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नेपाल देश से शक्तिपीठ देवीपाटन पहुंची शोभायात्रा, जानिए कौन थे पीर रतन नाथ योगी, कैसे मिली पीर की उपाधि

नवरात्र में पंचमी के दिन पीर रतन नाथ योगी की यात्रा शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर पहुंचती है। नेपाल देश से यह यात्रा शोभा कलस के साथ नवरात्र के 2 दिन पहले चलती है।

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शोभा कलस

नेपाल देश से पीर रतन नाथ योगी की यात्रा का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर की स्थापना पीर रतन नाथ योगी ने ही किया था। योगी को 8 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त थी।

कड़ी सुरक्षा के बीच नेपाल से पीर रतन नाथ योगी की शोभायात्रा परम्परागत ढ़ग से आज देवीपाटन मंदिर पैदल पहुंची है। यात्रा में हजारों के संख्या में श्रद्धालु पैदल यात्रा में शामिल हुए। सदियों से चली आ रही नेपाल-भारत की यह धार्मिक और सांस्कृतिक यात्रा पीर रतन नाथ योगी की शोभायात्रा हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी चैत्र नवरात्रि की पंचमी को देवीपाटन मंदिर पहुंची है। यात्रा नेपाल सीमा स्थित जनकपुर शिव मंदिर से एसडीएम मंगलेश दूबे के अगुवाई में पुलिस और एसएसबी जवानों के कड़ी सुरक्षा में शक्तिपीठ देवीपाटन लाया गया।

मंदिर के पीठाधीश्वर ने यात्रा का किया स्वागत

शक्ति पीठ परिसर स्थित समय माता मंदिर पर नाथ संप्रदाय के परम्परानुसार देवीपाटन पीठाधीश्वर मिथलेश नाथ योगी ने संतों के साथ रतन नाथ योगी (पात्रदेवता) का स्वागत किया। पात्र देवता के मुख्य पुजारी ने शक्तिपीठ पर मां पाटेश्वरी का पूजन किया।

रतन नाथ योगी की तपस्या से मां पाटेश्वरी ने दर्शन देकर दिया वरदान

महायोगी गुरु गोरखनाथ के आदेश से उनके शिष्य रतन नाथ योगी शक्ति की आराधना करते हुए यहां देवीपाटन में वर्षों तक तपस्यारत रहे। तपस्या के दौरान मां पाटेश्वरी ने इन्हें दर्शन दिया। वरदान दिया कि नवरात्रि के पंचमी से नवमी तक मां की पूजा करेंगे। तभी से चैत्र नवरात्रि की पंचमी को रतन नाथ योगी की यात्रा यहां आकर मां की पूजा करते है। यह परंपरा युगों युगों से से चली आ रही है। आज भी यह यात्रा हर वर्ष नेपाल के दांग चौखड़ा रतन नाथ मंदिर से पात्र देवता की यात्रा चैत्र नवरात्रि के पंचमी को देवीपाटन मंदिर पहुंचती है। नवमी पूजन के उपरांत यात्रा वापस नेपाल जाती है।

पूरे वर्ष इस यात्रा का श्रद्धालु करते हैं इंतजार

इस यात्रा का इंतजार श्रद्धालु पूरे वर्ष करते हैं।यह यात्रा चैत्र नवरात्रि से एक दिन पूर्व नेपाल से पैदल चलती है। और नवरात्रि के द्वितीया के दिन नेपाल से भारत की सीमा में कोइलाबास सीमा होते हुए भारत में प्रवेश करती है । भारतीय सीमा स्थित जनकपुर में दो दिन विश्राम कर पंचमी की भोर चलते हुए देवीपाटन मंदिर पहुचती है। यात्रा मार्ग पर सड़क के दोनों पटरियों पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए खड़े रहते हैं। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के चलते प्रशासन को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।

अमृतकलश के दर्शन को उमड़ती है भीड़

नेपाल के दांग से अमृतकलश यात्रा हर साल निकलती है। शोभायात्रा के दौरान श्रद्धालु अपने आराध्य देवता और अक्षयपात्र के साथ पैदल भारत आते हैं। इस यात्रा में नौ दिन का समय लगता है। सिद्ध पीर बाबा रतननाथ नेपाल राष्ट्र के दांग के राजा और गुरू गोरक्षनाथ के भी शिष्य थे। इन्होंने ही शक्तिपीठ देवीपाटन का निर्माण कराया था। मां पाटेश्वरी की पूजा के लिए बाबा प्रतिदिन दांग से यहां आते थे। माता पाटेश्वरी के अनन्य भक्त बाबा रतननाथ सात सौ वर्षो तक जिन्दा थे। बाबा के शरीर छोड़ने के बाद गुरूगोरक्षनाथ के दिए गए अमृत कलश को बाबा रतननाथ के प्रतिनिधि के रूप में नेपाल के दांग से देवीपाटन लाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस अमृतकलश के दर्शनमात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसीलिए इस कलश के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रृद्धालु पहुंंचते हैं।

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देवीपाटन मंदिर पहुंची यात्रा का एक दृश्य IMAGE CREDIT: Patrika original

कौन थे बाबा रतननाथ योगी

51 शक्तिपीठों में से एक देवीपाटन शक्तिपीठ की देशभर में बहुत मान्यता है। देवीपाटन मंदिर के महंत मिथिलेश नाथ के मुताबिक इस मंदिर की स्थापना बाबा रतननाथ ने ही की थी। वह देवी के अन्नय भक्त थे। इसके अलावा बाबा रतननाथ बाबा गोरक्षनाथ के भी शिष्य थे। गोरक्षनाथ ने बाबा रतननाथ को एक अक्षयपात्र दिया था। इसी अक्षयपात्र को हर साल नेपाल से देवीपाटन मंदिर में बड़ी धूमधाम से लाया जाता है। बताया जाता है कि बाबा रतननाथ आठ प्रकार के सिद्धियों के स्वामी थे।

मोहम्मद साहब ने ज्ञान लेने के बदले दिया पीर की उपाधि

सिद्ध पुरुष रतन नाथ योगी विश्व भ्रमण के दौरान मक्का-मदीना में मोहम्मद साहब को भी ज्ञान दिया था। तब मोहम्मद साहब बाबा रतननाथ से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा रतननाथ को पीर की उपाधि दी। इसलिए इन्हें सिद्ध पीर बाबा रतननाथ के नाम से जाना जाता है।

नेपाल के पुजारी संभालते हैं कमान

शिवावतार गुरु गोरक्षनाथ के शिष्य रतननाथ की पूजा से मां पाटेश्वरी इतनी प्रसन्न हुई कि इनसे वरदान मांगने को कहा। तब रतननाथ ने कहा माता मेरी प्रार्थना है कि यहां आपके साथ मेरी भी पूजा हो। देवी ने उन्हें मनचाहा वरदान दे दिया। तभी से मां पाटेश्वरी मंदिर प्रांगण में रतननाथ का दरीचा कायम है। दरीचे में चैत्र नवरात्रि की पंचमी से लेकर एकादशी तक रतननाथ बाबा की पूजा होती है। इनकी पूजा के दौरान घंटे व नगाड़े नहीं बजाए जाते है। मां पाटेश्वरी की पूजा सिर्फ रतननाथ जी के पुजारियों द्वारा ही की जाती है। शोभायात्रा के साथ आए पुजारी पांच दिनों तक मंदिर के पुजारियों को विश्राम देकर पूजा की कमान खुद संभालते हैं।