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गुरुनानक देव जयंती: गुरु के ये 10 उपदेश देते हैं सफलता का संदेश

गुरु नानक देव जी के जीवन की कई रोचक बातें भी हैं जिन्हें आम आदमी नहीं जानता है। हम आपको यहां गुरु नानक देव जी उपदेशों के अलावा उनके जीवन की रोचक बातों के बारे में भीे बता रहे हैं।

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rishi jaiswal

Nov 14, 2016

Guru nanak Jayanti 2016

guru nanak dev ji


ग्वालियर। देशभर में सोमवार को गुरु पर्व मनाया जा रहा है। यह सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु नानक देव जी के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसे गुरु नानक जयंती या गुरु नानक प्रकाशोत्सव के नाम से भी जाना जाता है।

गुरु नानक जी का जन्म 547 साल पहले 15 अप्रैल, 1469 को तलवंडी में हुआ, जिसे अब ननकाना साहिब नाम से जाना जाता है। यहां हम आपको बता रहे हैं गुरु नानक जी के वह 10 उपदेश, जो आपको सिखाएंगे जीवन जीने का सही रास्ता...
1. एक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ।
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि ।।
अर्थ: ईश्वर एक है। वह सभी जगह मौजूद है। हम सबका "पिता" वही है इसलिए सबके साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए।
2. नीच अंदर नीच जात, नानक तिन के संग, साथ वढ्डयां, सेऊ क्या रीसै।
अर्थ: नीच जाति में भी जो सबसे ज्यादा नीच है, नानक उसके साथ है, बड़े लोगों के साथ मेरा क्या काम।

3. ब्राह्मण, खत्री, सुद, वैश-उपदेश चाऊ वरणों को सांझा।
अर्थ: गुरुबाणी का उपदेश ब्राह्मणों, क्षत्रीय, शूद्र और वैश्य सभी के लिए एक जैसा है।



4. धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥
अर्थ: धन को जेब तक ही सीमित रखना चाहिए। उसे अपने हृदय में स्थान नहीं बनाने देना चाहिए। तुम्हारा घन और यहां तक की तुम्हारा शरीर, सब यहीं छूट जाता है।

5. हरि बिनु तेरो को न सहाई।
काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥
अर्थ: हरि के बिना किसी का सहारा नहीं होता। काकी, माता-पिता, पुत्र सब तू है कोई और नहीं।



6. दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
अर्थ: इस संसार में सब झूठ है। जो सपना तुम देख रहे हो वह तुम्हें अच्छा लगता है। दुनिया के संकट प्रभु की भक्ति से दूर होते हैं। तुम उसी में अपना ध्यान लगाओ।

7. मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
अर्थ: मन बहुत भावुक और बेवकूफ है जो समझता ही नहीं। रोज उसे समझा-समझा के हार गए हैं कि इस भव सागर से प्रभु या गुरु ही पर लगाते हैं और वे उन्हीं के साथ हैं जो प्रभु भक्ति में रमे हुए हैं।
8. मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
अर्थ: इस जगत में सब वस्तुओं को, रिश्तों को मेरा है-मेरा हैं करते रहते हैं, लेकिन मृत्यु के समय सब कुछ यही रह जाता है कुछ भी साथ नहीं जाता। यह सत्य आश्चर्यजनक है पर यही सत्य है।

9. तनाव मुक्त रहकर अपने कर्म को निरंतर करते रहना चाहिए और सदैव प्रसन्न भी रहना चाहिए।

10. कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए बल्कि मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।



क्या आप जानते हैं गुरु नानक जी की ये रोचक बात?...
1. गुरु नानक जी का विवाह: बटाला निवासी मूलराज की पुत्री सुलक्षिनी से नानक जी का विवाह से हुआ। सुलक्षिनी से नानक के 2 पुत्र पैदा हुए। एक का नाम था श्रीचंद और दूसरे का नाम लक्ष्मीदास था।

2. गुरु नानक की पहली 'उदासी' (विचरण यात्रा) 1507 ई. में 1515 ई. तक रही। इस यात्रा में उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों में भ्रमण किया।
3. नानक जब कुछ बड़े हुए तो उन्हें पढने के लिए पाठशाला भेजा गया। उनकी सहज बुद्धि बहुत तेज थी, वे कभी-कभी अपने शिक्षको से ऐसे विचित्र सवाल पूछ लेते जिनका जवाब शिक्षकों के पास भी नहीं होता। जैसे एक दिन शिक्षक ने नानक से पाटी पर 'अ' लिखवाया। तब नानक ने 'अ' तो लिख दिया किन्तु शिक्षक से पूछा, गुरूजी! 'अ' का क्या अर्थ होता है? यह सुनकर गुरूजी सोच में पड़ गए।
भला 'अ' का क्या अर्थ हो सकता है? गुरूजी ने कहा, 'अ' तो सिर्फ एक अक्षर है।




4. गुरु नानक सोच-विचार में डूबे रहते थे। तब उनके पिता ने उन्हें व्यापार में लगाया। उनके लिए गांव में एक छोटी सी दूकान खुलवा दी। एक दिन पिता ने उन्हें 20 रुपए देकर बाजार से खरा सौदा कर लाने को कहा। नानक ने उन रुपयों से रास्ते में मिले कुछ भूखे साधुओं को भोजन करा दिया और आकर पिता से कहा की वे 'खरा सौदा' कर लाए है।

5. उन्होंने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान में है। इसी स्थान पर सन् 1539 को गुरु नानक जी का स्वर्गागमन हुआ।