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अब पेट में उल्‍टा हो जाए बच्‍चा, तो न हो परेशान, आराम से हो जाएगी डिलीवरी, जानिए कैसे

शहर की डॉ. शिराली रुनवाल ने कोरोना काल में 298 महिलाओं पर किया रिसर्च, पॉजिटिव आए परिणाम......

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ग्वालियर। उल्टा बच्चा यानि ब्रीच डिलेवरी के केस में पैर व धड़ तो आसानी से बाहर निकल आता है, लेकिन अपेक्षाकृत बड़ा होने की वजह से सामान्य आकार का सिर भी अंदर ही अटक जाता है। विदेश के वैज्ञानिक डॉ, मॉरीश्यू, स्माइली व डॉ. वीट ने पुराने मेलार फ्लेक्शन मैथड को मॉडिफाय करते हुए जिस तकनीक की वकालत की, उसमें बच्चे के मुंह में उंगलियां डालकर दबाव बनाने की बजाय इंडेक्स व मिडिल फिंगर को नाक के पास मेलर बोन्स पर रखकर नीचे की ओर खींचा जाता है।

इससे एक कदम आगे बढ़ाते हुए ग्वालियर के जीआरएमसी की शोध छात्रा डॉ. शिराली अरविंद रुनवाल ने कोरोना काल में 298 महिलाओं पर रिसर्च किया। उन्होंने पाया कि तर्जनी व मध्यमा अंगुलियों की लंबाई का अंतर अधिक होने से दिए जाने वाला दबाव समानुपातिक न होकर वन साइडेड या एक्सेन्ट्रिक हो जाता है। यदि इंडेक्स व रिंग फिंगर को मेलर बोन्स पर रखा जाए और मिडिल फिंगर को एक स्टेबिलाइजर के तौर पर रूट ऑफ नोज पर फिक्स करते हुए प्रेशर दिया जाए, तो आफ्टरकमिंग हैड ऑफ ब्रीच की डिलेवरी बेहद आसानी से व सुरक्षित तरीके से हो सकती है।

रिसर्च के फायदे

● नवजात के सिर पर समानुपातिक दबाव से चोट चपेट का भय कम

● प्रसूता के लिए अधिक सुविधाजनक व दर्दरहित

● ऑब्स्टेट्रिशियन के लिए भी फाइव फिंगर फिजेटी से सिक्स फिंगर स्टेबिलिटीका बेहतर विकल्प

● नवजात शिशु मृत्यु दर तथा मैटर्नल मॉर्बिडिटी में सांख्यिकीय कमी

● तीन उंगलियों के दबाव से चिन चेस्ट पोजीशन के मेंटेनेंस में अनुकूलता

● मेलार फ्लेक्शन के वक्त गर्दन में मरोड़ आने की संभावना नहीं

उंगलियों के सिंपल फेरबदल से मिली नई तकनीक

ब्रीच हैड को बाहर निकालते समय प्रसूतक का बायां हाथ बच्चे के सिर के पीछे तीन उंगलियों से सहारा देता है, जिनमें मिडिल फिंगर को ऑक्सिपुट के उभरे हिस्से इनियन पर फिक्स किया जाता है। अगर दायें हाथ की भी तीन लंबी उंगलियों का प्रयोग किया जाए और आगे की ओर स्थित सिन्सिपुट को नेसियन पर सेंट्रलाइज कर मेलर प्रेशर दिया जाए तो सिक्स फिंगर स्टेबिलिटी मिलती है, जो जच्चा व बच्चा दोनों के लिए सुविधाजनक है।

जर्नल ऑफ ऑब्स एंड गायनी में प्रकाशित

डॉ. शिराली ने अपने मैथड को शिराली रीमॉडिफाइड एमएसवी टेक्नीक नाम दिया है। उनके इस शोध को वॉल्टर बुशनेल के जर्नल ऑफ ऑब्स एंड गायनी में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है। यह जर्नल यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमरीका की एब्स्को द्वारा भी इंडेक्स्ड है।