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Kamda Ekadashi April 2021: कामदा एकादशी पर इस बार 02 योग और 07 शुभ मुहूर्त, जानें कब क्या करें ?

locationभोपालPublished: Apr 22, 2021 10:38:58 am

Kamda Ekadashi Puja and Vrat Vidhi : कामदा एकादशी कल 23 अप्रैल को, ये है व्रत मुहूर्त…

kamda ekadashi Puja vidhi

kamda ekadashi Vrat vidhi

सनातन धर्म Sanatan Dharam में एकादशी तिथि का अत्यंत महत्व माना गया है। वहीं हिन्दू पंचांग hindu Panchang के अनुसार, एकादशी प्रत्येक माह में दो बार आती है और हर एक एकादशी Ekadashi का अपना एक विशेष महत्व होता है। हिन्दू पौराणिक शास्त्रों में एकादशी तिथि को भगवन विष्णु से जोड़कर देखा जाता है।

वहीं इस दिन का व्रत भी महत्वपूर्ण माना गया है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। इसके अलावा जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढक़र 26 हो जाती है।

पंडितों और जानकारों के अनुसार एकादशी Ekadashi को ‘हरि का दिन’ और ‘हरि वासर’ के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को रखने की एक मान्यता यह भी है कि इससे पूर्वज या पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

हर महीने की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु lord vishnu की पूजा की जाती है साथ ही इस दिन एकादशी व्रत किया जाता है। वैष्णव समाज और हिन्दू धर्म के लिए एकादशी व्रत ekadashi vrat महत्वपूर्ण और पुण्यकारी माना जाता है।

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पंडित एस के शुक्ल के अनुसार चैत्र मास Chaitra maas की शुक्ल एकादशी ( 23 अप्रैल 2017) को कामदा एकादशी कहा जाता है। ऐसे में इस वर्ष 2021 में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी Ekadashi यानी शुक्रवार को 23 अप्रैल के दिन कामदा एकादशी का व्रत किया जाएगा।

पद्म पुराण के अनुसार कामदा एकादशी kamda ekadashi के दिन भगवान विष्णु Lord Shri hari का पूजन किया जाता है। मान्यता के अनुसार कामदा एकादशी व्रत kamda ekadashi vrat के प्रभाव से मनुष्य प्रेत योनि से मुक्ति पाता है।

वहीं इस बार यानि कल आने वाली कामदा एकादशी kamda ekadashi में खास बात ये भी है कि इस दिन एक दो बल्कि कुल 7 शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। इसके अलावा इस बार कामदा एकादशी kamda ekadashi पर वृद्धि व ध्रुव योग का भी निर्माण हो रहा है।

इसके तहत जहां वृद्धि योग 02 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। वहीं इसके ठीक बाद ध्रुव योग लग जाएगा। ज्योतिष शास्त्र Jyotish Shastra में ध्रुव व वृद्धि योग को बेहद शुभ माना जाता है। इस दौरान मांगलिक कार्य किये जाते हैं।

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021- कामदा एकादशी
: ब्रह्म मुहूर्त- 04 बजकर 09 मिनट, अप्रैल 24 से 04 बजकर 53 मिनट, अप्रैल 24 तक।
: रवि योग- 05 बजकर 38 मिनट से 07 बजकर 42 मिनट तक।
: अभिजित मुहूर्त- 11 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट तक।
: निशिता मुहूर्त- 11 बजकर 45 मिनट से 12 बजकर 29 मिनट अप्रैल 24 तक।
: अमृत काल- 12 बजकर 20 मिनट, अप्रैल 24 से 01 बजकर 50 मिनट, अप्रैल 24 तक।
: विजय मुहूर्त- 02 बजकर 17 मिनट से 03 बजकर 09 मिनट तक।
: गोधूलि मुहूर्त- 06 बजकर 23 मिनट से 06 बजकर 47 मिनट तक।

