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गंगा सप्तमी 2020 : गंगा पूजन शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि

इस बार गंगा सप्तमी को घर में ही ऐसे करें गंगा मैया का पूजन

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भोपाल

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Shyam Kishor

Apr 29, 2020

गंगा सप्तमी 2020 : गंगा पूजन शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि

गंगा सप्तमी 2020 : गंगा पूजन शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि

इस साल गंगा सप्तमी का पर्व 30 अप्रैल दिन गुरुवार को हैं। यह पर्व प्रतिवर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथी को मनाया जता है। मान्यता है कि इसी दिन स्वर्ग से धरती पर गंगा मैया का अवतन हुआ था, इस सप्तमी को गंगा जंयती के रूप में भी मनाई जाती है। जानें गंगा अवतन की कथा, पूजन का शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि।

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गंगा सप्तमी पूजन का शुभ मुहूर्त

- सप्तमी तिथि का आरंभ- 29 अप्रैल को दोपहर 3 बजकर 12 मिनट से हो जाएगा।

- सप्तमी तिथि का समापन- 30 को दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से होगा।

गंगा सप्तमी पूजा विधि

उपरोक्त मुहूर्त में अपने घर में ही उत्तर दिशा में एक लाल कपड़े पर गंगा जल मिले कलश की स्थापना करें। “ऊँ गंगायै नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल में थोड़ा सा गाय का दुध, रोली, चावल, शक्कर, इत्र एवं शहद मिलाएं। अब कलश में अशोक या फिर आम के 5-7 पत्ते डालकर उस पर एक पानी वाला नारियल रख दें। अब उक्त कलश का पंचोपचार पूजन करें। गाय के घी का दीपक, चंदन की सुगंधित धूप, लाल कनेर के फूल, लाल चंदन, ऋतुफल एवं गुड़ का भोग लगावें।

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उपरोक्त विधि से पूजन करने के बाद माँ गंगा के इस मंत्र- “ऊँ गं गंगायै हरवल्लभायै नमः” का 108 बार जप जरूर करें। इस दिन अपने सभी तरह के दुखों एवं पापों से मुक्ति पाने के लिए अपने ऊपर से 7 लाल मिर्ची बहते हुये जल में प्रवाहित कर दें।

गंगा सप्तमी पर्व की कथा

शास्त्रों में कथा आती है कि एक बार सगर वंसज ऋषि भगीरथ ने अपने कुल के 60 हजार पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति और शांति सद्गति की कामना से मां गंगा को स्वर्ग लोग से धरती पर लाने के लिए कठोर तप किया था। भगीरथ के कठोर तप से मां गंगा धरती पर आने के लिए तैयार हो गई, और मां गंगा के तीव्र वेग को भगवान शंकर अपनी जटा में धारण कर लिया था। लेकिन गंगा जी का वेग इतना तीव्र था कि शंकर जी के धारण करने के बाद भी गंगा की तेज धार के कारण महर्षि जाह्नु का आश्रम बर्बाद हो गया, और क्रोध में आकर महर्षि जाह्नु ने गंगा के जल को पूरा पी लिया।

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बाद में भगीरथ एवं देवताओं के निवेदन पर महर्षि जाह्नु ने गंगा को मुक्त कर दिया। जिस दिन गंगा मुक्त हुई उस दिन वैशाख मास की सप्तमी तिथि थी, तभी से गंगा सप्तमी का पर्व मनाया जाने लगा, और मां गंगा को एक नया नाम भी दिया गया- "जाह्न्वी" इस तरह गंगा जाह्न्वी भी कहलाने लगी।

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