
(फोटो सोर्स: AI Image)
MP News: हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई मजिस्ट्रेट प्राथमिकी (एफआइआर) दर्ज करने का निर्देश देता है, तो इसे मामले का ’संज्ञान लेने’ के रूप में नहीं देखा जा सकता। न्यायमूर्ति मिलिंद रमेश फड़के ने इस ऐतिहासिक फैसले में एक आरोपी उप निरीक्षक द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट ने केवल जांच का निर्देश दिया था, इसलिए वह आदेश पूरी तरह वैध है। इस फैसले से पुलिसकर्मियों द्वारा कथित तौर पर थर्ड डिग्री देने के मामले में एफआइआर दर्ज होने का रास्ता साफ हो गया है।
यह मामला उप निरीक्षक जय किशोर राजौरिया से जुड़ा है। याचिकाकर्ता आशीष जैन ने तर्क दिया कि उनके रिश्तेदार पीयूष गर्ग रंग-रोगन के कारोबार से जुड़े हैं। एक दिन जनकगंज थाने में पदस्थ उप निरीक्षक जय किशोर राजौरिया ने अपनी कार दुकान के सामने खड़ी कर दी, जिससे ट्रैफिक जाम हो गया।
जब पीयूष गर्ग ने कार हटाने को कहा, तो अधिकारी कथित तौर पर भड़क गए। इसके बाद उप निरीक्षक राजौरिया अपने पुलिस वाहन से तीन-चार अन्य पुलिसकर्मियों के साथ लौटे। आरोप है कि इन पुलिसकर्मियों ने पीयूष गर्ग और एक अन्य युवक विशाल को जबरदस्ती घसीटकर थाने ले जाकर थर्ड डिग्री यातना दी और उन्हें लॉकअप में डाल दिया।
पुलिस अधिकारियों द्वारा सुनवाई न होने पर आशीष जैन ने मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद दायर किया। मजिस्ट्रेट ने उप निरीक्षक जय किशोर राजौरिया पर एफआइआर दर्ज करने के आदेश दिए। इस आदेश के खिलाफ उप निरीक्षक ने अपर सत्र न्यायालय में अपील दायर की तो कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश को निरस्त कर दिया था, जिससे पुलिस अधिकारी को राहत मिल गई थी।
Published on:
07 Oct 2025 11:05 am
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