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शत्रु हो या कोई बड़ा संकट माँ दुर्गा करेंगी हमेशा रक्षा, नवरात्र में हर रोज करें इस स्तुति का पाठ

locationभोपालPublished: Sep 23, 2019 12:08:57 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

Navratri 2019 : Durga Devi Stotra : भगवान श्री विष्णु के श्री मुख से निकले इस माँ दुर्गा के देवी स्त्रोत का पाठ करने से माता सदैव रक्षा करती है। साल 2019 में शारदीय आश्विन नवरात्रि पर 29 सिंतबर से शुरू होकर 7 अक्टूबर तक रहेगी।

शत्रु हो या कोई बड़ा संकट माँ दुर्गा करेंगी हमेशा रक्षा, नवरात्र में हर रोज करें इस स्तुति का पाठ

शत्रु हो या कोई बड़ा संकट माँ दुर्गा करेंगी हमेशा रक्षा, नवरात्र में हर रोज करें इस स्तुति का पाठ

अगर किसी के जीवन में कोई परेशानी हो या फिर हो किसी शत्रु का भय नवरात्रि काल में देवी भागवत पुराण के तीसरे स्कंद में भगवान श्री विष्णु के श्री मुख से निकले इस माँ दुर्गा के देवी स्त्रोत का पाठ करने से माता सदैव रक्षा करती है। साल 2019 में शारदीय आश्विन नवरात्रि पर 29 सिंतबर से शुरू होकर 7 अक्टूबर तक रहेगी।

 

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1- नमो देव्यै प्रकृत्यै च विधात्र्यै सततं नम:।
कल्याण्यै कामदायै च वृद्धयै सिद्धयै नमो नम:।।
सच्चिदानन्दरूपिण्यै संसारारणयै नम:।
पंचकृत्यविधात्र्यै ते भुवनेश्यै नमो नम:।।
सर्वाधिष्ठानरूपायै कूटस्थायै नमो नम:।
अर्धमात्रार्थभूतायै हृल्लेखायै नमो नम:।।

2- ज्ञातं मयाsखिलमिदं त्वयि सन्निविष्टं।
त्वत्तोsस्य सम्भवलयावपि मातरद्य।
शक्तिश्च तेsस्य करणे विततप्रभावा।
ज्ञाताsधुना सकललोकमयीति नूनम्।।
विस्तार्य सर्वमखिलं सदसद्विकारं।
सन्दर्शयस्यविकलं पुरुषाय काले।
तत्त्वैश्च षोडशभिरेव च सप्तभिश्च।
भासीन्द्रजालमिव न: किल रंजनाय।।

शत्रु हो या कोई बड़ा संकट माँ दुर्गा करेंगी हमेशा रक्षा, नवरात्र में हर रोज करें इस स्तुति का पाठ

3- न त्वामृते किमपि वस्तुगतं विभाति।
व्याप्यैव सर्वमखिलं त्वमवस्थिताsसि।
शक्तिं विना व्यवहृतो पुरुषोsप्यशक्तो।
बम्भण्यते जननि बुद्धिमता जनेन।।
प्रीणासि विश्वमखिलं सततं प्रभावै:।
स्वैस्तेजसा च सकलं प्रकटीकरोषि।
अस्त्येव देवि तरसा किल कल्पकाले।
को वेद देवि चरितं तव वैभवस्य।।

4- त्राता वयं जननि ते मधुकैटभाभ्यां।
लोकाश्च ते सुवितता: खलु दर्शिता वै।
नीता: सुखस्य भवने परमां च कोटिं।
यद्दर्शनं तव भवानि महाप्रभावम्।।
नाहं भवो न च विरिण्चि विवेद मात:।
कोsन्यो हि वेत्ति चरितं तव दुर्विभाव्यम्।
कानीह सन्ति भुवनानि महाप्रभावे।
ह्यस्मिन्भवानि रचिते रचनाकलापे।।

 

