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समाजवादी गढ़ इटावा से कांशीराम का रहा गहरा नाता, मुलायम की बदौलत पहली बार पहुंचे थे संसद

locationइटावाPublished: Oct 08, 2018 12:58:29 pm

मुलायम सिंह यादव ने समय की नब्ज को समझा और कांशीराम की मदद की…

BSP founder kanshi Ram Death anniversary

समाजवादी गढ़ इटावा से कांशीराम का रहा गहरा नाता, मुलायम की बदौलत पहली बार पहुंचे थे संसद

पत्रिका एक्सक्लूसिव

दिनेश शाक्य

इटावा. संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के बाद दलितो के सबसे बड़े हितैषी माने जाने वाले कांशीराम की 9 अक्टूबर को पुण्यतिथि है। समाजवादी जननायक मुलायम सिंह यादव की बदौलत कांशीराम ने उत्तर प्रदेश के इटावा जिले से ही पहली बार संसद का रूख किया था। कांशीराम जब चुनाव लड़ रहे थे, उस समय मुलायम सिंह यादव अनुपम होटल फोन करके कांशीराम का हाल चाल तो लेते ही रहते थे, साथ ही होटल मालिक को भी यह दिशा निर्देश देते रहते थे कि कांशीराम हमारे मेहमान हैं। उनको किसी भी तरह की कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। कभी ऐसा वक्त भी था, जब बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की हाथीनुमा साइकिल मुलायम के घर इटावा में दौड़ी थी। कांशीराम न केवल खुद जीतकर इसी इटावा जिले से संसद पहुंचे थे, बल्कि मुलायम सिंह का राजनीतिक आधार बनाने में भी उनकी मदद की थी।
मुलायम ने की थी कांशीराम की मदद

मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा के लोगों ने कांशीराम को एक ऐसा मुकाम हासिल कराया, जिसकी उन्हें एक अर्से से तलाश थी। कहा यह जाता है कि 1991 के आम चुनाव के समय इटावा में जबरदस्त हिंसा के बाद पूरे जिले के चुनाव को दोबारा कराया गया था। दोबारा हुए चुनाव में बसपा सुप्रीमो कांशीराम खुद मैदान में उतरे। मुलायम सिंह यादव ने समय की नब्ज को समझा और कांशीराम की मदद की, जिसके एवज में कांशीराम ने मुलायम सिंह यादव के खलाफ बसपा का कोई भी प्रत्याशी जसवंतनगर विधानसभा से नहीं उतारा। जबकि जिले की बाकी विधानसभा से बसपा ने अपने प्रत्याशी उतारे थे। चुनाव लड़ने के दौरान कांशीराम इटावा मुख्यालय के पुरबिया टोला रोड पर स्थित तत्कालीन अनुपम होटल में करीब एक महीने रुके थे। अनुपम होटल के सभी 28 कमरों को एक महीने के लिये बुक करा लिया गया था। कांशीराम खुद कमरा नंबर 6 में रूकते थे और 7 नंबर में उनका सामान रखा रहता था। इसी होटल में कांशीराम ने अपना चुनाव कार्यालय भी खोला था।
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मुलायम का आता था फोन

अनुपम होटल के मालिक रहे बल्देव सिंह वर्मा बताते हैं कि उस समय मोबाइल की सुविधा नहीं हुआ करती थी और कांशीराम के लिए बड़ी संख्या में फोन आया करते थे। इसी वजह से कांशीराम के लिये एक फोन लाइन उनके कमरे में सीधी डलवा दी गई थी। जिससे वह अपने लोगों के संपर्क में लगातार बने रहें। वर्मा बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव का अमूमन फोन इस बाबत आता रहता था कि कांशीराम हमारे मेहमान हैं, उनको किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होनी चाहिए, लेकिन वह कभी होटल में आए नहीं। वर्मा दावे के साथ कहते हैं कि हां इतना जरूर पता है कि कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की फोन पर लंबी बातचीत जरूर होती थी। वर्मा बताते हैं कि कांशीराम के चुनाव में गाड़ियों के लिए डीजल आदि की व्यवस्था देखने वाले आर.के. चौधरी बाद में उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा की सरकार में परिवहन मंत्री बने।
कांशीराम को इटावा से था खास लगाव

कांशीराम को नीला रंग सबसे ज्यादा पंसद था, इसी वजह से उन्होंने अपनी कंटेसा गाड़ी को नीले रंग से ही पुतवा दिया था। पूरे चुनाव प्रचार में कांशीराम ने सिर्फ इसी गाड़ी से प्रचार किया। इटावा ने पहली बार कांशीराम को 1991 में सांसद बनवाकर संसद पहुचाया था। इसी वजह से बसपा के संस्थापक अध्यक्ष कांशीराम को इटावा से खासा लगाव रहा। आज भी इटावा में कांशीराम के संस्मरण सुनाने वालों की कोई कमी नहीं है। यहां यह बता देना भी जरूरी होगा कि 1991 में हुए इटावा लोकसभा के उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी कांशीराम समेत कुल 48 प्रत्याशी मैदान में थे। चुनाव में कांशीराम को 1 लाख 44 हजार 290 मत मिले और उनके समकक्ष भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को 1 लाख 21 हजार 824 मत। जबकि मुलायम सिंह यादव की जनता पार्टी से लड़े रामसिंह शाक्य को केवल 82,624 मत ही मिले थे।
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मुलायम और कांशीराम की हुई थी जुगलबंदी

कांशीराम कोई जननायक और करिश्माई व्यक्तित्व वाले जबरदस्त वक्ता या नेता नहीं थे। शायद वह ये जानते भी थे कि उनकी ताकत लक्ष्य के प्रति उनका पूरा समर्पित होना, उनका संगठनात्मक कौशल और बेजोड़ रणनीति बनाने की उनकी क्षमताहै। 1991 में इटावा से जीत के दौरान मुलायम का कांशीराम के प्रति यह आदर अचानक उभर कर सामने आया था। उस समय मुलायम ने अपने खास की पराजय कराने में भी कोई गुरेज नहीं किया। इस हार के बाद रामसिंह शाक्य और मुलायम के बीच मनुमुटाव भी हुआ, लेकिन मामला फायदे नुकसान के चलते शांत हो गया। कांशीराम की इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की जुगलबंदी शुरू हुई और इसका लाभ उत्तर प्रदेश में हुआ। 1995 में मुलायम सिंह यादव की सरकार सत्ता में आई, लेकिन 2 जून 1995 को हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा-बसपा के बीच बढी तकरार इस कदर हावी हो गई कि दोनों दल एक दूसरे को खत्म करने पर अमादा हो गए। वहीं अब नए बदले मिजाज के तौर पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच गठबंधन को लेकर चल रही जुगलबंदी एक नया संदेश दे रहा है।
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