
CG Naxal News: ओडिशा बॉर्डर से लगे इलाके के जंगल नक्सलियों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रहे हैं। नामाकूल माहौल में छिपने का सुरक्षित ठिकाना होने के साथ बस्तर से कांकेर, धमतरी होते हुए छिपते-छिपाते ओडिशा भागने का रास्ता भी है। लंबे अरसे तक नक्सलियों ने यहां अपनी वैसी धमक दर्ज नहीं कराई, जिससे उनकी अच्छी-खासी मौजूदगी का अंदाजा हो।
सूत्र बताते हैं कि यहां घने जंगलों में नक्सली महीने-महीनेभर लंबी मीटिंग करते थे। जनवरी महीने में भी इसी मेगा मीटिंग के लिए भालुडिग्गी की पहाड़ियों पर इकट्ठे हुए थे। तब एक हजार से ज्यादा जवानों ने बड़ा ऑपरेशन चलाते हुए 16 नक्सलियों को मार गिराया था। इनमें एक करोड़ का ईनामी सीसी कमेटी मेंबर चलपति भी शामिल था। इसके बाद फोर्स के प्रति न केवल ग्रामीणों का भरोसा बढ़ा, बल्कि लोकल इंटेलिजेंस भी मजबूत हुआ है। इसे हालिया घटना से समझिए। जुगाड़ के जंगलों में बसे मोतीपानी गांव के करीब नक्सलियों ने 4 दिन पहले ही कैंप डालने की तैयारी की थी। फोर्स को फौरन सूचना मिल गई।
जवानों को सर्चिंग पर भेजकर एक नक्सली को मौके पर ढेर कर दिया गया। बाकी भाग निकले। जंगल में अब भी 30 नक्सलियों के छिपे होने का अनुमान है। ये सभी धमतरी-नुआपाड़ा-गरियाबंद डिवीजन कमेटी में उदंती एरिया कमेटी, रावस कमेटी, गोबरा दलम, सीतानदी दलम, मैनपुर दलम, नगरी दलम जैसे संगठनाें के सदस्य हैं।
इन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पुलिस और फोर्स लगातार जंगलों और गांवों में सरकार की आत्मसमर्पण नीति से जुड़े पर्चे फेंक रही है। सरेंडर नहीं करने वालों को सबक सिखाने के लिए सरहदी इलाकों में सर्च ऑपरेशन भी तेज किए गए हैं। ऐसे में नक्सलियों को अब अपने सबसे सेफ जोन में ही छिपने की जगह कम पड़ रही है।
गरियाबंद जिले में पिछली और हालिया मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों की बात करें, तो इनमें से ज्यादातर बस्तर, बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर से थे। कुछ ओड़िशा, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र के भी थे। तीन दिन पहले मुठभेड़ में मारा गया नक्सलियों का डीवीसीएम योगेश भी बस्तर से था। साफ है कि नक्सलियों के लोकल काडर में अब कोई लोकल नहीं रह गया है।
दलम और एरिया कमेटियों में स्थानीय स्तर पर पिछले 10 साल से नई भर्तियों की बात भी सामने आई है। इसकी सीधी सी वजह है कि अंदरूनी इलाकों तक प्रशासन और फोर्स की पहुंच बढ़ने के बाद ग्रामीणों ने नक्सलियों से पूरी तरह किनारा कर लिया है। ऐसे में नक्सली लंबे वक्त से इलाके में बस्तर समेत दूसरी जगहों से लड़ाके भेजकर संगठन को सक्रिय रखे हैं।
भालुडिग्गी की पहाड़ियों पर चलाया गया ऑपरेशन गरियाबंद पुलिस की अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी है। इसमें नक्सलियों के कई बड़े नेता मारे गए। जान बचाकर भागने वाले भी धीरे-धीरे हथियार डाल रहे हैं। जनवरी से अब तक हमले में शामिल 6 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। तीन ने गरियाबंद, तो तीन ने बस्तर में सरेंडर किया। पुलिस अफसरों की मानें तो खोखली होती नक्सल विचारधारा से अब कोई जुड़ना नहीं चाहता।
पहले ही संगठन जॉइन कर चुके लोग बड़े नेताओं के दबाव में चाहकर भी सरेंडर नहीं कर पाते। भालुडिग्गी में बड़े नेताओं के मारे जाने के बाद उनके साथियों ने हिम्मत दिखाई। नक्सल विचारधारा छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़े। पुलिस अभी भी नक्सलियों से समर्पण की अपील कर रही है।
मार्च 2026 तक जिले को हर हाल में नक्सल मुक्त कराना है। इसके लिए हमारे जवान पूरे जोश और उत्साह से मोर्चे पर डटे हैं। पूरी उम्मीद है कि तय समयावधि में टारगेट हासिल कर लेंगे। - निखिल अशोक कुमार राखेचा, एसपी, गरियाबंद
Published on:
07 May 2025 11:21 am
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