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कुमार विश्वास बर्थडे: ‘कोई दीवाना कहता है’ ही नहीं कुमार की ये 6 कविताएं भी हैं लाजवाब

प्यार करने वालों को जुबान देने वाले कुमार विश्वास वो कवि हैं, जिन्होंने कविता को आसान किया है। जिनके गीतों ने कवि सम्मेलनों को युवाओं तक पहुंचाया है।

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'कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे,
तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है।

ये मशहूर कवि और शायर कुमार विश्वास का शेर है। इस शेर से बात शुरू करने की एक वजह है। दरअसल जब भी कुमार की बात होती है 'तो कोई दीवाना कहता है' और 'एक पागल लड़की के बिन' पर ही ज्यादा बात होती है। इसकी वजह ये है कि ये दो कविताएं उनकी पहचान बन गई हैं। कुमार विश्वास ने 'कोई दीवाना कहता है' के अलावा भी बहुत कुछ लिखा है जो किसी को भी दीवाना बनाने के लिए काफी है।

कुमार का आज 53वां बर्थडे
आज के समय के सबसे मशहूर कवियों में से एक कुमार विश्वास आज अपना 53वां जन्मदिन मना रहे हैं। गाजियाबाद के रहने वाले कुमार के जन्मदिन पर हम उनकी 6 गजलें और कविताएं आपके लिए लेकर आए हैं। सबसे पहले वही गजल जिसके शेर से हमने शुरुआत की।

तुम्हें जीने में आसानी बहुत है
तुम्हारे खून में पानी बहुत है।

कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे
तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है।

इरादा कर लिया गर खुदकुशी का
तो खुद की आखँ का पानी बहुत है।

तुम्हारे दिल की मनमानी मेरी जां
हमारे दिल ने भी मानी बहुत है।

सबसे महंगे कवियों में से एक हैं कुमार
कुमार विश्वास बीते तीन दशकों से कविता पढ़ रहे हैं। देश विदेश के कवि सम्मेलनों और मुशायरों में उनको बुलाया जाता है। हिन्दी और उर्दू या कहिए कि हिन्दुस्तानी में लिखे उनके गीत लोगों की जुबान पर लगातार चढ़े हुए हैं।

कुमार विश्वास ने यूं तो देशप्रेम, राजनीतिक हालात से लेकर तमाम रोजमर्रा की बातों को भी गजलों में समेटते हैं लेकिन प्रेम पर लिखे उनके गीतों का एक अलग ही जादू लोगों पर चढ़ता है। उनकी ये गजल देखिए-

फिर मिरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी।

फिर मिरे फेसबुक पे आ कर वो
ख़ुद को बैनर बना रही होगी।

अपने बेटे का चूम कर माथा
मुझ को टीका लगा रही होगी।

फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी।

जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सिलवट हटा रही होगी।

फिर से इक रात कट गई होगी
फिर से इक रात आ रही होगी।

कुमार विश्वास की शैली और कविताओं का जादू ही है, जो उनको देश के सबसे महंगे कवियों में शुमार करता है। देश ही नहीं दुनिया भर में जहां उर्दू-हिन्दी को बोलने समझने वाले रहतें, वहां कुमार को बुलाया जाता है।

खुद को आसान कर रही हो ना
हम पे एहसान कर रही हो ना।

जिंदगी हसरतों की मय्यत है
फिर भी अरमान कर रही हो ना।

नींद, सपने, सुकून, उम्मीदें
कितना नुक्सान कर रही हो ना।

हम ने समझा है प्यार, पर तुम तो
जान-पहचान कर रही हो ना।

अन्ना आंदोलन के बाद की राजनीति में एंट्री
कुमार विश्वास की पहचान एक राजनेता के तौर पर भी रही है। 2011 में हुए अन्ना आंदोलन में कुमार विश्वास एक प्रमुख चेहरा थे। आंदोलन के बाद बनी आम आदमी पार्टी के भी वो संस्थापक सदस्यों में से हैं। उन्होंने 2014 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर अमेठी से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा। जिसमें वो राहुल गांधी से हार गए। बाद में उनकी आम आदमी पार्टी से दूरी हो गई। इसके बाद वो फिर से पूरही तरह से कविता की तरफ मुड़ गए।

तुम लाख चाहे मेरी आफ़त में जान रखना
पर अपने वास्ते भी कुछ इम्तिहान रखना।

वो शख्स काम का है दो ऐब भी हैं उस में
इक सर उठाना दूजा मुंह में जबान रखना।

पगली सी एक लड़की से शहर ये खफा है
वो चाहती है पलकों पे आसमान रखना।

केवल फकीरों को है ये कामयाबी हासिल
मस्ती से जीना और खुश सारा जहान रखना।

कुमार विश्वास की एक खास बात ये भी है कि उनकी गजलों, कवितओं में आज का दौर बहुत मिलता है। इस बात को इस तरह समझिए कि गजलों में खतों की बातें तो बहुत मिलती हैं लेकिन कुमार से पहले फेसबुक, फोन का जिक्र शायद ही किसी ने किया है। कुमार जब तुम्हारा फोन आया है, पढ़ते हैं तो युवा उनसे एक अलग ही जुड़ाव महसूस करता है। उनकी ये कविता देखिए-

अजब सी ऊब शामिल हो गई है रोज जीने में
पलों को दिन में, दिन को काट कर जीना महीने में
महज मायूसियां जगती हैं अब कैसी भी आहट पर
हजारों उलझनों के घोंसले लटके हैं चैखट पर
अचानक सब की सब ये चुप्पियां इक साथ पिघली हैं
उम्मीदें सब सिमट कर हाथ बन जाने को मचली हैं
मेरे कमरे के सन्नाटे ने अंगड़ाई सी तोड़ी है
मेरी खीमोशियों ने एक नगमा गुनगुनाया है
तुम्हारा फोन आया है, तुम्हारा फोन आया है।


सती का चैतरा दिख जाए जैसे रूप-बाड़ी में
कि जैसे छठ के मौके पर जगह मिल जाए गाड़ी में
मेरी आवाज से जागे तुम्हारे बाम-ओ-दर जैसे
ये नामुमकिन सी हसरत है, ख़्याली है, मगर जैसे
बड़ी नाकामियों के बाद हिम्मत की लहर जैसे
बड़ी बेचैनियों के बाद राहत का पहर जैसे
बड़ी गुमनामियों के बाद शोहरत की मेहर जैसे
सुबह और शाम को साधे हुए इक दोपहर जैसे
बड़े उन्वान को बांधे हुए छोटी बहर जैसे
नई दुल्हन के शरमाते हुए शाम-ओ-सहर जैसे
हथेली पर रची मेहंदी अचानक मुस्कुराई है
मेरी आंखों में आंसू का सितारा जगमगाया है
तुम्हारा फोन आया है, तुम्हारा फोन आया है।

कुमार विश्वास को बीते 3 दशकों में बहुस से अवार्ड मिल चुके है। हिन्दू- उर्दू के कई मंचों से वो सम्मानित हो चुके हैं। उनको साल 1994 में काव्य-कुमार अवार्ड, साल 2004 में डॉ. सुमन अलंकरण अवार्ड, साल 2006 में साहित्य श्री अवार्ड, साल 2010 में गीत-श्री अवार्ड मिल चुका है।

तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊंगा
सांस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊंगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।


तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।

तुम अलग हुई मुझसे सांस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।