
संध्या साहू (Photo source- Patrika)
Sandhya Suicide Case: छत्तीसगढ़ की मिट्टी ने कई होनहार खिलाड़ियों को जन्म दिया है, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राज्य का गौरव बढ़ाया है। ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी इन प्रतिभाओं में मेहनत, जुझारूपन और आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा होता है। ऐसी ही एक चमकदार प्रतिभा थीं छूरा (जिला गरियाबंद) की संध्या साहू, जिन्हें 'गोल्डन गर्ल' कहा जाता था। वेटलिफ्टिंग के क्षेत्र में अपने बेहतरीन प्रदर्शन से उन्होंने न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश का मान बढ़ाया। सीमित संसाधनों और संघर्षों के बावजूद संध्या ने अपने खेल कौशल से यह साबित कर दिया कि समर्पण और मेहनत से किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिले के छुरा क्षेत्र की रहने वाली संध्या साहू राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभाशाली वेटलिफ्टिंग खिलाड़ी थीं, जिन्हें लोग प्यार से "गोल्डन गर्ल" कहकर पुकारते थे। अपने बेहतरीन प्रदर्शन और निरंतर मेहनत के बलबूते उन्होंने कम समय में वेटलिफ्टिंग की दुनिया में एक खास मुकाम हासिल किया था।
बता दें कि गोल्डन गर्ल संध्या साहू का जीवन एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी है, जिसमें संघर्ष, मेहनत और उम्मीद के रंग भरे थे, (Sandhya Sahu Special Story) लेकिन उसका अंत बेहद दर्दनाक और चौंकाने वाला रहा। संध्या साहू ने अपनी पहचान वेटलिफ्टिंग के क्षेत्र में बनाई, लेकिन इस पहचान तक पहुँचने का सफर आसान नहीं था।
संध्या गरियाबंद जिले के छूरा जैसे ग्रामीण क्षेत्र से थीं, जहाँ न तो उच्चस्तरीय खेल सुविधा उपलब्ध थी, न ही प्रशिक्षित कोच की निरंतर उपस्थिति। उन्होंने बेहद साधारण माहौल से निकलकर वेटलिफ्टिंग जैसे चुनौतीपूर्ण खेल में कदम रखा।
उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। खेल का खर्च, यात्रा, डाइट और उपकरण जैसी ज़रूरतें पूरी करना उनके लिए बड़ी चुनौती थी। कई बार उन्होंने टूटी हुई सुविधाओं में भी अभ्यास किया, लेकिन अपने लक्ष्य से कभी विचलित नहीं हुईं।
अधिकांश समय उन्हें स्व-प्रेरणा और आत्म-अनुशासन से ही खुद को आगे बढ़ाना पड़ा। प्रशिक्षण के दौरान संसाधनों की कमी, खेल मैदान का अभाव और उचित मार्गदर्शन की कमी के बावजूद उन्होंने खुद को राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया।
हर प्रतियोगिता में जीत की अपेक्षा, प्रदर्शन का दबाव और भविष्य की अनिश्चितता उनके जीवन का हिस्सा बन चुकी थी। ग्रामीण परिवेश में एक लड़की का खेल क्षेत्र में इतना आगे बढ़ना सामाजिक दबाव का कारण भी बना।
9 जुलाई 2024 को उन्होंने आत्महत्या कर ली। यह कदम केवल एक व्यक्तिगत क्षति नहीं, बल्कि पूरे खेल तंत्र के लिए एक चेतावनी बनकर सामने आया। (Sandhya Sahu Special Story) यह घटना यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमने अपने खिलाड़ियों को केवल पदक तक ही सीमित कर दिया है? क्या वे मानसिक और भावनात्मक समर्थन के उतने ही हकदार नहीं हैं जितना कि वे सम्मान और पुरस्कार के?
संध्या साहू ने कई राज्य स्तरीय वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीतकर गरियाबंद जिले का नाम रोशन किया।
उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर भी छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया और कई बार पोडियम फिनिश हासिल की।
200 मीटर दौड़ में भी राष्ट्रीय रिकॉर्ड बना चुकी हैं, जिससे उनकी बहुप्रतिभा का प्रमाण मिलता है।
क्षेत्रीय कोच: एक होनहार बेटी को हमने खो दिया, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर सकती थी।
खेल विश्लेषक: हमें सिर्फ पदक नहीं चाहिए, खिलाड़ियों को मानसिक और सामाजिक समर्थन भी देना होगा।
Published on:
10 Jul 2025 03:18 pm
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