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चम्बल में बढ़ा पानी घड़ियालों के बच्चों के लिए बना काल, जीवन शुरु होते ही पानी में बह गए

Alligator in Chambol: चंबल के घाटी घड़ियाल के नौनिहालों से चहक रही थी। लेकिन बारिश का पानी इन घड़ियाल के बच्चों के लिए काल बन गया।

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 Alligators children died due to floods in Chambal in Etawah

Alligators children died due to floods in Chambal in Etawah

चम्बल नदी में जिस तरह से पानी बढ़ रहा है उससे आसपास के गांवों में बाढ़ आने का खतरा तो उत्पन्न हो ही गया है इसके साथ ही हजारों की संख्या में घड़ियालों के बच्चे बह गए हैं। यह ऐसा नुकसान है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती। यहां चम्बल नदी में जून के महीने में घडियालों के बच्चे जन्म लेते हैं और प्रकृति का प्रकोप देखिए कि अगस्त में वे पानी में बह गए। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि घड्यिालों के 95 प्रतिशत बच्चे इस पानी मे बह गए है ऐसी आशंका है कि अब ये काल के गाल में समा गए।

यह आशंका इसलिए जताई जा रही है क्यो कि चंबल नदी में डेमो का बड़े पैमाने पर पानी छोड़ा जा रहा है जिससे चंबल में बाढ़ के हालात पैदा कर रहे है। चंबल सेंचुरी के अधिकारियों ने बताया कि चंबल में आई बाढ़ की वजह से घड़ियाल के हजारों बच्चों को पानी के तेज बहाव से नुकसान पहुंचा है और छोटे बच्चों के बचने की उम्मीद न के बराबर है। राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी में आई बाढ़ घड़ियालों के बच्चों पर आफत बनी है। इस वर्ष जून में चंबल नदी में हुई गणना में घड़ियालों के 4050 बच्चों की जानकारी हुई थी, लेकिन वह सभी प्राकृतिक आपदा का शिकार होकर तेज बहाव में बह गए। दरअसल नदी के किनारे ही घड़ियाल घोसले बनाते हैं और बच्चे यहीं रहते हैं। चंबल का जलस्तर उम्मीद से ज्यादा बढ़ने के कारण व तेज बहाव होने के कारण अनेक बच्चों के बहने की आशंका है जानकारों का कहना है कि पंद्रह जून तक घड़ियालों के प्रजनन का समय होता है जो मानसून आने से आठ-दस दिन पूर्व तक रहता है। घड़ियालों के प्रजनन का यह दौर ही उनके बच्चों के लिए काल के रूप में होता है क्योंकि बरसात में चंबल नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप घड़ियालों के बच्चे नदी के तेज बहाव में बह गए।

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प्राकृतिक आपदा के हुए शिकार- डीएफओ

चंबल सेंचुरी के डीएफओ दिवाकर श्रीवास्तव ने बताया है कि चंबल में आई बाढ़ की वजह से घड़ियाल के हजारों बच्चों को पानी के तेज बहाव से नुकसान पहुंचा है और छोटे बच्चों के बचने की उम्मीद न के बराबर है। उन्होंने बताया कि गणना में घड़ियालों के 4050 बच्चों की जानकारी हुई थी, लेकिन वह सभी प्राकृतिक आपदा का शिकार होकर तेज बहाव में बह गए। वैसे भी जन्म के बाद केवल पांच प्रतिशत बच्चों के जीवित रहने की उम्मीद रहती है।

कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र की हो व्यवस्था- राजीव

पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के महासचिव और वन्य जीव विशेषज्ञ डा. राजीव चौहान का कहना है कि इन बच्चों को बचाने के उपाय किए जाने चाहिए। उनका कहना है कि यदि इन बच्चों को कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में संरक्षित कर तीन साल तक बचा लिया जाए तो इन बच्चों पर से खतरे से टाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि 90 फीसदी बच्चों की पानी में बह जाने से मौत हो जाती है।

2008 में हुई थी बड़ी संख्या में घड़ियालों की मौत

वर्ष 2008 में चम्बल में इटावा और आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में घड़ियालों की मौत हुई थी। इसके बाद घड़ियालों के संरक्षण के लिए उपाय तेज किए गए थे। इन मौतों से चम्बल में घड़ियालों की संख्या में काफी कमी भी आ गई थी। बाद में जागरुकता और संरक्षण के उपायों से घड़ियालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो गई है। अब इस प्राकृतिक आपदा में घड़ियालों के हजारों बच्चे बह गए हैं।

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