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जानें- क्यों लगता है फर्रुखाबाद का फेमस रामनगरिया मेला और क्या है इसका इतिहास

- फर्रुखाबाद के पांचाल घाट पर लगने वाला माघ मेला काफी लोकप्रिय है- प्राचीन ग्रथों में पांचाल घाट के इस पूरे क्षेत्र को स्वर्गद्वारी कहा गया है- वर्ष 1985 में एनडी तिवारी की सरकार ने मेले के लिए प्रतिवर्ष 5 लाख रुपए देना शुरू किया

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28 जनवरी से मिनी कुंभ की तर्ज पर फर्रुखाबाद के पांचालघाट के तट पर रामनगरिया मेला लगा है

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
फर्रुखाबाद. प्रतिवर्ष माघ महीने में गंगा किनारे मेला लगता है, जिसे रामनगरिया मेला कहते हैं। फर्रुखाबाद के पांचाल घाट पर लगने वाला माघ मेला काफी लोकप्रिय है। प्राचीन ग्रथों में इस पूरे क्षेत्र को स्वर्गद्वारी कहा गया है। देश-प्रदेश के श्रद्धालुओं को अपनी तरफ आकर्षित करने वाला यह मेला कब अस्तिस्त्व में आया? यह बहुत कम लोग ही जानते हैं।

इतिहास में झांककर देखें तो गंगा के तट पर कल्पवास कर रामनगरिया लगने का कोई लिखित प्रमाण नहीं है। शमसाबाद के खोर में प्राचीन गंगा के तट पर ढाई घाट का मेला लगता चला आ रहा है। यह मेला काफी दूर होने के कारण कुछ साधू-संत वर्ष 1950 माघ के महीने में कुछ दिन कल्पवास कर अपनी साधना करते थे, लेकिन आम जनता का इनसे कोई सरोकार नहीं होता था। वर्ष 1955 में पूर्व विधायक स्वर्गीय महरम सिंह ने इस तरफ अपनी दिलचस्पी दिखाई। उन्होंने इस वर्ष गंगा के तट पर साधु-संतों के ही साथ कांग्रेस पार्टी का एक कैम्प भी लगाया था। इसी के साथ ही साथ उन्होंने पंचायत सम्मलेन, शिक्षक सम्मेलन, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी सम्मेलन तथा सहकारिता सम्मेलन का आयोजन कराया, जिसमे क्षेत्र के लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई। वर्ष 1956 में विकास खंड राजेपुर तथा पड़ोसी जनपद शाहजंहांपुर के अल्लागंज क्षेत्र के श्रद्धालुओं ने माघ मेले में गंगा के तट पर मड़ैया डाली और कल्पवास शुरू किया। देखते ही देखते मेले की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी।

मेले का नाम ऐसे पड़ा रामनगरिया
वर्ष 1965 में आयोजित हुए माघ मेले में पंहुचे स्वामी श्रद्धानंद के प्रस्ताव से माघ मेले का नाम रामनगरिया रखा गया। वर्ष 1970 में गंगा तट पर पुल का निर्माण कराया गया, जिसे लोहिया सेतु नाम दिया गया था। पुल का निर्माण हो जाने से मेले में कल्पवासियों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ने लगी, जिसके बाद फर्रुखाबाद के आस-पास के सभी जिलों के श्रद्धालु कल्पवास को आने लगे। वर्ष 1985 आते-आते यह संख्या कई हजारों में हो गई, जिसके बाद जिला परिषद को मेले की व्यवस्था का जिम्मा सौपा गया। तत्कालीन डीएम केके सिन्हा व जिला परिषद के मुख्य अधिकारी रघुराज सिंह ने मेले के दोनों तरफ प्रवेश द्वारों का निर्माण कराया।

एनडी तिवारी की सरकार ने मेले के लिए रुपए देना शुरू किया
वर्ष 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने मेला रामनगरिया का अवलोकन किया और सूरजमुखी गोष्ठी में हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने प्रतिवर्ष शासन से मेले के लिए पांच लाख रुपये देने की घोषणा की। वर्ष 1985 से ही मेला जिला प्रशासन की देखरेख में संचालित हो रहा है। मेला यूपी के साथ ही साथ अन्य प्रदेशों में भी अपनी अलग ही ख्याति रखता है।

By- राजीव शुक्ला