7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

बूंद-बूंद पानी को तरस रहे गांव, 400-500 रुपये में यहां गांववाले खरीद रहे पानी

Patrika Ground Zero Story जलसंकट से जूझते गांव, फाइलों में हो रही जलापूर्ति इंतजामिया की अनदेखी से कागजों तक सिमटी जलापूर्ति प्राइवेट आपरेटर पर गांववालों की निर्भरता नहीं तो प्यासे रहने को मजबूर

4 min read
Google source verification
बूंद-बूंद पानी को तरस रहे गांव, 400-500 रुपये देकर पानी खरीद रहे गांववाले

बूंद-बूंद पानी को तरस रहे गांव, 400-500 रुपये देकर पानी खरीद रहे गांववाले

गुना। आजाद भारत के नागरिकों को पीने के पानी के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है। कहीं मीलों सफर करने के बाद पानी मिल पा रहा है तो कहीं चार-चार सौ रुपये देकर गांववाले पानी खरीदने को मजबूर हैं। कहने को तो जलापूर्ति के लिए सरकार ने तमाम योजनाएं संचालित कर रखी हैं लेकिन इंतजामिया का लापरवाहपूर्ण रवैया और अनदेखी गांव के लोगों पर कहर साबित हो रहा।

Read this also: सुनिए सरकार....प्यास बुझाने को हजारों लोग तय कर रहे मीलों का सफर

भीषण गर्मी प्रारंभ हो चुकी है। नौतपा के पहले ही तापमान 44 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच चुका है। हर ओर जलसंकट शबाब पर है लेकिन साहबान बैैैठकें कर सबकुछ ठीक करने में लगे हुए हैं। दावा तो कहीं भी जलसंकट की स्थिति उत्पन्न नहीं होने देने की है लेकिन हकीकत विदु्रप है। गांव-गिरावं में लोग पानी के लिए मीलों चल रहे हैं तो कई ग्रांव में चार सौ से लेकर पांच सौ रुपये भुगतान कर गांव के लोग पानी खरीद रहे।

गुना क्षेत्र के जनपद पंचायत बमोरी में तापमान के बढ़ते ही जलसंकट शबाब पर पहुंच जाता है। ग्राम धाननखेड़ी जलस्तर बेहद नीचे पहुंच गया है। जल परियोजनाओं की दशा बेहद खराब है। गांव पंचायत से लेकर पीएचई तक गांव के लोग पानी के लिए शिकायत कर चुके हैं लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल सका। ऐसे में गांववालों के सामने एक ही समस्या है या तो कुछ किलोमीटर दूर रोज जाकर पानी लेकर आए या प्राइवेट ट्यूबवेल से जलापूर्ति कराएं। प्राइवेट में पानी खरीदने के एवज में गांववालों को चार सौ रुपये प्रतिमाह भुगतान करना होता है। जो सक्षम हैं वह चार सौ प्रति माह पर पानी तो खरीद रहे लेकिन जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है वह मीलों पैदल या किसी अन्य तरीका से दूर से पानी लाने को मजबूर हैं। गांव के अर्जुन किरार बताते हैं कि ज्यादातर सरकारी बोर बंद हैं। पानी तो सबके लिए जरुरी है तो अपनी दूसरी जरुरतों को कम करते हुए पाई-पाई जोड़कर लोग पानी खरीदकर पीने को मजबूर हैं।

गांव के ही रवि आदिवासी बताते हैं कि धाननखेड़ी गांव में पांच सरकारी बोर व छह हैंडपंप हैं। लेकिन कोई भी चालू हालत में नहीं है। इस भीषण गर्मी में पानी के लिए लोग प्राइवेट लोगों पर निर्भर हैं। बिना पैसा के वह पानी देगा नहीं।

Read this also: मिलिए आत्मनिर्भर एमबीए पास किसान से, किसानी से कमा रहा तीन गुना लाभ

फतेहगढ़ की आबादी चार हजार से अधिक है। चार साल से नलजल योजना बंद है। इस गांव में नौ सरकारी हैंडपंप हैं लेकिन चालू एक भी नहीं। गांव में निजी संचालक द्वारा पानी आपूर्ति की जा रही है। लोगों को चार सौ से पांच सौ रुपये प्रतिमाह पानी के लिए भुगतान करना पड़ रहा। सबसे अहम यह कि गांवों में हैंडपंप या बोर खराब पड़े हैं या बंद हैं लेकिन हर साल सरकारी खजाने से हजारों/लाखों रुपये मरम्मत के नाम पर खर्च हो रहे।

Read this also: ट्रांसफार्मर बदल गया तो ‘नेताजी’ लेने लगे श्रेय, गांववालों ने बताया चालीस हजार दिया तो आर्इ बिजली

सिंगवासा चक गांव की हालत तो सबसे खराब है। यहां पानी को कोई स्रोत नहीं होने से गांववालों को कई कई किलोमीटर दूर चलना पड़ रहा है। गांव से दूर रेलवे लाइन के पास एक हैंडपंप से गांव की महिलाएं, बच्चे या पुरुष पानी लेने जाते हैं।

गांव हिनोतिया की हालत भी दूसरे गांवों से जुदा नहीं है। यहां भी लोग प्राइवेट आपरेटर से पानी खरीदने को मजबूर हैं।

पुरापोसर गांव भी इंतजामिया की बदइंतजामात का शिकार है। बमोरी विधानसभा क्षेत्र के इस गांव में लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। गांव में एकमात्र हैंडपंप खराब पड़ा है। जबकि पुरापोसर गांव के पुरा में तीन हैंडपंप में दो खराब है। एक हैंडपंप से गंदा पानी आ रहा है।

Read this also: जब वरमाला की जगह हाथों में मास्क लेकर पहुंचे दूल्हा-दुल्हन, बारातियों का इस तरह हुआ स्वागत

फैक्ट फाइल

गुना जिले में कुल हैंडपंपः 7519
चालू हालत मेंः 6803
बंदः 716
सुधार योग्यः 73
अनुपयोगीः 122
जलस्तर से बंदः 521

सिंगल फेज मोटर पंपों की स्थिति
कुल पंपः 1120
चालू पंपः 1028
बंदः 92
असुधार योग्य बंदः 10
मोटर पंप खराब होने से बंदः 58
पंचायत से नहीं चलने परः 10
अन्य कारणों से बंदः 14

नलजल योजनाओं की स्थिति

स्थापित योजनाएंः 211
चालू योजनाएंः 200
बंद योजनाओं की संखः 11
स्रोत असफलः 2

नोटः ये आंकड़े सभी सरकारी हैं। हकीकत में स्थिति इससे भी बदतर है।