
मॉब लिंचिंग से निपटने में नया विधेयक होगा कारगर हथियार
Mob Lynching: मॉब लिंचिंग और अल्पसंख्यक सुरक्षा पर आयोजित एक सेमिनार में आज वक्ताओं ने अपने विचार रखे। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता सुबही खान ने कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अनुसार भारतीय दंड संहिता अब, भारतीय न्याय संहिता 1860 की जगह लेगी जिसके संबंध में हाल में तीन विधेयक पेश किए गए। दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को क्रमशः भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा।
तीनों विधेयकों को समीक्षा के लिए स्थायी समिति के पास भेज दिया गया है। ये विधेयक देश के कानूनी ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं। जिससे अपराधों को परिभाषित करने, प्रक्रियाओं के संचालन और अदालत में सबूत पेश करने के तरीके पर असर पड़ेगा।
इस विधायी प्रक्रिया को शुरू करके, सरकार समकालीन चुनौतियों का समाधान करने और अपने सभी नागरिकों के लिए निष्पक्ष और समान न्याय सुनिश्चित करने के लिए भारतीय कानूनी प्रणाली को आधुनिक बनाने और सुधार लाने की अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर रही है।
बता दें कि गृहमंत्री ने कहा था कि मॉब लिंचिंग के बारे में बहुत चर्चा हुई है। हमने सावधानीपूर्वक यह सुनिश्चित किया है कि मॉब लिंचिंग के लिए सजा सात साल, आजीवन कारावास या, यहां तक कि, मौत की सजा भी होगी। ये तीनों प्रावधान मॉब लिंचिंग के मामलों में हैं।
हाईकोर्ट अधिवक्ता टीआर शुक्ला ने कहा कि बीएनएस बिल का अनुच्छेद 101(2) मॉब लिंचिंग को इस प्रकार परिभाषित करता है -जब पांच या उससे अधिक व्यक्तियों का समूह, एक साथ, नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य आधार पर किसी व्यक्ति की हत्या करता है, तो ऐसे समूह का प्रत्येक सदस्य, मौत की सजा या आजीवन कारावास या ऐसी अवधि के लिए कारावास जो सात वर्ष से कम नहीं होगी और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा। पूरे देश में, मॉब लिंचिंग के कई कुख्यात मामले सामने आए हैं, जब चोरी, मवेशियों की तस्करी, युवा लड़कियों का अपहरण, और एक अलग धर्म को मानने वाली महिलाओं के साथ भागने जैसे कथित अपराधों की अफवाहों और आरोपों के बाद पीड़ितों की हत्या कर दी गई थी।
नए बिल में शामिल सराहनीय बदलावों में से एक "जीरो एफआईआर प्रणाली" का कार्यान्वयन है। यह प्रावधान प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के तत्काल पंजीकरण की अनुमति देता है, चाहे घटना किसी भी क्षेत्राधिकार में हुई हो। भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को प्रतिस्थापित करने के उद्देश्य से विधेयक पेश करने का निर्णय भारत के कानूनी ढांचे को आधुनिक बनाने और पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
मौजूदा आईपीसी, औपनिवेशिक युग के कानून में निहित होने के कारण, अब समकालीन समाज की जटिलताओं और चुनौतियों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं कर सकता है। अधिक प्रासंगिक, व्यापक और न्यायसंगत कानूनी प्रणाली की आवश्यकता धीरे धीरे और अधिक स्पष्ट हो गई है।
Published on:
01 Sept 2023 06:42 pm
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