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काशी के पहलवानों के कंठ में रमाए राम, तब शुरु हुई रामलीला

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में भगवान श्रीराम की लीला की शुरुआत सबसे पहले गोस्वामी तुलसीदास और उनके प्रिय मित्र मेघा भगत ने की

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Sunil Sharma

Sep 28, 2017

ramlila

ramayan manchan in vanaras

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में भगवान श्रीराम की लीला की शुरुआत सबसे पहले गोस्वामी तुलसीदास और उनके प्रिय मित्र मेघा भगत ने की। उन दिनों रामलीला का यह स्वरूप आज से बिलकुल अलग था। रामलीला के नाम पर सिर्फ विभिन्न प्रकरणों की झांकियां ही दिखाई जाती रहीं। जैसे राम जन्म, राम वन गमन, सीता हरण, रावण वध आदि। इस तरह के मंचन से तुलसीदास संतुष्ट नहीं थे और इसमें बदलाव चाहते थे। इसी बदलाव से हुआ नई रामलीला का जन्म।

गोस्वामी तुलसीदास ने अपने परम मित्र मेघा भगत से एक दिन कहा कि अब तक जो रामकथा के नाम पर झांकियां दिखाई जा रही है उसमें क्यों न कुछ नया किया जाए। वे चाहते थे कि इन झांकियों को संगीतमय रूप में प्रस्तुत किया जाए। इसकी इच्छा भी उन्होंने अपने मित्र के सामने व्यक्त की। मेघा भगत को उनकी बात तो अच्छी लगी लेकिन यह कैसे संभव होगा उन्हें पता नहीं था। मित्र की असमर्थता को देखते हुए करीब 1609-10 में गोस्वामी जी ने रामलीला संगीतमय हो सके खुद इसकी पहल करने का निर्णय लिया।

इस काम के लिए गोस्वामी जी ने अनोखा तरीका निकाला। उन्होंने पहले काशी के 12 स्थानों पर हनुमान मंदिर और अखाड़ों का निर्माण कराया।अखाड़ों में आने वाले पहलवानों में से जो कमजोर होता था उन्हें रामायण गाने की ट्रेनिंग दी जाती थी। धीरे-धीरे ये पहलवान ही रामलीला में रामचरित मानस को लय देने लगे। झाल मजीरा का प्रयोग होने लगा। इसके लिए अलाप दिया गया। ये दौर था 1602 से 1612 तक का। 1624 में तो गोस्वामी जी का देहांत ही हो गया।

काशी नरेश के आने पर ही मंचन
यहां के रामनगर की रामलीला के बारे में यह कहा जाता है कि 1783 में इसकी शुरुआत काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने की थी। यहां रामलीला का मंचन इकतीस दिन तक चलता है। यहां आज भी चमचमाती लाइट और लाउडस्पीकर का इस्तेमाल रामलीला के मंचन में नहीं होता। केवल पेट्रोमेक्स या मशाल की रोशनी में खुले मंच पर इसे खेला जाता है। इस परंपरा के अनुसार हर दिन काशी नरेश गजराज पर सवार होकर आते हैं और उसी के बाद रामलीला प्रारंभ होती है।

इस मंचन का आधार रामचरित मानस है, इसलिए यहां आने वाले सभी लोग अपने साथ रामचरितमानस लाते हैं और साथ-साथ पाठ भी करते हैं। वहीं काशी रामलीला की प्राचीनता को देखते हुए विदेशी विद्वानों ने भी इसे महत्व दिया है। प्रो. रिचर्ड शेरनर, प्रो.रिंडा हैस, प्रो. मार्ककॉट, प्रो.ओला आदि नाम इनमें प्रमुख हैं। इन विद्वानों ने वाराणसी में सालों बिताए और रामलीला की बारीकियों का अध्ययन किया। उस पर खुद शोध किया और अपने विद्यार्थियों से भी शोध कराया।

टोडरमल रामलीला के फाइनेंसर थे
संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वं भर नाथ मिश्र के अनुज डॉ विजय नाथ बताते हैं- गोस्वामी जी की संगीतमयी रामलीला का श्री गणेश करने वालों में टोडरमल, स्वामी कुमार स्वामी भी प्रमुख थे। शुरुआत में रामलीला में जो खामियां नजर आती थीं गोस्वामी जी उसे न केवल दूर करने की सलाह देते थे बल्कि उसके लिए खुद भी पहल करते थे। वहीं टोडर मल इसी प्रक्रिया में फाइनेंसर की भूमिका निभाते थे।