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UP Assembly Election 2022: तो क्या इस बार भी बाहुबली जेल से ही लहराएंगे चुनाव में जीत का परचम ?

UP Assembly Election 2022: सूबे के तीन मुख्यमंत्रियों अखिलेश यादव, मायावती और योगी आदित्यनाथ से लोहा लेने वाले विजय मिश्रा कभी चुनाव नहीं हारा। कभी निर्दलीय, कभी समाजवादी पार्टी तो कभी निषाद के टिकट पर चुनाव जीता।

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UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश का इतिहास है कि बाहुबली नेता जेल से चुनाव जीत जाते है। पुलिस डायरी के माफिया जनता के लिए मसीहा कैसे होते हैं। हरिशंकर तिवारी से लेकर मुख्तार अंसारी तक जेल से चुनाव जीते है। तो क्या 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी बाहुबली जेल से ही चुनाव में जीत का परचम लहराएंगे ?

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37 साल पहले बाहुबली जेल से जीत जाते थे चुनाव

बाहुबलियों के ताकत का अंदाजा आप इस बात से लगा लीजिए कि आज से करीब 37 साल पहले बाहुबली जेल से चुनाव जीत जाते थे। आज भी ये ताकत कम नहीं हुई है। एक बाहुबली माफिया कैसे बनता है ? वो सैकड़ों आरोपों और पुलिस डायरी में विलेन होने के बाद भी चुनाव जीत जाता है, लेकिन कैसे ? क्या बाहुबली अपने लोगों के लिए मसीहा होता है ?

मुख्यमंत्रियों से लोहा लेने वाला भी नहीं हारा चुनाव

यूपी के कुछ बाहुबली ऐसे हैं जिनके सामने मोदी लहर भी फेल साबित हुआ है। मुख्तार अंसारी, सात बार से लगातार विधायक है। पांच बार अलग-अलग पार्टी से और दो बार निर्दलीय, यानी मुख्तार कभी चुनाव हारा ही नहीं। कुछ ऐसी ही ताकत बाकी बाहुबलियों की भी है। सूबे के तीन मुख्यमंत्रियों अखिलेश यादव, मायावती और योगी आदित्यनाथ से लोहा लेने वाले विजय मिश्रा कभी चुनाव नहीं हारा। कभी निर्दलीय, कभी समाजवादी पार्टी तो कभी निषाद के टिकट पर चुनाव जीता।

1985 में हरिशंकर तिवारी ने लिया था अपराध से राजनीति में प्रवेश

गोरखपुर जिले की चिल्लूपार विधानसभा सीट से 1985 में एकाएक चर्चा में आई। चर्चा का कारण था हरिशंकर तिवारी, जो जेल में रहते हुए निर्दलीय चुनाव में जीता। अपनी जीत के साथ हरिशंकर तिवारी ने भारतीय राजनीति में अपराध के सीधे प्रवेश का दरवाजा खोल दिया। इसके बाद में उत्तर प्रदेश में ऐसी तस्वीर देखी जाने लगी। फिर मुख्तार अंसारी भी कुछ इसी तरह जेल से चुनाव जीत गया।

बाहुबलियों के सामने मोदी लहर भी हुआ फेल

बाहुबली नेता इतने ताकतवर कैसे होते हैं जो किसी भी लहर में चुनाव जीत जाते हैं। उदाहरण के लिए 2017 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव को देख लीजिए। पीएम मोदी की बंपर लहर थी, बीजेपी को 325 सीटों के साथ प्रचंड जीत मिली। बड़े-बड़े धुरंधर चुनाव हार गए, लेकिन बाहुबली विजय मिश्रा भदोही से चुनाव जीत गए। बाहुबली मुख्तार अंसारी मऊ से चुनाव जीते। रधुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भइया, अमन मणि त्रिपाठी, निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में चुनाव जीते। जबकि जौनपुर से मुन्ना बजरंगी की पत्नी चुनाव हारी थी और बाहुबली विधायक अभय सिंह भी चुनाव हार गए थे।

सत्ता बदले या ना बदले, बाहुबली विधायक नहीं बदलते

उत्तर प्रदेश में साफ है, सत्ता बदले या ना बदले, लेकिन बाहुबली विधायक नहीं बदलते है। आज किसकी सरकार है और कल किसकी इन सब बातों से बाहुबलियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। जानकार इसके पीछे दो कारण मानते हैं। पहला कारण कि वो अपने लोगों के लिए मसीहा होते है। गरीब परिवारों की जमीन पर कब्जा कर लेंगे, लेकिन आंसू पोछते रहेंगे।

गरीबों के बीच है लोकप्रियता

मुख्तार अंसारी या फिर हरिशंकर तिवारी जैसे लोग बार-बार विधायक सिर्फ इलसिए ही नहीं बनते है कि इनकी छवि बाहुबली की है। दरअसल, गरीबों की व्यक्तिगत मुद्दे और उनके काम के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाना भी इनकी लोकप्रियता की एक बड़ी वजह है।

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