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कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष है बेहद खास: जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

locationभोपालPublished: Nov 26, 2020 11:55:56 am

– कब है कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष (When is the Shukla Paksha Pradosh of Kartik month)- कार्तिक माह प्रदोष की खासियत (Features of Kartik month Pradosh)- 2020 में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष का शुभ मुहूर्त (Pradosh auspicious time of Shukla Paksha of Kartik month in 2020)- कार्तिक शुक्ल पक्ष में प्रदोष की पूजा विधि (Pradosh worship method in Kartik Shukla Paksha)
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष कल 27 November 2020

Shukra Pradosh of Kartik month Shukla Paksha is very special 27 November 2020

Shukra Pradosh of Kartik month Shukla Paksha is very special 27 November 2020

बैकुंठ चतुर्दशी व देव दिवाली से ठीक पहले यानि 27 नवंबर, शुक्रवार को वर्ष 2020 का अगला प्रदोष व्रत है। सनातन धर्म में हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी मनाई जाती है और प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित होता है। पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत एक साल में कई बार आता है, प्रायः यह व्रत महीने में दो बार आता है। मान्यता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने वाले सभी व्रतों में प्रदोष व्रत बहुत जल्दी ही उनकी कृपा और शुभ फल दिलाने वाला है।

प्रदोष व्रत की खासियत
प्रदोष-व्रत चन्द्रमौलेश्वर भगवान शिव की प्रसन्नता व आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। भगवान शिव को आशुतोष भी कहा गया है, जिसका आशय है-शीघ्र प्रसन्न होकर आशीष देने वाले। प्रदोष-व्रत को श्रद्धा व भक्तिपूर्वक करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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माना जाता है कि प्रदोषकाल में भगवान शिव कैलास पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं। ऐसे में इस पावन तिथि पर भोलेनाथ की साधना करने से वे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों को धन-धान्य से परिपूर्ण करते हैं। प्रदोष व्रत में शिव संग शक्ति यानी माता पार्वती की पूजा की जाती है।

वहीं इस बार प्रदोष शुक्रवार को पड़ रहा है, माना जाता है कि जो लोग शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत रखते हैं, उनके जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है। जबकि इसके बाद वर्ष 2020 में प्रदोष व्रत क्रमश: 12 दिसंबर, शनिवार का यानि शनि प्रदोष व्रत (कृष्ण) और
27 दिसंबर, रविवार को प्रदोष व्रत (शुक्ल) रवि प्रदोष व्रत पड़ेगा।

त्रयोदशी तिथि :
कार्तिक, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ – 07:46 AM, नवम्बर 27
समाप्त – 10:21 AM, नवम्बर 28

शुभ मुहूर्त: 27 नवंबर 2020, शुक्रवार
नवम्बर 27, 2020 शुक्रवार
पूजा मुहूर्त- 05:24 PM से 08:06 PM

शुक्र प्रदोष व्रत के फायदे
माना जाता है कि शुक्र प्रदोष व्रत करने से शिव जी की कृपा बनी रहती है। साथ ही इस व्रत से जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता है और रोगों पर होने वाले खर्चों में कमी आती है। इसके अलावा दाम्पत्य जीवन में आने वाला क्लेश दूर हो जाता है और डायबिटीज में भी आराम मिलता है।

ऐसे करें शुक्र प्रदोष व्रत
शुक्र प्रदोष के दिन सुबह उठकर स्नान कर हल्के रंग के सफेद या गुलाबी रंग वस्त्र धारण करें। इसके बाद सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल के साथ चीनी मिलाएं और अघर्य दें। भगवान शिव के मन्त्र ॐ नमः शिवाय का जाप करें। भगवान शिव को पंचामृत (दूध दही घी शहद और शक्कर) से स्नान कराएं। उसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर रोली, मौली और चावल धूप दीप से पूजा करें। साबुत चावल की खीर बनाएं और फल शंकर जी को चढ़ाएं। वहीं आसन पर बैठकर नमः शिवाय मन्त्र 108 बार जपें।

