scriptडेढ़ सौ साल बाद भी पटाखा की आवाज पर चलती है ट्रेन | Indian railway yet rely on crackers and lime powder for running trains | Patrika News

डेढ़ सौ साल बाद भी पटाखा की आवाज पर चलती है ट्रेन

locationगोरखपुरPublished: Dec 12, 2019 02:12:56 pm

कोहरा से निपटने के लिए अत्याधुनिक डिवाइस होने के बावजूद पटाखा-चूना ही सबसे कारगर हथियार

due to fog train cancel

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जाड़ा की शुरूआत होते ही सफर करने वालों की दिक्कतें भी प्रारंभ हो जाती है। रात में पड़ने वाला कोहरा इन सब परेशानियों का सबसे बड़ा सबब होता है। आलम यह कि कोहरा की वजह से फ्लाइट्स कैंसिल तो होती ही हैं ट्रेनों की गति भी कम होने के साथ कई बार कैंसिल करना होता है। हालांकि, कोहरा में भी प्रभावी तरीके से ट्रेनों (Trains) के संचलन के लिए तमाम तरह के तकनीकों को अपनाया जा रहा लेकिन दशकों पहले का नुस्खा आज भी कोहरा (Fog) में ट्रेनों के संचालन के लिए सबसे अचूक माना जाता है। आज भी कोहरा के दिनों में ट्रेनों को चलाने के लिए चालक सबसे अधिक विश्वास चूना और पटाखा पर करते हैं। हालांकि, इसके लिए अलग से कोई बजट रेलवे (Indian Railway) अलाॅट नहीं करता फिर भी अपने अपने सेक्शन में रेलवे स्टाॅफ ठंडा के पहले चूना की मार्किंग शुरू कर देता है।
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इस तरह होता है चूना व पटाखा का प्रयोग

कोहरा में ट्रेन दुर्घटना से बचने के लिए करीब डेढ़ सौ पुराना तरीका चूना-पटाखा (Lime and crackers) का प्रयोग पुराने तरीके से आज भी होता है। कोहरा में सिग्नल से एक किलोमीटर पहले ही चूना गिरा दिया जाता है। चूना देखकर चालक समझ जाता है कि सिग्नल आने वाला है। इसी तरह करीब 160 मीटर दूर पटाखा पटरी पर लगा दिया जाता है। जैसे ही इंजन पटाखा के उपर से गुजरता है तेज आवाज होती है। इस तेज आवाज से ट्रेन चालक समझ जाता है कि आगे सिग्नल है और वह ट्रेन की रफ्तार कम कर देता है।
रेलवे के अधिकारी व लोको पायलट (Loco Pilot) भी मानते हैं कि अत्याधुनिक फाॅग डिवाइस ट्रेनों में लगाने के बाद भी अत्यधिक कोहरा में सबसे अधिक भरोसेमंद पटाखा व चूना ही लगता है। सभी अन्य प्रकार के अत्याधुनिक उपाय के बावजूद आज भी चूना व पटाखा के साथ ट्रेनों के सुचारु संचालन का काम होता है।
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