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हाईकोर्ट की एकल पीठ ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए निचली अदालत के आदेश को निरस्त कर दिया और कहा कि दिवंगत मुन्नी देवी की वसीयत के आधार पर उनके पुत्र पवन पाठक को मुकदमे में वादी के रूप में शामिल किया जाए। कोर्ट ने कहा कि जब मुकदमा चलाने के लिए कोई मौजूद नहीं था तो प्रकरण खारिज कर देना चाहिए था। बावजूद इसके कोर्ट ने मामले को वादी के साक्ष्य के लिए तय कर दिया, जो गंभीर त्रुटि है। सिविल जज को विधिक प्रक्रिया का बुनियादी ज्ञान नहीं है और उन्हें जोट्री में प्रशिक्षण की आवश्यकता है। इस आदेश की प्रति जिला न्यायाधीश, जोट्री निदेशक और रजिस्ट्रार जनरल हाईकोर्ट जबलपुर को भेजने का निर्देश दिया गया।
अधिवक्ता अनिल श्रीवास्तव ने बताया कि मुन्नी देवी ने अपने पिता की कृषि भूमि में 1/3 हिस्से के लिए घोषणा, बंटवारे और स्थायी निषेधाज्ञा का वाद दायर किया था। 4 मई 2024 को उन्होंने अपनी संपत्ति की वसीयत अपने पति और बच्चों के नाम कर दी थी। उनकी मृत्यु 12 मई 2024 को हो गई। इसके बाद पुत्र पवन पाठक ने अदालत में आवेदन देकर स्वयं को वादी बनाने का आग्रह किया, लेकिन सिविल जज ने 8 जनवरी 2025 को पाठक का आवेदन खारिज कर दिया। अदालत का कहना था कि मुन्नी देवी की वसीयत में अन्य वारिसों के नाम भी हैं, लेकिन उनका उल्लेख आवेदन में नहीं किया गया। इसलिए केवल पवन पाठक को वादी मानना उचित नहीं होगा।
Published on:
03 Sept 2025 11:01 am
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