
लोक आस्था के महापर्व छठ की महिमा अपरंपार है। इसे आरोग्य के साथ ही सुख-समृद्धि व समानता का पर्व माना जाता है। शायद दुनिया का यह इकलौता पर्व है जिसमें व्रती सूर्य देव से पुत्री की कामना करते हैं।
इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसमें स्त्री और कन्या की महिमा है। भारतीय पर्व परंपरा में शायद यह इकलौता पर्व है जिसमें मंत्रोच्चार तो नहीं होते लेकिन लोक गीतों के माध्यम अपनी भावना व्यक्त की जाती है।
'रूनकी झुनकी बेटी मांगीला, मांगीला पढ़ल पंडितवा दामाद... छठी मइया दर्शन दींही ना...' इस लाइन को पढ़कर आप समझ गए होंगे कि इसका मतलब क्या है। इसका मतलब साफ है कि व्रती सूर्य भगवान से एक बेटी ( पुत्री ) की मांग कर रही है और साथ ही धनवान नहीं, पढ़ा लिखा दामाद मांग रही है।
'सांझ के देब अरघिया और कुछ मांगम जरूर, पांचों पुत्र एक धिया ( बेटी ), धियवा मांगम जरूर...'
दरअसल, हिन्दू पर्व परंपरा में प्राय: पुत्र की प्राप्ति, पुरुषों के दीर्घायु और बलवान होने की कामना की जाती है लेकिन छठ ऐसा पर्व है, जिसमें सूर्य देव से पुत्र की मांग तो होती ही है, साथ धिया अर्थात बेटी की मांग की जाती है।
'छोटी रे मोटी डोमिन बेटी के लामी लामी केश, सुपवा ले आइहा रे डोमिन, अरघ के बेर... फुलवा ले आइहा रे मालिन, भइले अरघ के बेर…'
लोक आस्था का महापर्व कोई भी बिना भेद-भाव का करता है। ऊपर लिखे गए लाइन से आप समझ सकते हैं कि इस पर्व में व्यक्तिवादी-जातिवादी अहम गौण हो जाता है और सभी लोगों की मदद से ही यह पर्व सफल हो सकता है। शायद छठ की यही छटा और संदेश इसे पर्व से ज्यादा जनसाधारण का उत्सव बना देता है।
Published on:
31 Oct 2019 10:46 am
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