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5- अस्माभिरत्र भुवे हरिरन्य एव।
दृष्ट: शिव: कमलज: प्रथितप्रभाव:।
अन्येषु देवि भुवनेषु न सन्ति किं ते।
किं विद्य देवि विततं तव सुप्रभावम्।।
याचेsम्ब तेsड़्घ्रिकमलं प्रणिपत्य कामं
चित्ते सदा वसतु रूपमिदं तवैतत्।
नामापि वक्त्रकुहरे सततं तवैव।
संदर्शनं तव पदाम्बुजयो: सदैव।।

6- भृत्योsयमस्ति सततं मयि भावनीयं।
त्वां स्वामिनीति मनसा ननु चिन्तयामि।
एषाssवयोरविरता किल देवि भूया।
द्वयाप्ति: सदैव जननीसुतयोरिवार्ये।।
त्वं वेत्सि सर्वमखिलं भुवनप्रपंचं।
सर्वज्ञता परिसमाप्तिनितान्तभूमि:।
किं पामरेण जगदम्ब निवेदनीयं।
यद्युक्तमाचर भवानि तवेंगितं स्यात्।।

शत्रु हो या कोई बड़ा संकट माँ दुर्गा करेंगी हमेशा रक्षा, नवरात्र में हर रोज करें इस स्तुति का पाठ

7- ब्रह्मा सृजत्यवति विष्णुरुमापतिश्च।
संहारकारक इयं तु जने प्रसिद्धि:।
किं सत्यमेतदपि देवि तवेच्छया वै।
कर्तुं क्षमा वयमजे तव शक्तियुक्ता:।।
धात्री धराधरसुते न जगद् बिभर्ति।
आधारशक्तिरखिलं तव वै बिभर्ति।
सूर्योsपि भाति वरदे प्रभया युतस्ते।
त्वं सर्वमेतदखिलं विरजा विभासि।।

8- ब्रह्माsहमीश्वरवर: किल ते प्रभावा-।
त्सर्वे वयं जनियुता न यदा तु नित्या:।
केsन्ये सुरा: शतमखप्रमुखाश्च नित्या।
नित्या त्वमेव जननी प्रकृति: पुराणा।।
त्वं चेद्भवानि दयसे पुरुषं पुराणं।
जानेsहमद्य तव सन्निधिग: सदैव।
नोचेदहं विभुरनादिरनीह ईशो।
विश्वात्मधीरति तम:प्रक्रति: सदै ।।

 

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9- विद्या त्वमेव ननु बुद्धिमतां नराणां।
शक्तिस्त्वमेव किल शक्तिमतां सदैव।
त्वं कीर्तिकान्तिकमलामलतुष्टिरूपा।
मुक्तिप्रदा विरतिरेव मनुष्यलोके।।
गायत्र्यसि प्रथमवेदकला त्वमेव।
स्वाहा स्वधा भगवती सगुणार्धमात्रा।
आम्नाय एव विहितो निगमो भवत्या।
संजीवनाय सततं सुरपूर्वजानाम्।।


10- मोक्षार्थमेव रचयस्यखिलं प्रपंचं।
तेषां गता: खलु यतो ननु जीवभाम्।
अंशा अनादिनिधनस्य किलानघस्य।
पूर्णार्णवस्य वितता हि यथा तरंगा:।।
जीवो यदा तु परिवेत्ति तवैव कृत्यं।
त्वं संहरस्यखिलमेतदिति प्रसिद्धम्।
नाट्यं नटेन रचितं वितथेsन्तरंगे।
कार्ये कृते विरमसे प्रथितप्रभावा।।

11- त्राता त्वमेव मम मोहमयाद्भवाब्धे-।
स्त्वामम्बिके सततमेमि महार्तिदे च।
रागादिभिर्विरचिते वितथे किलान्ते।
मामेव पाहि बहुदु:खकरे च काले।।
नमो देवि महाविद्ये नमामि चरणौ तव।
सदा ज्ञानप्रकाशं मे देहि सर्वार्थदे शिवे।।

।। इति श्रीमद्देवीभागवते महापुराणे तृतीयस्कन्धे विष्णुना कृतं देवीस्तोत्रं ।।

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