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Aakshaya Tritiya : जैन धर्म में ऐसे मनाते हैं अक्षय तृतीया पर्व

locationभोपालPublished: Apr 16, 2020 02:54:59 pm

Submitted by:

Shyam

अक्षय तृतीया का जैन धर्म में भी है विशेष बड़ा धार्मिक महत्व

Aakshaya Tritiya : जैन धर्म में ऐसे मनाते हैं अक्षय तृतीया पर्व

Aakshaya Tritiya : जैन धर्म में ऐसे मनाते हैं अक्षय तृतीया पर्व

इस साल अक्षय तृतीया का पर्व 26 अप्रैल दिन रविवार को मनाया जाएगा। अक्षय-तृतीया पर्व को केवल हिन्दू धर्म ही नहीं बल्कि जैन धर्मावलम्बी श्रद्धालु भी एक बड़े धार्मिक उत्सव के रूप में मनाते हैं। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बंधनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग कर अक्षय-तृतीया के दिन ही जैन वैराग्य को अंगीकार किया था।

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इक्षु तृतीया

सत्य और अहिंसा का प्रचार करते-करते आदिनाथ प्रभु हस्तिनापुर गजपुर पधारे जहां इनके पौत्र सोमयश का शासन था। प्रभु का आगमन सुनकर सम्पूर्ण नगर दर्शनार्थ उमड़ पड़ा सोमप्रभु के पुत्र राजकुमार श्रेयांस कुमार ने प्रभु को देखकर उसने आदिनाथ को पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्ने का रस दिया, जिससे आदिनाथ ने व्रत का पारायण किया। जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि गन्ने के रस को इक्षुरस भी कहते हैं, इस कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात हो गया।

Aakshaya Tritiya : जैन धर्म में ऐसे मनाते हैं अक्षय तृतीया पर्व

वर्षीतप

भगवान श्री आदिनाथ ने लगभग 400 दिवस की तपस्या के पश्चात पारायण किया था। यह लंबी तपस्या एक वर्ष से अधिक समय की थी अत: जैन धर्म में इसे वर्षीतप से संबोधित किया जाता है। आज भी जैन धर्मावलंबी वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्य समझते हैं, यह तपस्या प्रति वर्ष वैशाख मास के शुक्लपक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर पूर्ण की जाती है। तपस्या आरंभ करने से पूर्व इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि प्रति मास की चौदस को उपवास करना आवश्यक होता है। इस प्रकार का वर्षीतप करीबन 13 मास और दस दिन का हो जाता है। उपवास में केवल गर्म पानी का सेवन किया जाता है।

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भारत वर्ष में इस प्रकार की वर्षी तपश्चर्या करने वालों की संख्या हज़ारों तक पहुंच जाती है। यह तपस्या धार्मिक दृष्टिकोण से अन्यक्त ही महत्त्वपूर्ण है। वहीं, आरोग्य जीवन बिताने के लिए भी उपयोगी है। संयम जीवनयापन करने के लिए इस प्रकार की धार्मिक क्रिया करने से मन को शान्त, विचारों में शुद्धता, धार्मिक प्रवृत्रियों में रुचि और कर्मों को काटने में सहयोग मिलता है। इसी कारण इस अक्षय तृतीया का जैन धर्म में विशेष धार्मिक महत्व समझा जाता है। मन, वचन एवं श्रद्धा से वर्षीतप करने वाले को महान समझा जाता है।

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