व्रत में ये बरतें सावधानी (क्या करें व क्या न करें)
शुक्र प्रदोष व्रत में कुछ सावधानियां बरतें। इसके लिए सबसे पहले अपने घर पर आई हुई सभी स्त्रियों को मिठाई खिलाएं और जल पिलाएं। साथ में घर और घर के मंदिर में साफ-सफाई का जरूर ध्यान रखें। शंकर जी पूजा में काले गहरे रंग के कपड़े न पहनें। व्रत के दौरान मन में दुष्विचार ना आने दें। अपने गुरु और पिता के साथ अच्छा व्यवहार करें।

जानें क्या है प्रदोष व्रत?
हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इसे त्रयोदशी तिथि का व्रत भी कहा जाता है। मान्यता है कि सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का जो समय होता है उसे ही प्रदोष काल कहा जाता है। इस व्रत में शिव जी और माता पार्वती की पूजा की जाती है। मान्यता है कि अगर कोई सच्चे मन और निष्ठा के साथ यह व्रत करें तो उसकी हर इच्छा पूर्ण होती है। वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत होता ही है लेकिन उन सब में से प्रदोष व्रत को काफी ज्यादा मान्यता दी गई है।

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शास्त्रों के अनुसार, हर मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि में शाम के समय प्रदोष होता ही है। कहा जाता है कि जिस समय प्रदोष होता है उस समय शिव जी कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में नृत्य कर रहे होते हैं। यही कारण है कि लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत करते हैं। मान्यता है तो यह भी है कि अगर यह व्रत किया जाए तो हर तरह के दोष मिट जाता है। कलयुग में प्रदोष व्रत को करना बहुत मंगलकारी होता है। ऐसे में इस व्रत का महत्व बहुत ज्यादा है।

प्रदोष व्रत की विधि
शाम का समय प्रदोष व्रत पूजन समय के लिए अच्छा माना जाता है क्यूंकि हिन्दू पंचांग के अनुसार सभी शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष मंत्र का जाप करतेहैं।

प्रदोष व्रत के नियम और विधि –

: प्रदोष व्रत करने के लिए सबसे पहले आप त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं।
: स्नान आदि करने के बाद आप साफ़ वस्त्र पहन लें।
: उसके बाद आप बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें।
: इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है।
: पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफ़ेद रंग का वस्त्र धारण करें।
: आप स्वच्छ जल या गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें।
: अब आप गाय का गोबर ले और उसकी मदद से मंडप तैयार कर लें।
: पांच अलग-अलग रंगों की मदद से आप मंडप में रंगोली बना लें।
: पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं।
: भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं।

प्रदोष व्रत का उद्यापन
जो उपासक इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशी तक रखते हैं, उन्हें इस व्रत का उद्यापन विधिवत तरीके से करना चाहिए।

: व्रत का उद्यापन आप त्रयोदशी तिथि पर ही करें।
: उद्यापन करने से एक दिन पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है। और उद्यापन से पहले वाली रात को कीर्तन करते हुए जागरण करते हैं।
: अगर दिन सुबह जल्दी उठकर मंडप बनाना होता है और उसे वस्त्रों और रंगोली से सजाया जाता है।
: ऊँ उमा सहित शिवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन करते हैं।
: खीर का प्रयोग हवन में आहूति के लिए किया जाता है।
: हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती और शान्ति पाठ करते हैं।
: इसके बाद अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने इच्छा और सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देते हुए उनसे आशीर्वाद लेते हैं।

प्रदोष व्रत कथा
इस व्रत की पौराणिक कथा स्कंद पुराण में दी गयी, एक कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है। एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोज़ाना भिक्षा मांगने जाती और संध्या के समय तक लौट आती। हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है ?

दरअसल उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था। उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया। पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया। बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया।

कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई, जहाँ उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई।ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी।

ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानि कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है।

कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी। राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए। कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया। कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया।

राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी। उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया। राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया।

कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था। उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी। उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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