ऐसे में ये सवाल कई लोगों के मन में उठता है कि आखिर रक्षाबंधन पर्व के पीछे की कहानी क्या है और यह कब शुरु हुआ। इस संबंध में पंडित पीसी जोशी के अनुसार यूं तो रक्षाबंधन पर्व को लेकर कई कथाएं समाने आती हैं, लेकिन इसका मुख्य पौराण्कि कथा माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है, जिसके चलते आज भी रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है।
पंडित जोशी के मुताबिक कई लोगों का मानना है कि कि वृत्तासुर से युद्ध करने जब इंद्र जा रहे थे, तो इंद्र को रक्षा सूत्र उनकी पत्नी शची ने उन्हें बांधा था।
वहीं जब इस बारे में पता चलने पर माता लक्ष्मी चिंता में आ गईं। तब नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताते हुए कहा कि आप राजा बलि को भाई बनाकर उनसे रक्षा का अपने लिए वचन ले लें।
यह सुनते ही माता लक्ष्मी एक साधारण महिला का रूप धारण कर रोते हुए राजा बलि के दरबार में पहुंच गईं। राजा बलि ने उनके रोने का कारण पूछा। तो साधारण महिला बनी माता ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं और मुझे कोई बहन नहीं बनाना चाहता, मैं क्या करूं महाराज।
उनकी यह व्यथा सुनकर राजा बलि ने उन्हें अपनी धर्म बहन बनाने का प्रस्ताव रखा। तब साधारण महिला रूप आईं माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा और वचन लिया कि कि वह बहन की रक्षा करेंगे और उससे दक्षिणा भी देंगे। राजा बालि ने उन्हें ये वचन दे दिया।
वचन मिलते ही माता लक्ष्मी ने असली रूप में आ गईं और बोलीं कि यदि आपने मुझे अपनी बहन माना है तो दक्षिणा के रूप में आप मुझे मरे पति को लौटा दें। जिस पर अपने वचन का पालन करते हुए राजा बलि ने भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को लौटा दिए। इस प्रकार माता लक्ष्मी बलि को अपना भाई बनाने के बाद श्रीहरि को भी वचन से मुक्त करा लिया और उन्हें अपने साथ लें गई।
मान्यता के अनुसार जिस दिन यह घटना घटी, उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। ऐसे में इसी दिन से रक्षा बंधन का यह त्यौहार प्रचलन में है।