जिस तरह तृणमूल कांग्रेस को बंपर सीटें मिलीं हैं, भाजपा की उम्मीदें तो पूरी नहीं हो सकीं लेकिन पहली बार में इतनी बड़ी कामयाबी मिली और लेफ्ट सहित कांग्रेस जैसी पार्टियां तो जड़ से ही साफ हो गईं। ये सब कुछ कुल मिलाकर एक ही संकेत देते हैं कि पश्चिम बंगाल की जनता बड़ी समझदार है। उसने सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को मैसेज दिया है कि अभी आपको बहुत सुधार करने की जरूरत है, उसके बाद ही आप आगे बढ़ सकेंगे।
इसी तरह तृणमूल कांग्रेस को 200 से अधिक सीटें देकर नंदीग्राम से ममता के मुकाबले में सुवेन्दु अधिकारी को मजबूती से खड़ा करना भी यही बताता है कि आपको भी एक बार फिर से अपने आप में झांकने की जरूरत है, नहीं तो आगे चल कर आप की भी वही हालत हो सकती है जो आज लेफ्ट की हुई है।
कांग्रेस का तो कोई नाम लेने वाला भी नहीं रहा जो बताता है कि अब वंशवाद की राजनीति का समय जा चुका है, अब समय है कुछ काम करने वालों का, काबिलियत के दम पर आगे आने वालों को। कभी बंगाल पर एकछत्र राज्य करने वाले लेफ्ट की इससे अधिक दुर्दशा कभी नहीं हुई। पिछले विधानसभा चुनावों में प्रमुख विपक्षी पार्टी के रूप में उभरे वामदल इस बार तो पूरी तरह साफ हो गए।
देखा जाए तो बंगाल की राजनीति जितनी सीधी और सरल दिखती है, उतनी है नहीं। यहां पर ममता का नारा मां, माटी और मानुष खूब चला लेकिन एक अंडरग्राउंड करंट की तरह 3M (यानि मोदी, ममता और मुस्लिम) के समीकरण ने भी खेल कर दिया।
टीएमसी द्वारा जीती गई सीटों में से 130 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में थे, उन्होंने भाजपा को नकार कर ममता का साथ दिया। भाजपा भले ही उन्हें बांग्लादेशी या कुछ भी कहती रहें परंतु टीएमसी की जीत में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई है।
यहां यह एक चीज और भी देखने लायक है कि असदुद्दीन औवेसी यहां भी अपना भाग्य आजमाना चाह रहे थे। यहां पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई परन्तु उस ध्रुवीकरण का पूरा लाभ भाजपा और टीएमसी को मिला, उनके हाथ शून्य आया। जिस तरह वह महाराष्ट्र की तरह यहां भी बड़ी सफलता की उम्मीद कर रहे थे, उस पर जनता ने पानी फेर कर बता दिया कि यहां अवसरवादी राजनीति नहीं चलने वाली है।