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Rang Panchami 2025: रंगपंचमी पर फिर खेली जाएगी होली, देवता देते हैं आशीर्वाद, जानें रंगपंचमी डेट और महत्व

Rang Panchami 2025: रंगपंचमी के साथ ही रंगोत्सव खत्म होने वाला है। मान्यता है इस दिन होली खेलने वालों को देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। आइये जानते हैं कब है रंग पंचमी और क्या है इसका महत्व (Radha Krishna Puja)

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भारत

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Pravin Pandey

Mar 16, 2025

Rang Panchami 2025 Date Holi Festival

Rang Panchami 2025 Date Holi Festival: रंग पंचमी 2025

Holi Festival: हिंदू धर्म के अनुसार हमारे यहां 5 पंचमी विशेष रूप से सेलिब्रेट की जाती है, इसमें से एक है चैत्र कृष्ण पंचमी, जिसे रंग पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन देश के कई हिस्सों में शोभा यात्रा निकाली जाती है और रंग खेला जाता है। आइये जानते हैं कब है रंग पंचमी, कैसे मनाई जाती है रंग पंचमी और कौन से अनुष्ठान होता है (Rang Panchami Anushthan)


Rang Panchami Anushthan: होलिका दहन से चल रहा होली उत्सव रंग पंचमी को संपन्न हो जाता है। इसे देव पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण और माता राधा ने रंग गुलाल की होली खेली थी।


इसी कारण इस दिन मथुरा, वृंदावन, उज्जैन आदि स्थानों पर मंदिरों में राधा कृष्ण की झांकी सजाई जाती है, शोभायात्रा निकाली जाती है, सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते हैं और होली खेली जाती है। उज्जैन में हुरियारों का समूह निकलता है और सड़कों पर निकले हुरियारों के समूह पर नगर निगम की गाड़ियों से रंगों की बौछार छोड़ी जाती है। आइये जानते हैं कब है रंग पंचमी और कैसे मनाते हैं।


कब है रंग पंचमी 2025 का महत्व (Rang Panchami 2025 Date)

पंचांग के अनुसार रंग पंचमी का त्योहार फाल्गुन कृष्ण पंचमी को मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन देवता भी धरती पर आते हैं रंग खेलते हैं। पहले आइये जानते हैं कब है रंग पंचमी


चैत्र कृष्ण पंचमी (रंग पंचमी) तिथि का आरंभः मंगलवार, 18 मार्च को रात 10.09 बजे
चैत्र कृष्ण पंचमी (रंग पंचमी) तिथि का समापनः बुधवार, 19 मार्च 2025 को रात 12:36 बजे
उदया तिथि में रंग पंचमीः बुधवार, 19 मार्च 2025 को

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रंग पंचमी का महत्व (Rang Panchami Importance)

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार रंग पंचमी, 5 पंचमी का विशेष महत्व माना जाता है। इनमें नाग पंचमी, कुंवारा पंचमी, ऋषि पंचमी, वसंत पंचमी के साथ रंग पंचमी शामिल हैं। इनमें होली के पांचवें दिन मनाई जानी वाली रंग पंचमी का विशेष महत्व है।


मान्यता है कि चैत्र कृष्ण पंचमी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने राधा रानी के साथ रंग गुलाल की होली खेली थी। इसी कारण देवगण पृथ्वीलोक पर रंगों से होली खेलने आते हैं। इसलिए लोग पृथ्वीलोक पर रंगोत्सव मनाने आने वाले देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करने के लिए रंग पंचमी पर प्रकृति में रंग गुलाल उड़ाते हैं।


श्री राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण के भक्त इसे अधिक धूमधाम से मनाते हैं। रंग पंचमी के दिन कृष्ण देवालयों में विशेष झाँकी के दर्शन होते हैं, जिसमें भगवान श्री कृष्ण को श्री राधा रानी के साथ होली खेलते दिखाया जाता है।

इस दिन भगवान श्री कृष्ण देवी श्री राधा, भगवान श्री विष्णु और देवी श्री लक्ष्मी, देवी मां मड़वारानी (छत्तीसगढ़), भगवान चारभुजानाथ (मेवाड़) की भी पूजा की जाती है।

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रंग पंचमी कैसे मनाते हैं (Rang Panchami Celebration)


वाराणसी के पुरोहित पं. शिवम तिवारी के अनुसार रंग पंचमी पर कुछ खास तरीके के अनुष्ठान करना चाहिए। आइये जानते हैं क्या हैं अनुष्ठान

1.श्री राधा-कृष्ण और श्री लक्ष्मी-विष्णु जी की पूजा कर उन्हें गुलाल चढ़ाना चाहिए।

2. श्री राधा-कृष्ण के देवालयों में दर्शन के लिए भीड़ उमड़ती है। इस दिन प्रियजनों के घर जाकर शुभकामनाएं देने का नियम है। इस दिन घरों में पाक व्यंजन बनाए जाते हैं और प्रियजनों में मिठाई का आदान प्रदान किया जाता है।

3. पारंपरिक गायन, वादन और नृत्य आदि के लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम इस दिन किए जाते हैं।

4. मथुरा वृंदावन में रंग पंचमी के दिन ही मंदिरों में आयोजित होने वाली पांच दिवसीय होली उत्सव का समापन होता है। इस दिन यहां देवालयों में श्री राधा-कृष्ण को गुलाल अर्पित करने के बाद भक्तों पर अबीर-गुलाल उड़ाया जाता है।

रंग पंचमी पर वृंदावन के श्री रंग नाथ मंदिर में गुलाल की होली का आयोजन होता है और भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें हाथी पर सवार होकर मंदिर के सेवायतगण पूरे वृंदावन में गुलाल उड़ाते हुए निकलते हैं।

5. इंदौर, भोपाल और मालवा क्षेत्र में गेर उत्सव मनाया जाता है। नगर निगम की ओर से होली उत्सव मनाया जाता है, शोभायात्रा निकाली जाती है और सड़कों पर निकले हुरियारों पर रंग डाला जाता है। नृत्य संगीत नाटिका का आयोजन होता है।

महाकाल मंदिर में टेसू के फूलों, चंदर, केसर से निर्मित सुगंधित रंग से बाबा महाकाल के साथ इस दिन होली खेली जाती है। इसके लिए महाकाल की पूजा-अर्चना के बाद हाथी, घोड़े, ऊंट, रथ, चांदी के ध्वज और विजय पताका के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें शस्त्र कलाओं का प्रदर्शन भी किया जाता है।