के लोग अपने मतदाताओं से सपा के लिए मतदान कराते हैं तो युवा चेहरा सौरव सिंह का रास्ता आसान हो जाएगा अन्यथा 75 हजार आबादी वाले अनुसूचित जाति बसपा के साथ जाने में परहेज नहीं करेंगे।