30 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

भारत में समाजिक समरसता का श्रेय संत समाज कोः बासवराज पाटिल

गोरखनाथ मंदिर में ‘सामाजिक समरसता एवं सन्त समाज’ विषयक संगोष्ठी ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ महाराज की 50वीं पुण्यतिथि एवं ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ महाराज की पांचवीं पुण्यतिथि समारोह

6 min read
Google source verification
भारत में समाजिक समरसता का श्रेय संत समाज कोः बासवराज पाटिल

भारत में समाजिक समरसता का श्रेय संत समाज कोः बासवराज पाटिल

पूर्व सांसद बासव राज पाटिल ने कहा कि जो सकल जीवात्मा को प्यार करते है वहीं सन्त है। जो सभी जीवों को एक साथ सम्मान दे वहीं सन्त है। जाति-पाति से ऊपर उठकर सभी मानव को समानता का भाव दें वही सन्त है। जो विपरीत परिस्थितियों में भी सामाजिक भावना को न छोड़े वहीं सन्त है। समर्थ गुरू रामदास, तुकाराम, रामानुजाचार्य, पुरन्दरदास, रामानन्द, मीराबाई, कबीर, रविदास, सन्त रामसुखदास, महन्त दिग्विजयनाथ, महन्त अवेद्यनाथ जैसे सन्तों ने सामाजिक समरसता के लिए ना केवल स्वयं आगे आये बल्कि अपने जीवन में समरसता का भाव जगाये रखे तथा औरों को भी समरस होने की प्रेरणा दी। भारत में सामाजिक समरसता यदि कायम है तो इसका सम्पूर्ण श्रेय सन्त समाज को जाता है। गोरक्षपीठ तो अपने सामाजिक समरसता के लिए विश्व पटल पर जाना जाता है।

श्री पाटिल शनिवार को गोरखनाथ मंदिर में आयोजित ‘सामाजिक समरसता एवं सन्त समाज’ विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ महाराज की 50वीं पुण्यतिथि एवं ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ महाराज की पांचवीं पुण्यतिथि समारोह के अंतर्गत आयोजित इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि देश की सभी समस्याओं के समाधान का मूल सामाजिक समरसता में निहित है। हम उस आध्यात्मिक संस्कृति के वारिस है जिसने कण-कण में परमात्मा का वास तथा सभी प्राणियों में उसी परमात्मा का अंश माना है। ऐसे में जातिवाद, प्रान्तवाद, भाषावाद सहित नारी-पुरुष, अमीर-गरीब, ऊँचनीच जैसे भेदभाव हमारी संस्कृति का हिस्सा नही हो सकता। हम समरसता की शिक्षा परिवार से ही सीखते है। सामाजिक समरसता में ही हमारी संस्कृति का प्राण बसता है। सामाजिक समरसता के बगैर भारतीय संस्कृति अधूरी एवं मृत प्रायः है।
पूर्व सांसद ने कहा कि वनवासियों, गृहवासियों से हमें सामाजिक समरसता का मंत्र सीखना होगा, वनवासियों, गिरिवासियों में आज भारत की सांस्कृतिक परम्परा जीवित है और वहाॅ समाज का हर व्यक्ति एक दूसरे का पूरक है। उन्होंने आगे कहा कि दैनन्दिनि जीवन में जो समाज गो-ग्रास निकालता हो, पक्षियों का दाना खिलाता हो, चीटियों का आटा खिलाता हो वह समाज अपनो को ही अछुत कैसे मान सकता है। ऐसे में महापुरूषों की यह वाणी हमारे लिए वरैण्य है कि यदि छुँआछूत यदि पाप नही है तो दुनिया में कुछ भी पाप नही।

