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योग के जन्मदाता महर्षि पतंजलि कैसे हुए अंतर्ध्यान, जाने इसके रहस्य, कोडर झील का आकार क्यों है, सर्पाकार

योग के जन्मदाता महर्षि पतंजलि पर्दे के पीछे से अपने शिष्यों को योग की शिक्षा देते थे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इनकी जन्मस्थली गोंडा जनपद के वजीरगंज कस्बा स्थित कोडर झील के तट पर स्थित है।

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महर्षि पतंजलि की छोटी सी प्रतिमा

महर्षि पतंजलि की छोटी सी प्रतिमा

महर्षि पतंजलि पाणिनि के शिष्य थे। एक जनश्रुति के अनुसार महर्षि पतंजलि अपने आश्रम पर शिष्यों को पर्दे के पीछे से शिक्षा दे रहे थे। किसी शिष्य ने अपने गुरु का मुख नहीं देखा था। एक दिन एक शिष्य ने पर्दा हटा कर उन्हें देखना चाहा, तो वह शेषनाग का अवतार होकर अंतर्ध्यान हो गए। महर्षि पतंजलि को शेषनाग का अवतार भी माना जाता है। मान्यता है कि वह सर्प के आकार होकर कोडर झील होते हुए गए। इसलिए झील का आकार आज भी सर्पाकार है।

जल के सहारे धरती पर नाग से बालक के रूप में हुये प्रकट

ऋषि पतंजलि की माता का नाम गोणिका था। इनके पिता के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पतंजलि के जन्म के विषय में ऐसा कहा जाता है कि यह स्वयं अपनी माता के अंजुली के जल के सहारे धरती पर नाग से बालक के रूप में प्रकट हुए थे। माता गोणिका के अंजुली से पतन होने के कारण उन्होंने इनका नाम पतंजलि रखा था। ऋषि को ‘नाग से बालक’ होने के कारण शेषनाग का अवतार भी माना जाता है।

महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली पर बन्ना मंदिर IMAGE CREDIT: Patrika original

महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली का साक्ष्य धर्मग्रंथों में मिलता

महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली का साक्ष्य पाणिनि की अष्टाध्यायी महाभाष्य में मिलता है। जिसमें पतंजलि को गोनर्दीय कहा गया है। जिसका अर्थ है गोनर्द का रहने वाला और गोण्डा जिला गोनर्द का ही अपभ्रंश है। महर्षि पतंजलि का जन्मकाल शुंगवंश के शासनकाल का माना जाता है। जो ईसा से 200 वर्ष पूर्व था।

गोण्डा के कोडर गांव में जन्मे थे, योग के जनक

महर्षि पतंजलि सिर्फ सनातन धर्म ही नहीं आज हर धर्मो के लिए पूज्य हैं। जिनके बताए योग के सूत्र से आज कितने लोगों ने असाध्य रोगों से मुक्ति पा लिया और जिस अमृत को देवताओं ने अपने पास सम्भाल के रखा, उस अमृत स्वरूपी योग को पूरी दुनिया में बांटने वाले महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली जनपद के वजीरगंज विकासखंड के कोडर गांव में स्थित है।

मंदिर पर लगा विशालकाय पीपल का वृक्ष IMAGE CREDIT: Patrika original

योग एक ऐसी विधा जिसका धार्मिक आधार पर कोई बंटवारा नहीं

योग एक ऐसी विधा है जिसका अभी तक धार्मिक आधार पर कोई बटवारा नहीं है। यह लगभग सभी पंथ, सम्प्रदाय व जाति के लोगों का जीवन का हिस्सा बन चुका है। इस कोरोना महामारी से बचने व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए योग का सहारा ले रहे हैं।

महर्षि पतंजलि ने महाभाष्य, पाणिनि, अष्टाध्यायी व योगशास्त्र की रचना

महर्षि पतंजलि ने अपने तीन प्रमुख कार्यो के लिए आज भी विख्यात हैं। व्याकरण की पुस्तक महाभाष्य, पाणिनि अष्टाध्यायी और योगशास्त्र है। काशी में नागकुआं नामक स्थान पर इस ग्रंथ की रचना की थी। आज भी नागपंचमी के दिन इस कुंए के पास अनेक विद्वान व विद्यार्थी एकत्र होकर संस्कृत व्याकरण के संबंध में शास्त्रार्थ करते हैं। महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ है परंतु इसमें साहित्य, धर्म, भूगोल, समाज रहन-सहन से संबंधित तथ्य मिलते हैं।

जन्मस्थली पर बना चबूतरा IMAGE CREDIT: Patrika original

सवा दो बीघा जमीन कागजों में मंदिर के नाम दर्ज

महर्षि पतंजलि के जन्म स्थान पर बने एक छोटे से मंदिर के पुजारी रमेश दास बताते हैं कि सवा दो बीघा जमीन मंदिर के नाम पर है। इस पर भी कई जगहों पर अतिक्रमण है। हम मंदिर की देख रेख व पूजा पाठ करते हैं।