
मनोरमा नदी की स्थिति पहले और अब फोटो सोर्स पत्रिका
गोंडा जिले में मनोरमा नदी के उद्गम स्थल से पुनर्जीवन देने के लिए काम शुरू हो गया है। वर्ष 2025- 26 में 15 किलोमीटर इसके जीर्णोद्धार का लक्ष्य रखा गया है। ग्रामीण भी इस नदी को नया जीवन देने के लिए अपनी महती भूमिका निभा रहे हैं। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो बहुत ही जल्द एक बार फिर लोगों के कानों में नदी के कल-कल की आवाज गूंजेगी। नदी के पुनर्जीवन से जलसंचय और जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा मिलेगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक जिला और एक नदी कार्यक्रम के तहत गोंडा में मनोरमा नदी के जीर्णोद्धार का कार्य तेजी से प्रगति पर है। पौराणिक महत्व एवं प्राकृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाने वाली मनोरमा नदी के उद्गम स्थल ताड़ी ताल से लेकर रेलवे पुल तक अब तक कुल 1.200 किलोमीटर क्षेत्र में पुनर्जीवन कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न किया जा चुका है। शेष दूरी में जीर्णोद्धार कार्य आगामी दिनों में सघन गति से पूरा किया जाएगा। इस नदी के जीर्णोद्धार कार्य की औपचारिक शुरुआत 8 जुलाई 2025 को की गई थी। वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए नदी के उद्गम स्थल ताड़ी ताल से कुल 15 किलोमीटर तक जीर्णोद्धार कार्य का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
गोंडा एवं बस्ती के विभिन्न विकासखण्डों से होकर प्रवाहित होती है। क्षेत्र के भूगर्भीय जल स्तर, कृषि एवं स्थानीय आजीविका के लिए अत्यंत उपयोगी है। लोक मान्यता के अनुसार मनोरमा नदी का उद्गम विकासखण्ड रूपईडीह स्थित उद्दालक ऋषि आश्रम के समीप तिर्रेमनोरमा ताल से माना जाता रहा है। जबकि वर्तमान में इसका वास्तविक उद्गम स्थल विकासखण्ड इटियाथोक स्थित ताड़ी ताल में स्थित है। मनोरमा नदी की कुल लंबाई लगभग 212 किलोमीटर है। जिसमें से जनपद गोंडा में ही यह नदी लगभग 97 किलोमीटर तक प्रवाहित होती है।
इस महत्वाकांक्षी कार्य में मशीनों के माध्यम से सफाई के साथ-साथ स्थानीय ग्रामीणों एवं अधिकारियों के सहयोग से श्रमदान को भी विशेष प्राथमिकता दी गई है। ताड़ी ताल नाला के टेल से 0.850 किलोमीटर पर निर्मित पुलिया के दोनों ओर लगभग 100 मीटर क्षेत्र में ग्रामीणों और सिंचाई विभाग के अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से श्रमदान कर नदी की सफाई एवं चौड़ीकरण का कार्य किया गया। जिसे जनसहभागिता का उत्कृष्ट उदाहरण माना जा रहा है।
मनोरमा नदी के जीर्णोद्धार से न केवल क्षेत्र के भूमिगत जल स्तर में सुधार होगा। बल्कि जल प्रवाह में निरंतरता बनी रहेगी। जैव विविधता को संरक्षण मिलेगा तथा बाढ़ प्रबंधन को सुदृढ़ता प्राप्त होगी। इसके अतिरिक्त कृषि क्षेत्र में जल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। तथा स्थानीय समुदाय को मत्स्य पालन एवं अन्य जल आधारित आर्थिक गतिविधियों के नए अवसर प्राप्त होंगे।
Published on:
27 Jul 2025 11:53 am
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