दुनिया की श्रेष्ठतम हिन्दू संस्कृति के लिए छुआछूत कोढ

मुख्य अतिथि जूनागढ़, गुजरात से पधारे महन्त शेरनाथ ने कहा कि दुनिया की श्रेष्ठतम हिन्दू संस्कृति, श्रेष्ठतम हिन्दू जीवन पद्धति एवं श्रेष्ठतम् सामाजिक व्यवस्था में जाति के आधार पर ऊँच-नीच की भावना और छुआछूत एक कोढ़ है। धार्मिक संकीर्णता भी हमारे समाज को रूढ़िगत बनाता है। देश के सन्त-महात्मा एवं धर्माचार्य तो स्वतंत्रता के बाद से ही सामाजिक समरसता का अभियान छेड़ दिया। ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने तो इस विषय पर व्यापक जनजागरण का अभियान चलाया। उन्होनें कहा कि हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के वाहक है। हिन्दू संस्कृति तो कण-कण में भगवान का दर्शन कराती है। जहाॅ अद्वैत वेदान्त का दर्शन गूॅजा, उस संस्कृति में छुआछूत एवं धार्मिक संकीर्णता जैसी अमानवीय रूढ़िगत व्यवस्था की स्वीकृति कैसे की जा सकती है। हिन्दू समाज में छुआछूत, उॅच-नीच, अमीर-गरीब, नारी-पुरूष जैसे किसी भी विषमता को कोई स्थान नही है और न ही ये शास्त्र सम्मत है।

छुआछूत मुस्लिम शासनकाल की देन हैं हिंदू समाज का हिस्सा नहीं

दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या के महन्त सुरेशदास महाराज ने कहा कि ‘छुआछूत मिटाओं और देश बचाओ’ का मंत्र फूंकना होगा। छुआछूत की भावना और धार्मिक संकीर्णता से हिन्दू समाज कमजोर होता है, राष्ट्र कमजोर होता है। सामाजिक समरसता को व्यवस्था परिवर्तन का हिस्सा बनाना होगा और सामाजिक समरसता अभियान के लिए शिक्षण संस्थाओं को आगे आना होगा। सनातन हिन्दू धर्म ने कभी भी सामाजिक विषमता को स्थान नही दिया। सनातन धर्म की आर्ष परम्परा के ग्रन्थों के अनेक मंत्रों एवं अनेक ग्रन्थों की रचना उन्होंने की जिन्हे बाद में समाज में अछूत मान लिया गया। हमारे यहाॅ वर्ण व्यवस्था थी किन्तु छुआछूत नही था। छुआछूत मध्यकाल के मुस्लिम शासन काल की देन है। मुस्लिम काल में हिन्दू समाज में अनेक विकृतियाॅ उत्पन्न हुई और कालान्तर में वे रूढ़िग्रस्त हो गई। भारत में सामाजिक विषमता की विषबेली विकसित हुई तो भगवान बुद्ध से रमणि महर्षि, स्वामी रामानन्द, नाथ पंथ की पूरी परम्परा, बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और महन्त दिग्विजयनाथ तथा ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ तक की महात्माओं, संतो की ऐसी परम्परा मिलती है जो सदा इसके खिलाफ संघर्ष करते रहे है। भारत मे धर्मगुरुओं की एक श्रेष्ठ परम्परा रही है जो संस्कृति में आई विकृति के खिलाफ सदा लड़ते रहे है। छुआछूत के खिलाफ भारत में जारी संघर्ष का नेतृत्व आज भी गोरक्षपीठ कर रहा है। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है भारत मानवता की भूमि है। भारत देवभूमि है और भारत एक समरस, संवेदनशील और सभी में एक ही परमात्मा का अंश मानने वाले दर्शन की भूमि है।

हिंदू समाज को जीवित रहने के लिए छुआछूत को दूर करना होगा

अध्यक्षता कर रहे महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के अध्यक्ष पूर्व कुलपति प्रो. यूपी सिंह ने कहा कि हिन्दू समाज को अपने व्यवहार से यह सिद्ध करना होगा कि हम दुनिया के श्रेष्ठतम समाज की पुनसर््थापना में सक्षम है। दुनिया में भौतिकता और आतंक से कराह रही ‘मानवता’ भारत की ओर अपेक्षा भरी नजरों से देख रही है। सत्य सनातन हिन्दू संस्कृति के शाश्वत मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा से ही मानवता की रक्षा सम्भव है। अतः हिन्दू समाज अपने समाज की विकृतियों को दूर करें और राजनीतिक षड्यंत्रों को समझें। हिन्दू समाज को यदि जीवित रहना है तो छुआछूत को समाप्त करना ही होगा।

