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किसे ‘पिस्टल’ देना… किसे नहीं ? शासन का विवेकाधिकार, नहीं मिलेगा लाइसेंस

MP News: एकल पीठ ने कहा कि शस्त्र अधिनियम की धारा 13 और 14 के तहत लाइसेंस देना अनिवार्य अधिकार नहीं बल्कि प्रशासनिक विवेकाधिकार है।

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फोटो सोर्स: पत्रिका

फोटो सोर्स: पत्रिका

MP News: एमपी में ग्वालियर हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि बंदूक रखना मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह शासन का विवेकाधिकार है कि वह किसे हथियार रखने का लाइसेंस दे। हाईकोर्ट ने हरदीप कुमार अरोरा नाम के एक शख्स की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। अरोरा ने पिस्टल/रिवॉल्वर के लिए हथियार लाइसेंस की मांग की थी।

एकल पीठ ने कहा कि शस्त्र अधिनियम की धारा 13 और 14 के तहत लाइसेंस देना अनिवार्य अधिकार नहीं बल्कि प्रशासनिक विवेकाधिकार है। कोर्ट ने कहा कि जब तक किसी व्यक्ति को अपनी जान का वास्तविक खतरा न हो, उसे हथियार लाइसेंस नहीं दिया जा सकता। अरोरा ने अपनी याचिका में कहा था कि वह पेशे से कृषक हैं और अपनी आजीविका और सुरक्षा के लिए उन्हें हथियार लाइसेंस की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जिला दंडाधिकारी अशोकनगर और कमिश्नर ने 2010 में उनके पक्ष में सिफारिश की थी, लेकिन राज्य शासन ने फरवरी 2011 में उनका आवेदन खारिज कर दिया।

पहले से दो हथियार, तीसरे की जरूरत नहीं

राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता रवींद्र दीक्षित ने कोर्ट में कहा कि अरोरा के पास पहले से ही 315 बोर की बंदूक का लाइसेंस है और उनके पिता के पास भी 12 बोर की बंदूक का लाइसेंस है। उन्होंने कहा कि अरोरा परिवार के पास पहले से ही दो हथियार हैं, इसलिए तीसरे लाइसेंस की कोई आवश्यकता नहीं है।

दीक्षित ने कोर्ट को यह भी बताया कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में शादियों और धार्मिक आयोजनों में हथियारों के दुरुपयोग से कई हादसे हो चुके हैं। क्षेत्र में पहले से ही हथियारों का प्रचलन ज्यादा है, इसलिए यहां और हथियार लाइसेंस देना उचित नहीं होगा। कोर्ट ने राज्य सरकार के तर्क को स्वीकार करते हुए अरोरा की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक शांति और सुरक्षा सर्वोपरि है और हथियार लाइसेंस का दुरुपयोग रोकना आवश्यक है।