
स्वामी प्रसाद मौर्य
यूपी में लोकसभा चुनाव-2014 का इतिहास दोहराने के लिए बीजेपी एक बार फिर महादलित और अतिपिछड़ा कार्ड खेलने की फिराक में है। पार्टी इसके लिए पिछड़ा वर्ग के नेताओं को आगे करना चाहती है। यूपी के काबीना मंत्री और बसपा से आए कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को भी बीजेपी आगे लाना चाहती है लेकिन खुद चुनाव जीतने वाले मौर्या का अपने खास लोगों को चुनाव न जीता पाना अड़ंगा साबित हो रहा है। अभी एक दिन पहले ही मंत्री के विधानसभा क्षेत्र की सबसे अहम प्रमुख पद की कुर्सी का उनके खास से छीना जाना किरकिरी कर रहा है। विपक्ष इस मामले को तूल दे रहा।
एक दर्जन से अधिक सीटों पर कुशवाहा वोटरों का प्रभाव
बीजेपी अपने काबीना मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को आगे उनके जातीय समीकरण को देखते हुए करना चाह रही है। हालांकि, कुशवाहा या कोईरी वोटर पहले से ही बीजेपी का वोटर माना जाता रहा है लेकिन मौर्य के आने से वोटबैंक को और मजबूती मिली है। लेकिन जानकार यह भी तर्क देते हैं कि मौर्य के बसपा छोड़ने का मनोवैज्ञानिक दबाव तात्कालिक तौर पर तो पड़ा था लेकिन बीजेपी को अब कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है। वजह यह कि विरोधी उनके करीबियों के पदच्युत होने का मुद्दा बना रहे। यही नहीं यूपी में बीजेपी की लहर के बावजूद मौर्य के सुपुत्र को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव में भी स्वामी प्रसाद मौर्य की सुपुत्री चुनाव हार चुकी हैं। इधर, चुनाव के ऐन पहले मौर्य के विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़े ब्लाॅक की प्रमुखी की कुर्सी भी उनके करीबी की छिन गई। सत्ता में होने के बावजूद पूरी ताकत लगाने वाले काबीना मंत्री अपने खास की प्रमुख पद की कुर्सी बचाने में नाकामयाब रहे।
और मौर्य के खास ने गंवा दी थी कुर्सी
कुशीनगर के पडरौना विधानसभा क्षेत्र के सबसे बड़े ब्लॉक विशुनपुरा में प्रमुख की कुर्सी को लेकर सोमवार को अविश्वास पर बहस हुई। प्रमुख के खिलाफ एकतरफा 66 मत पड़े। एक साल पहले इस सीट को प्रदेश के कद्दावर मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के खास गोल्डी जायसवाल की पत्नी कंचन जायसवाल ने जीती थी। इसके पूर्व इस सीट पर समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता विक्रमा यादव का दबदबा रहा। 20 साल तक लगातार वह या उनके परिवार का कोई सदस्य यहां से ब्लॉक प्रमुख रहा। विक्रमा यादव के इस सीट पर पकड़ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2011 में हुए प्रमुख चुनाव में विक्रमा यादव को हरवाने के लिए तत्कालीन केंद्रीय राज्य मंत्री आरपीएन सिंह, बीजेपी के कई कद्दावर नेता, समाजवादी पार्टी के कई बड़े चेहरे संयुक्त प्रत्याशी के रूप में एक प्रत्याशी को लेकर आये थे लेकिन काफी रशाकशी के बाद भी संयुक्त विपक्ष का प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका था। इसके पहले हुए चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए यह सीट आरक्षित हुई तो वह अपने ड्राइवर को चुनाव जितवाने में सफल हुए थे। हालांकि, इस बार हुए चुनाव में विशुनपुरा के ताकतवर प्रमुख विक्रमा यादव को बैकफुट पर आना पड़ा। प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री व पडरौना के विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य के खास गोल्डी जायसवाल अपनी पत्नी कंचन जायसवाल को एकतरफा चुनाव जितवाने में सफल हुए थे। आलम यह कि विक्रम यादव या उनके परिवार का कोई सदस्य पर्चा तक दाखिल नहीं कर सका था। पर एक साल बीतते ही कद्दावर मंत्री के खास इस प्रमुख की कुर्सी खतरे में पड़ती दिख रही है। पूर्व प्रमुख विक्रमा यादव ने बीते दिनों 77 से अधिक बीडीसी का कलेक्ट्रेट पर मार्च करा अविश्वास ला दिया। अब चर्चा यह है कि बीजेपी की सरकार में ही कद्दावर मंत्री के खास की कुर्सी खतरे में पड़ गई है। हालांकि, राजनैतिक सूत्र यह भी कह रहे कि कद्दावर मंत्री के अलावा बगल के जिले के भी एल वरिष्ठ मंत्री प्रमुखी बचाने के लिए मैनेज करने में लगे हुए थे।
बता दें कि पडरौना विधानसभा क्षेत्र में दो ब्लाॅक हैं। विशुनपुरा व पडरौना। वोट के नजरिए से विशुनपुरा सबसे बड़ा ब्लाॅक है। ऐसे में कद्दावर मंत्री के खास का हारना उनकी लोकप्रियता पर भी असर कर सकता है।
भाजपा संगठन भी नहीं दिखा मौर्य के खास के साथ
स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा के मंत्री है। स्वयं भाजपा सुप्रीमो अमित शाह ने उनको पार्टी में लाया था। कुशीनगर के पडरौना में वह विधायक भले ही बन गए लेकिन ऐसा लग रहा कि पार्टी अभी भी उनसे दूरी बनाए हुए है। इसका मुजाहिरा सोमवार को भी हुआ। स्वामी के खास और भाजपा नेता गोल्डी जायसवाल की पत्नी कंचन जायसवाल की कुर्सी जा रही थी लेकिन उसको बचाने के लिए काबीना मंत्री के लोगों के अलावा संगठन के लोग कहीं नहीं दिखे। जबकि अभी कुछ दिन पूर्व इसी जिले में दुदही प्रमुख पद की कुर्सी दांव पर लगी थी। यहां सीट बचाने के लिए पूरी भाजपा ने कैंप कर दी थी। पर विशुनपुरा में संगठन ने कोई रूचि ही नहीं दिखाई।
Updated on:
24 Jul 2018 02:21 pm
Published on:
24 Jul 2018 01:53 pm
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