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कथावाचक अनिरुद्धाचार्य के बयान पर भड़के जगद्गुरु रामानंदाचार्य, लिव-इन रिलेशनशिप पर कह दी बड़ी बात

Jagadguru Ramanandacharya Angry : श्रीमद् भागवत गीता का कथावाचन करने के लिए जगद्गुरु रामानंदाचार्य श्री राम दिनेशाचार्य जी स्वामी पहुंचे हुए है।

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Jagadguru Ramanandacharya Angry

जगद्गुरु रामानंदाचार्य (Photo Source- Patrika)

Jagadguru Ramanandacharya Angry : जब बिना पढ़ा लिखा व्यक्ति व्यास पीठ पर बैठकर प्रवचन करेगा तो उसकी वाणी समाज में विद्रोह करने का काम करेगी। ये बात जगद्गुरु रामानंदाचार्य श्री राम दिनेशाचार्य स्वामी ने कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज के वेश्या वाले बयान पर कही है। दरअसल, मध्य प्रदेश के ग्वालियर में श्रीमद् भागवत गीता का संगीतमय कथावाचन करने के लिए जगद्गुरु रामानंदाचार्य श्री राम दिनेशाचार्य जी स्वामी पहुंचे हुए है।

ऐसे में जब उनसे कथावाचक अनिरुद्ध आचार्य महाराज द्वारा लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को वेश्या बताने के बयान पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा अपनी भाषा का हमेशा संयम रखना चाहिए। अनिरुद्धचार्य जी ने जो बयान दिया, उसे देखा जाए तो रामभद्राचार्य जी की बात बिल्कुल तर्कसंगत लगती है। क्योंकि जब बिना पढ़ा लिखा व्यक्ति व्यास पीठ पर बैठकर प्रवचन करता है तो कहीं ना कहीं उसकी वाणी में स्खलन होगा, जो समाज में विद्रोह करने का काम करेगा।

लिव-इन रिलेशन यहां परंपरा नहीं'

जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने कहा कि जो भी व्यास पीठ पर बैठे हैं वो साथ-साथ उसकी मर्यादा और उसकी सहजता के साथ बैठकर उसका पालन करे। लोग हमें सुनते हैं हम किन शब्दों का किन विचारों का प्रचार कर रहे हैं इस पर ध्यान देने की जरूरत है। मेरे हिसाब से लिविंग रिलेशनशिप भारत की कभी परंपरा नहीं रही है और ना ही यह स्वस्थ समाज की स्थापना कर सकती है।

संस्कृत भाषा नहीं, भारत की आत्मा'

रामभद्राचार्य और प्रेमानंद महाराज से जुड़े संस्कृत आने वाले विवाद को लेकर कहा कि 'दोनों महापुरुष है और एक ज्ञान और दूसरा भक्ति का आचार्य है। संस्कृत भाषा ही नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। निश्चित रूप से भारत को समझना है तो बिना संस्कृत के हम भारत और भारतीयता को नहीं समझ सकते, पर दूसरी बात ये भी कि एक पथ भक्ति का है और भक्ति के पथ पर संस्कृत के लिए कृतज्ञ होना ये जरूरी नहीं।

ज्ञानी होने के लिए शास्त्र और संस्कृति जरूरी

स्वयं कबीर दास जी कहते हैं कि हमने कागज और कलम कभी नही उठाया, कभी पढ़ाई नहीं की। ऐसे में मुझे लगता है ज्ञानी होने के लिए शास्त्र और संस्कृति की आवश्यकता है,लेकिन भक्त होने के लिए संस्कृत पढ़ने वाला ही भक्त हो सकता है ऐसी कोई मान्यता नहीं है। हम सिरे से इस बात को खारिज भी नहीं कर सकते। क्योंकी रामचरितमानस के सभी मंगलाचरण संस्कृत में ही हुए है, संस्कृत भारतीय दर्शन को समझने की मूल धारा है पर यह बात जरूरी है की यदि हमें संस्कृत नहीं आती है तो हम भक्त नहीं हो सकते। यह बात उचित नहीं।

'जहर जो भी पिएगा उसे मारना पड़ेगा'

प्रदेश में शराबबंदी और जीतू पटवारी के बयान पर उन्होंने कहा कि, प्रदेश में शराबबंदी बहुत जरूरी है। जो भी समाज में नैतिकता का पतन कर रही हो, उसे बंद ही होना चाहिए। फिर वह महिला पीती है या पुरुष पीता है, यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। जहर जो भी पिएगा उसे मारना ही पड़ेगा। चाहे फिर वह महिला हो या पुरुष हो। जिससे नैतिकता का पतन हो ऐसे किसी भी पदार्थ से लोगों को दूर रहना चाहिए और सरकार को उस पर कदम भी उठाना चाहिए।