मुहूर्त – कामदा एकादशी पारणा मुहूर्त :05:47:12 से 08:24:09 तक 24, अप्रैल को
अवधि : 02 घंटे 36 मिनट

कामदा एकादशी व्रत विधि : : kamda ekadashi vrat vidhi
कामदा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आादि से पवित्र होकर संकल्प लेते हुए भगवान श्री विष्णु ( Shri vishnu ) का पूजन करनी चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु ( bhagwan vishnu ) को फूल,फल,तिल, दूध, पंचामृत आदि पदार्थ अर्पित करने चाहिए। वहीं पूरे दिन निर्जल ( बिना पानी पिए) रह कर भगवान विष्णु जी के नाम का जप और कीर्तन करते हुए यह व्रत पूरा करना चाहिए।

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इसके साथ ही एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन व दक्षिणा का भी बहुत महत्व है। अत: द्वादशी के दिन ब्राह्मण भोज कराने के बाद दक्षिणा सहित ब्राह्मण को विदा करना चाहिए।

इसके बाद स्वयं पारण करना चाहिए। मान्यता है कि इस प्रकार से जो व्यक्ति चैत्र शुक्ल पक्ष में कामदा एकादशी का व्रत रखता है, उसकी समस्त इच्छाओं की पूर्ति भगवान विष्णु vishnu ji की कृपा से शीघ्र ही पूर्ण होती है।

कामदा एकादशी व्रत कथा : kamda ekadashi vrat katha
पंडित संतोष शुक्ला के अनुसार कामदा एकादशी व्रत के महत्व के सम्बन्ध में सबसे पहले राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने बताया था। भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था।

कथा के मुताबिक धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं कि हे भगवन! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूं। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का क्या महत्व है बताए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं आपको बताता हूं।

प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर व गन्धर्व निवास करते थे।

उनमें से एक जगह ललित और ललिता नाम के पुरुष- स्त्री सुन्दर घर में निवास करते थे। उन दोनों में बहुत प्रेम था। जब कभी दोनों एक दूसरे से अलग हो जाते थे तो दोनों एक दूसरे के लिए व्याकुल हो जाते थे।

एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसे अपनी प्रिय ललिता का स्मरण हो गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया।

ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोगेगा।

पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण राक्षस बन गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त और मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी।

सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे और भुजाएं अत्यंत लंबी हो गईं। कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दु:ख भोगने लगा।

जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह घटना मालूम हुआ तो उसे अत्यंत दु:ख हुआ और वह अपने पति के उद्धार के लिए सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के दु:ख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती।

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एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुंच गई, जहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहां जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी।

उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले – हे सुभगे! तुम कौन हो और यहाँ किसलिए आई हो? ललिता बोली कि हे मुनि! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से राक्षस हो गया है। इसी शोक से मैं संतप्त हूं। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए।

श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्य ही शांत हो जाएगा।

मुनि के मुख्य से ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी – हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है, इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए।

एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप में आ गया। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक चले गए।

वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि हे राजन! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं व राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके समान अन्य कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढऩे या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

कामदा एकादशी व्रत का महत्व : kamda ekadashi vrat importance
पंडित शर्मा के अनुसार कामदा एकादशी व्रत करने से सभी प्रकार के पापों से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है। भारतीय हिन्दु धर्म में किसी ब्राह्मण की हत्या करना सबसे भयंकर पाप के रूप में माना जाता है। कामदा एकादशी उपवास करने से ब्राह्मण की हत्या जैसे पाप से मुक्ति मिल जाती है।

कामना :
कहते हैं सच्चे मन से ईश्वर की उपासना करने से हर समस्या का समाधान मिल सकता है। पंडित शर्मा के अनुसार अगर आपकी संतान प्राप्ति की कामना अभी तक अधूरी है, तो कामदा एकादशी का व्रत करना आपके लिए विशेष लाभकारी हो सकता है।

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