
Bhai Dooj Ki Kahani: भाई दूज की कहानी
Bhai Dooj Ki Kahani: द्वापर युग की प्राचीन कथा के अनुसार नरकासुर भूदेवी का पुत्र था, उसने प्रागज्योतिषपुर नगर में अपना राज्य स्थापित किया था। कालांतर में उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि देवताओं को परास्त कर प्रताड़ित किया। वह धरती पर संतों को भी परेशान कर रहा था, महिलाओं पर अत्याचार करता था।
कथा के अनुसार उसने संतों और देवताओं की 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया। इसके बाद देवता और ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नराकासुर से मुक्ति दिलाने का वादा किया। लेकिन नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था।
इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उन्हीं की सहायता से कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर दिया। इसके बाद से इस दिन नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली मनाई जाने लगी। यह भी माना जाता है कि भूदेवी ने ही नरकासुर वध के लिए सत्यभामा का अवतार लिया था।
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने सभी स्त्रियों को दैत्य की कैद से आजाद कर दिया और उन लड़कियों-स्त्रियों को माता-पिता के पास जाने के लिए कहा, लेकिन वो राजी नहीं हुईं। इस पर भगवान कृष्ण ने उनसे विवाह कर सम्मान दिया। बाद में यही कृष्ण की सोलह हजार पत्नियां और आठ मुख्य पटरानियां मिलाकर सोलह हजार आठ रानियां कहलाईं ।
इसके बाद भगवान श्री कृष्ण कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन द्वारका लौटे। इसको लेकर उनकी बहन सुभद्रा ने पहले से स्वागत की तैयारी कर रखी थी, पूरे नगर को सजाया गया था। द्वारका महल को भी सजाया गया था।
भगवान के पहुंचते ही बहन सुभद्रा ने अपने भाई का स्वागत फल, फूल, मिठाई, और दीयों को जलाकर किया था। इसके अलावा सुभद्रा जी ने भगवान श्री कृष्ण का तिलक किया और उनके दीर्घायु की कामना की थी, तभी से भाई दूज की यम यमुना की परंपरा में यह कथा भी जुड़ गई।
Updated on:
03 Nov 2024 01:05 pm
Published on:
03 Nov 2024 01:03 pm
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