गोरक्षनाथ ने छुआछूत के खिलाफ सामाजिक क्रान्ति का उद्घोष किया

विशिष्ट वक्ता यूपी उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, प्रयागराज के अध्यक्ष प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय एकता-अखंडता और आधुनिक भारत के निर्माण हेतु आवश्यक है समरस अथवा छुआछूत विहीन समाज की रचना। गुरु गोरक्षनाथ ने छुआछूत के खिलाफ हजारो वर्ष पहले सामाजिक क्रान्ति का उद्घोष किया था। आज भी गोरक्षपीठ सामाजिक क्रान्ति की उस परम्परा को आगे बढ़ाने में लगी हुई है। भेदभाव और छुआछूत भारत की संस्कृति नहीं विकृति है। उन्होंने आगे कहा कि हर देश का एक राष्ट्रीय समाज होता है। भारत का राष्ट्रीय समाज हिन्दू समाज है। राष्ट्रीय समाज जब कमजोर होता है तो राष्ट्र कमजोर होता है। राष्ट्र समाज का जब पतन होता है तो राष्ट्र का पतन होता है। भारत की गुलामी और पतन के लिए वाहय एवं विदेशी ताकते जितनी जिम्मेवार है है उससे कम जिम्मेवार हिन्दू समाज की रूढ़िगत व्यवस्था नही है। ‘मुझे मत छूओ’ अर्थात् छुआछूत की भावना से भारत का राष्ट्रीय समाज कमजोर हुआ। हमारे धर्माचार्यो ने सामाजिक समरसता के निरन्तर प्रयास किये है। गुरू गोरखनाथ, शंकराचार्य, रामानन्दाचार्य से लेकर ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ महाराज और गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ महाराज के नेतृत्व में धर्माचार्यो ने हिन्दू समाज की इस सामाजिक कोढ़ के खिलाफ अनवरत शंखनाद फूंका है। हिन्दू समाज राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की रक्षा हेतु एक होकर अपने समाज की रूढ़ियों के खिलाफ खड़ा हो।

कटक उड़ीसा से पधारे महन्त शिवनाथ महाराज, हरिद्वार से पधारे महन्त शान्तिनाथ, अयोध्या से पधारे महन्त धर्मदास, श्रीगोरखनाथ मन्दिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, बड़ौदा से पधारे महन्त गंगादास महाराज, श्री बड़ेभक्तमाल अयोध्याधाम से पधारे अवधेशदास महाराज, देवीपाटन मन्दिर, तुलसीपुर से पधारे महन्त मिथलेशनाथ, तपसीधाम हरैया बस्ती से पधारे स्वामी जयबक्शदास महाराज, अयोध्या से पधारे महन्त राममिलनदास, चचाईमठ के महन्त पंचाननपुरी आदि भी मंच पर विराजमान रहे।
समारोह का शुभारम्भ दोनों ब्रह्मलीन महाराज को पुष्पांजलि, वैदिक मंगलाचरण एवं गोरक्षाष्टक पाठ के साथ हुआ।
महाराणा प्रताप महिला पीजी कालेज, रामदत्तपुर गोरखपुर की प्राचार्या डाॅ. सरिता सिंह एवं महाराणा प्रताप कन्या इण्टर कालेज, रामदत्तपुर की प्रधानाचार्या वन्दना त्रिपाठी एवं महाराणा प्रताप कृषक इण्टर कालेज जंगल धूसड़ के प्रधानाचार्य संदीप कुमार एवं अन्य शिक्षकों ने माल्यार्पण के साथ अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. श्रीभगवान सिंह ने किया।
इस अवसर पर धीरज सिंह हरीश, अरूणेश शाही, रणजीत सिंह, राजेश सिंह, डाॅ. अरविन्द चतुर्वेदी, पाटेश्वरी सिंह, विजय कुमार सिंह, रोहित मिश्र आदि उपस्थित थे।